फैसला

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कोचिंग से आते ही बस्ता और खेल के समान की किट पटक दिया रोहन ने और सोफे पर मुंह लटका कर बैठ गया।

"क्या हुआ राहुल? ऐसे क्यों बैठा है? चल मुंह हाथ धोकर आजा। हम सब खाने के लिए तेरा ही इंतजार कर रहे हैं।"

यशवर्धन जी ने सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।


"पापा! मुझे भूख नहीं है। आप लोग खा लीजिए।"

"ऐसी क्या बात हो गई? चल जिद्द नहीं करते।"

"बोला न, नहीं खाना तो नहीं खाना।" और अपना बस्ता और किट उठाकर अपने शयनकक्ष में चला गया।

"उफ्फ! यह लड़का बहुत बिगड़ गया है, सब आपके लाड़ प्यार का नतीजा है।" रोहिणी चीखते हुए बोली। तभी फोन की घंटी बज पड़ी यशवर्धन जी के मोबाइल पर। 

"नमस्ते जी! मैं यूनीक कोचिंग सेंटर का संचालक विश्वजीत बोल रहा हूं।"

"जी, नमस्ते सर। कहिए क्या बात है? आज रोहन भी कुछ तनाव में घर लौटा है। क्या किसी से कोई झगड़ा वगड़ा हुआ है उसका?"


"जी नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। दरअसल रोहन अपनी प्रवेश परीक्षा की तैयारी में मन नहीं लगा पा रहा है। पिछले दो महीने से उसके साप्ताहिक टेस्ट की रिपोर्ट देख रहा था। हर विषय में वह दूसरे छात्रों से बहुत पीछे चल रहा है। मुझे लगता है ग्यारहवीं कक्षा में नान मेडिकल लेने के निर्णय से वह खुश नहीं हैं। आप एक बार उससे बात कर के देखिए।"

"देखा, मैं न कहती थी कि बिगड़ गया है, और दो छूट उसे अपनी मनमर्जी करने की। क्या जरूरत है उसे कोचिंग क्लास में जाने से पहले फुटबॉल क्लब जाने की इजाज़त देने की? अब करियर के बारे में सोचना चाहिए उसे, छोटा बच्चा नहीं है वह अब। पर सारा ध्यान वहीं रहता होगा इसका मुई फुटबॉल पर।" सारी बात सुनकर रोहिणी और भी भड़क गई। 


तभी छोटी बेटी सुप्रिया दौड़ती हुई आई और बोली, "पापा! मैं तो भईया को खाने के लिए बुलाने गई थी, पर भईया अपने फुटबॉल क्लब से आज मिली शील्ड हाथ में लिए रो रहे थे ज़ोर ज़ोर से और कह रहे थे कि आगे से वह फुटबॉल नहीं खेलेंगे।"

यशवर्धन जी ने ड्राइंगरुम में शेल्फ पर सजे रोहन द्वारा फुटबॉल में जीते ईनाम में मिली ट्राफियों और सर्टिफिकेट्स की तरफ अभिमान से देखा और एक कठोर निर्णय लेकर रोहन के कमरे की ओर चल पड़े।


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