सीमा भाटिया

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0.6  

सीमा भाटिया

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लौट के बुद्धू घर को आए

लौट के बुद्धू घर को आए

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बात उन दिनों की है जब मैं कॉलेज में पढ़ता था। हमारे शहर में भारत और पाकिस्तान के बीच चल रही अंतरराष्ट्रीय एक दिवसीय सीरिज़ का एक मैच होना तय हुआ था। अब इतना बड़ा अवसर मिला था, तो मैं भला कैसे चूकने वाला था इसका फायदा उठाने से। बस यारों दोस्तों के साथ कार्यक्रम बना लिया मैच देखने का। पर यहां एक मुश्किल आन खड़ी हुई। जिस दिन मैच था, उसी दिन भौतिक विज्ञान का एक टेस्ट रख छोड़ा था निखिल सर ने, और उसी के आधार पर असेसमेंट जानी थी वार्षिक परीक्षा में। हम दोस्तों ने मिलकर बहुत मिन्नतें की सर से कि किसी और दिन ले लें हमारा टेस्ट, भले ही एक दो दिन पहले ही सही। पर निखिल सर..और अपनी बात से हिल जाएं, हो ही नहीं सकता था। उनकी बात मानो पत्थर की लकीर..खिंच गई तो खिंच गई। अब कक्षा में हम अकेले छात्र तो थे नहीं, बहुत से पढ़ाकू छात्र भी थे, जिन्हें ऐसे मैचों में कोई दिलचस्पी नहीं थी। और खासकर लड़कियों को तो सर के आगे अपने नंबर बनाने का मौका मिल गया था।

"कोई बात नहीं सर! यह वंशज और पार्टी को करने दीजिए अपनी मर्ज़ी। आप अपने हिसाब से ही टेस्ट लीजिए।" यह सलोनी अरोरा थी, कक्षा की सबसे पढ़ाकू लड़की, हद नंबर की खड़ूस। नकचढ़ी कहीं की, हां, हम सब दोस्तों में वह इसी नाम से मशहूर थी। खैर, हम दोस्तों ने तय किया कि मैच देखना है तो देखना ही है। कोई बात नहीं अगर असेसमेंट के दस नंबर कटते हैं, तो कटें, अपनी बला से। अब भारत पाकिस्तान के बीच मैच देखने का यह शुभावसर क्यों छोड़े हम? बस मैच के दिन सुबह आठ बजे ही हम दस लड़कों का ग्रुप कॉलेज से बंक मार, सज धज कर निकल पड़ा गुरू नानक स्टेडियम में आयोजित होने वाले मैच को देखने। घर पर भी किसी को इस बारे में पता नहीं था। बड़ी शान से अपनी सीटों पर बैठ गए, हाथ में कोल्ड ड्रिंक और चिप्स के पैकेट लेकर और इंतजार करने लगे मैच शुरू होने का।

नौ बजने वाले थे, जब अचानक ही काली घटाएं घिर आई चारों ओर और सां सां करती तेज़ हवा चल पड़ी, जबकि इससे पहले मौसम बिल्कुल साफ था। एकदम ही बादल ज़ोर ज़ोर से गरजने लगे और बारिश की तेज़ फुहारों से सब भीगने लगे। मैच के शुरू होने की सारी संभावनाएं धूमिल सी लग रही थीं, क्योंकि मौसम विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक यह बारिश कम से कम चार पांच घंटे तक रुकने वाली नहीं थी। वहां से उठकर निराश हो कर हम बाहर निकल आए और सोचने लगे कि अब क्या करें? घर जाने पर सबकी पोल खुल जाने का डर था कि झूठ बोल कर मैच देखने गए थे। तो सबने मिलकर निर्णय लिया कि कॉलेज ही चलते हैं। कम से कम टेस्ट देकर निखिल सर को तो खुश कर लें। बस अपनी अपनी बाइक स्टार्ट की और भीगते हुए कॉलेज की ओर चल पड़े। कैंटीन में बैठकर चाय पी और कपड़े सुखाकर निखिल सर के पीरियड में उनकी क्लास की तरफ चल पड़े।

"अरे, तुम लोग तो मैच देखने जाने वाले थे? इधर कहां जा रहे तुम लोग?" सलोनी रास्ते में ही मिल गई।

"क्यों आज भौतिक विज्ञान का टेस्ट नहीं देना पढ़ाकू जी ?" मैंने चिढ़ाने के लहजे में पूछा।

"कमाल है! तुम लोगों को अजित का मैसेज नहीं मिला? कल ही सर ने मैच के प्रति तुम लोगों के रूझान को देखते हुए टेस्ट स्थगित कर दिया था मेरे रिक्वेस्ट करने पर।" और हंसते हुए कारिडोर से बाहर निकल गई। हम बस हक्के बक्के एक दूसरे का मुंह देखते रह गए।


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