सावन के झूले
सावन के झूले
शादी के बाद पहला हरियाली तीज की स्मृति आज भी मेरे मन को आनंदित कर देती हैं। यूं तो हमारे यहां भादो में मनाए जाने वाले हरितालीका तीज मनाया जाता है। शिव पार्वती की ही पूजा की जाती है। मैं शहर की लड़की थी और गांव में ब्याह कर चली गई थी। थोड़ा अलग सा रहन सहन तौर-तरीके थें लेकिन परिवार के लोग बड़े अच्छे थें। शादी के कुछ दिन बाद ही फौजी पति देश की सेवा में हाज़िर होने के लिए मुझसे दूर चले गए थें लेकिन पल भर को भी कभी मायूसी नहीं छाई।
सासूमां, ससुर जी, जेठजी, जेठानी जी,ननद और जेठानी के पांच बच्चें। तीन चार गाय, दो तोता और एक शेरू यह सब मेरे परिवार के सदस्य थें। कब सुबह होती और कैसे दिन निकल जाता पता ही नहीं चलता रात होते ही नींद आ जाती तो सो जाती। ना मायके की याद आती और ना ही परदेसी पिया की ....।
जब हरियाली तीज का दिन आया तो सासूमां ने खूब जोर शोर से तैयारी शुरू की। आंगन से पार दालान की लीपापोती की गई झूले लगाएं गये। फूलों से सजाई गई, पकवान भी बनाएं गये, मेरे हाथों में मेंहदी लगाई गई। ससुर जी बाज़ार से हरे रंग की साड़ी, बिंदी और कांच की चूड़ियां लेकर आएं। शाम होते ही सबने मुझे सोलह श्रृंगार किया। सज धजकर मैंने आईना देखा ....अरे वाह मैं तो खुद पर मोहित होने लगी ....। सासूमां, जेठानी, ननद और जेठानी के बच्चें सब मिलकर बड़े उत्साह से झूले तक पहुंची ... बड़े मधुर गीत गाए जाने लगे ..... मगर झूले में बैठते ही कर्पूर की तरह सारी खुशियां उड़ गई। सावन के झूले और साजन नदारद ..... सासूमां ने मौके की नज़ाकत समझते हुए मुझे बहलाने की कोशिश की उन्होंने कहा पहले साल ननद के साथ झूला झूलने का रिवाज है। अगले साल से अपने पति के साथ झूलना। आज्ञाकारी बहू की तरह मैंने उनकी बात मान ली थी और छोटी ननद के साथ झूला झूली .... उसके बाद पच्चीसों बार अपने पति और बच्चों के साथ झूला झूली हूं लेकिन वो पहले सावन के झूले आज भी मेरे मन को गुदगुदाने लगते हैं।
