चुप्पी
चुप्पी
बिल्कुल अकेले बैठे कमरे में घुटन होने लगी थी। बालकनी में आकर खड़ा हो गया पुष्कर। बाहर वैसा ही घनघोर अंधेरा था जैसा उसके मन में व्याप्त था अकेलेपन और पश्चाताप की भावना से भरा हुआ। तीस वर्षों में उसने भी तो नीलू को यही दिया था शादी के पवित्र रिश्ते की एवज में। दो बच्चों और सास ससुर की मौजूदगी के बावजूद भी वह हमेशा अकेली ही रही क्योंकि महरूम थी पुष्कर के प्यार और साथ से। अधिकाधिक धन कमाने की लोलुपता और बस सामाजिक दायरे में अपना रुतबा बनाए रखने की उसकी अदम्य चाह ने बच्चों को भी उससे दूर कर दिया। युवराज और स्नेहा शादी और करियर में स्थापित हो आस्ट्रेलिया जा चुके थे। बूढ़े माँ बाप का साया भी सिर से उठ चुका था। ऐसे में एक दिन पड़ोसी अमर सिंह के फोन ने उन्हें सकते में डाल दिया था।
"पुष्कर जी,मैं अमर सिंह.. जल्दी से घर आइए। "
"अभी मीटिंग में व्यस्त हूँ। कहिए क्या काम है ?"
"अभी अभी मेरी पत्नी रेनू आपके घर किसी काम से गई थी। दरवाजा खुला ही था। अंदर ड्राइंग रूम में भाभी जी औंधे मुंह गिरी पड़ी थी। तुरंत पड़ोस के डाक्टर मिस्टर जुनेजा को बुलाया, तो उन्होंने चेकअप करने के बाद बताया कि भाभी जी ने तनाव खत्म करने वाली और नींद की गोलियां ज्यादा मात्रा में ले ली हैं जिसकी वजह से....।"
उसके बाद गहरी लम्बी चुप्पी छा गई थी...हमेशा के लिए।