साहस की अद्भुत मिसाल भीमव्वा चालवाड़ी
साहस की अद्भुत मिसाल भीमव्वा चालवाड़ी
वह मन में सोचा करतीं कि ऐसी जलील जिंदगी जीने से तो अच्छा है कि सागर की गोद में समा कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लूं परंतु उनकी आंखों के सामने 12 वर्ष की मासूम बच्ची का चेहरा कौंध उठता , जो उन्हीं की तरह पहले देवदासी बनाई गई और फिर उनके ही कोठे पर पहुंचा दी गई थी ....
उत्तरी कर्नाटक के एक बेहद गरीब परिवार में जन्मी भीमव्वा के लिये स्कूल तो बहुत दूर की बात थी ...उन्हें होश संभालते ही अपनी पांच छोटी बहनों की देख रेख का पाठ पढना पड़ा। उनके पिता दिहाड़ी मजदूर थे ,उस पर पीने की लत इतनी ज्यादा थी कि वह शाम को ज्यादातर ऩशे में डूब कर खाली हाथ ही लौट कर आया करते थे । उनके साथ घर में आती कुंठा , नाकामी और और उनकी बेरहमी , नतीजा होता कि घर में रोना धोना और कोहराम रोज की कहानी थी । घर का चूल्हा भी यदि जलता तो वह भीमव्वा की मां की बदौलत ...पेट की भूख , अभाव और मार पीट के बीच बड़ी होती भीमव्वा के लिये किशोरावस्था जैसे काल बन कर आई ।
पड़ोसी मां बाप से कहते कि अगर एक बेटा होता तो तुम लोगों की देख भाल करता और कमाकर भी लेकर आता ... पड़ोसी यह भी सलाह देते कि भीमव्वा को ‘देवदासी ‘बना दो … जब वह 15 वर्ष की हुई तो वह मंदिर को दान कर दी गई । हालांकि देवदासियों के यौन शोषण को देखते हुये अब इस कुप्रथा को गैर कानूनी बना दिया गया है परंतु भीमव्वा तो इसकी बलि चढ चुकी थी ।
साल 2001 की बात है कि करीब 3-4 महीने तक मंदिर की संपत्ति रहीं भीमव्वा को गोवा के वास्को शहर की एक बड़ी वेश्यामंडी , में बेच दिया गया । आपको आश्चर्य होगा बेचने वाले उसके खुद के मां बाप ही थे । इस मंडी में ज्यादातर लड़कियां कर्नाटक, आंध्र, तमिलनाडु और केरल से लाई गईं थीं । वहां की दुनिया बहुत अजीब सी थी , जिसमें किसी की पीड़ा , दर्द , इच्छा और भावनाओं से किसी को कोई मतलब नहीं होता ...वहां पर सिर्फ बेबसी और बर्बरता का राज होता था ।
भीमव्वा ने तीन चार बार वहां से भागने की कोशिश की लेकिन वहां कोठों के गुर्गे उन्हें पकड़ लेते और फिर इसकी शिकायत उसकी मां तक पहुंच जाती और मां उससे कहतीं कि यदि तुम ऐसा करोगी तो तुम्हारी बहनों की परवरिश कैसे हो पायेगी .... भीमव्वा अपनी बहनों के लिये वहां पर जुल्म सहती रहतीं लेकिन वह मन ही मन सोचतीं कि ऐसी जलील जिंदगी से अच्छा है कि वह सागर की गोद में समा कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर दें लेकिन उनकी आंखों के सामने 12 साल की उस बच्ची का चेहरा कौंध जाता जो उनकी तरह ही पहले देवदासी बनाई गई फिर यहां बेच दी गई थी । उसकी डरी सहमी नजरें और घुटी घुटी सिसकियां उनके दिल को बेध देती थी । उन्होंने आत्महत्या का विचार मन से निकाल कर संघर्ष करने का संकल्प कर लिया ।
साल 2003 में गोवा की ही एक गैरसरकारी संस्था ‘अन्याय रहित जिंदगी’ के साथ क्राइम ब्रांच ने कोठों पर छापा मारा ... उस अभियान में वह छुड़ा ली गई थी परंतु न ही उनके पास कोई ठिकाना था और न ही किसी तरह की कोई तालीम थी । अंततः उन्हें सरकारी संरक्षण गृह में भेज दिया गया । वहां पहुंच कर ऐसी दर्दनाक आपबीती सुनने के लिये मिली कि उन्हें अपना दर्द छोटा लगने लगा । उन्होंने निश्चय किया कि अब वह ‘अन्याय रहित जिंदगी’ का सहारा लेकर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ेगी। संस्था ने उनका साथ देने का वादा भी किया ।
सबसे पहले उन्होंने अबने मां बाप से कहा कि यदि वह वेश्यावृत्त्ति के लिये मजबूर किया तो वह उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर देंगी । उन्होंने अपनी आजीविका के लिये क्राफ्ट सीखा ... फिर वह उसी एनजीओ में क्राफ्ट सिखाने लगी और साथ में जबरदस्ती जिस्म फरोशी के धंधें में धकेली गई लड़कियों को मुक्त करने के अभियान से जुड़ गईं परंतु उन्हीं गलियों और कोठों पर लौटना उनके लिये बहुत ही चुनौती पूर्ण था जहां उनका पीड़ादायक अतीत कैद था । कोठों की मौसियां, उनके गुर्गे और दलाल , यहां तक कि उनके ग्राहक भी उन पर फब्तियां कसते लेकिन भीमव्वा नहीं टूटी और अपने इरादे पर कायम रही ....
लड़कियों को आजाद कराना ही समस्या का स्थाई हल नहीं था । इसलिये 2006 में ‘अन्याय रहित जिंदगी ‘ ने स्विफ्ट वाश लाण्ड्री सेवा की शुरुआत किया । यह पूरी तरह से मशीन से संचालित इकाई थी ... यहां पर अथिकतर उन लड़कियों को काम पर रखा गया जो कोठों से आजाद कराई गईं थीं । इस लाण्ड्री में सबसे पहले जिन लड़कियों को रखा गया , उनमें भीमव्वा भी थीं । आजकल भीमव्वा इस इकाई की मुखिया के तौर पर काम कर रही हैं ।
भीमव्वा ने इस लाण्ड्री सेवा के जरिये 480 महिलाओं को गरिमामयी जिंदगी प्रदान की है । 2019 में ‘कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री’ ( सी आई आई ) ने तो उनकी सामाजिक सेवा के लिये ‘वुमेन एग्जम्पलर अवार्ड ‘ से सम्मानित किया ।
भीमव्वा ने अपने परिवार की भी पूरी मदद की .... बहनों को पढाया लिखाया , उनकी शादी करवाई । 35 वर्षीय भीमव्वा के एक बेटा है जिसकी परवरिश को लेकर वह बहुत संजीदा हैं । उनका कहना है , ‘’मेरा काम तब तक जारी रहेगा , जब तक कि इन बच्चियों का यौन उत्पीड़न रोक नहीं देते । “
यह उस औरत का खुद से वादा है .... जो जानती है कि वह इस काम को कर सकती है ... ..
