सजा

सजा

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दोनों दोस्त रोज़ की तरह आज भी नशे में धुत्त ठेके से बाहर निकले, तो गहरा अंधेरा हो चुका था। चारों तरफ सुनसान होने की वजह से आसपास एक सन्नाटा पसरा हुआ था। 

"चल बंते, आज स्कूटरी तू चलाएगा आज। मैनूं कुज्ज ज्यादा ही चढ़ गई लगदा।" सोहने ने कहा‌


"ओए खोते दे पुत्र, तैनूं पहले वी किहा सी, कम पिया कर। चल बैठ जा अब पीछे।" स्कूटरी स्टार्ट करते हुए बंता बोला। गाँव की ओर जाते सूने रास्ते पर इस समय कोई कोई ही दिखाई पड़ रहा था। वैसे भी सर्दियों के दिनों में शाम जल्दी ढल जाने के कारण सबको अपने अपने घर पहुंचने की जल्दी रहती है। अचानक पता नहीं कैसे, शायद नशे की हालत में होने के कारण कुछ धुंधला सा दिखाई पड़ने लगा बंते को भी और रास्ते में पड़े पत्थर दिखाई न देने की वजह से उसी में टक्कर मार डाली। दोनों स्कूटरी सहित नीचे गिर पड़े।


"ए की कित्ता बंतिया, अभी मरवा देना था।" लड़खड़ा कर उठने की नाकाम कोशिश करते हुए सोहना बोला।

"यार! तुझे याद है कि यह वही जगह है परसों वाली..जहां से हमने भीखूराम की लड़की को उठाया था और खेतों में ले जाकर..!"

"अरे क्या बातें लेकर बैठ गया तू? वैसे यार बड़ा मज़ा दे गई साली जाते जाते.."आगे के शब्द थोड़े लड़खड़ा से गए।

हां, यह बड़ी बुराई इन लड़कियों में, अरे उसे भी तो मज़ा आया ही होगा, फिर भला छत्त के पंखे से फंदा लगाकर क्यों झूल गई..!" फिर सामने देखा तो आँखें फटी की फटी रह गई,"अरे वो तो जिंदा है..देख तेरे पीछे..!"


"ओए क्या बकवास कर रहा तू। पी मैंने ज्यादा और चढ़ तेरे को गई..मर गई वह तो, कल तो संस्कार भी हो गया उसका...!" सोहना उठते हुए बोला।


"अरे तेरी सोंह, वो बिल्कुल पीछे है तेरे..अब तो सारी उतर गई लगता।" सोहने ने पीछे मुड़कर देखा, तो रौंगटे खड़े हो गए उसके भी। हु-ब-हू वहीं चेहरा, सफेद कपड़ों में लिपटा, चेहरे पर एक रूहानी नूर लिए गौरी खड़ी थी सामने, पर आँखों से जैसे लहू टपक रहा था। डर के मारे दोनों के प्राण सूख गए। सारा नशा काफूर हो गया था मानो। उसके पाँव पर गिर गए दोनों और अपने किए कुकर्म की माफ़ी मांगने लगे।

तभी आँखों में पड़ती टार्च की तेज़ रौशनी से हड़बड़ा गए दोनों। चारों तरफ पुलिस थी उनके, और सामने महिला पुलिस इंस्पेक्टर शिवानी, जिसकी शक्ल काफी हद तक गौरी से मिलती थी, ने अपना ओढ़ा हुआ सफेद लबादा उतार दिया।


"हमें पहले से ही तुम दोनों पर शक था, इसीलिए ठेके से ही तुम्हारा पीछा कर रहे थे। यह पत्थर भी तुम लोगों को पकड़ने के लिए लगाए थे रास्ते में। अब तुम लोग अपना गुनाह कबूल कर ही चुके हो, और सजा भी मिलेगी, पर उस बेगुनाह की रूह तुम्हें कभी माफ़ नहीं करेगी।"


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