रोटी

रोटी

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‘अरे ! भागता कहाँ है ? चोर कहीं का।’ मुट्ठी बंद किए भागते हुए उस लड़के के पीछे दौड़ती हुई भीड़ में से एक ने कहा।

‘पकड़ो, भागने न पाये।’ लोग चिल्लाये जा रहे थे।

भय से पीछे आते हुए लोगों को देखते हुए सहसा सामने बड़े पत्थर से उसका पैर टकराया और वह औंधे मुँह गिर पड़ा। संभलकर उठ पाता उससे पहले ही लोगों ने आकर उसे धर दबोचा।

‘चोर कहीं का। चल बता कितने रूपये है मुट्ठी में।’ एक ने कहा।

‘नहीं।’ मुट्ठी और भी ज्यादा भींचते हुए उसने कहा।

काफी प्रयासों के बाद भी उसके मुट्ठी न खोलने पर लोग मारपीट पर उतर आए।

आँखों में उभर आए आँसुओं के संग उसकी मुट्ठी खुली तो भीड़ छंटने लगी।


‘साला। एक रोटी जैसी मामूली चीज के लिए चोरी की।’ रोटी उसके मुँह पर फेंकते हुए भीड़ ने कहा और वापस मुड़ गयी।

पथराई आँखों से वह धूल में पड़ी रोटी को देखने लगा।



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