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Meeta Joshi

Inspirational

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Meeta Joshi

Inspirational

रिटायरमेंट

रिटायरमेंट

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"अरे वाह तिवाड़ी जी !आइए,आइए।कैसे हैं आप,

?आज इतने समय बाद यहाँ कैसे आना हुआ !"

"बस पेंशन फ़ाइल में फिक्सेशन को ले कोई परेशानी थी।'

"रामू ,..तिवाड़ी जी के लिए कुर्सी लाओ।"

"नमस्कार साहब।"

"कैसा है रामू ?"

"आप ही की कृपा है सर।"...सर को खास महत्त्व देने के लिए रामू ने अपने गमछे से कुर्सी साफ कर दी।

"रहने दे रामू बैठूँगा नहीं।जितनी जल्दी काम हो जाए।"

"तिवाड़ी जी चाय तो पीनी पड़ेगी।"पुरोहित जी ने कहा।

"याद है पुरोहित जी आपसे कहा करता था एक बार कुर्सी छोड़ दी फिर दुबारा कभी नहीं बैठूँगा।जिस पद से यहांँ से गया हूँ आज इस प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ गया तो अगली बार किसी सम्मान का पात्र नहीं रहूँगा।"

"चलिए पास के रेस्टोरेंट में जाकर चाय के बहाने,साथ के समय को थोड़ा जी लिया जाए।"

"वेटर दो कप चाय लाना।"

"वाह क्या बात है पुरोहित जी !आपको देखकर लगता नहीं आपका रिटायरमेंट होने वाला है।अभी भुजाएं बलिष्ठ हैं।"

"जी हाँ बस कुछ महीने बचे हैं।थक गया हूँ।अब थोड़ा खुदके लिए जीने का समय मिलेगा।बीवी-बच्चों को हमेशा यही शिकायत रही कि पिताजी ने समय नहीं दिया।बिटिया शादी हो चली भी गई।बीवी हमेशा दूर रही।एक बेटे का विवाह हो चुका है अभी एक बेटा विवाह योग्य है।अब सबके साथ....।"

तिवाड़ी जी हँस पड़े,"ख्वाब है ये सब।याद है,आप मुझे शेर कहा करते थे।रिटायर क्या हुआ शेर बूढ़ा हो गया,पुरोहित जी।न घर में किसी को मेरी जरूरत है न कोई इज्जत।एक बेटा विवाह के बाद अलग हो गया।छोटे को मेरा रोकना-टोकना कतई पसंद नहीं।कहता है ,"समय रहते आपने हमारे लिए क्या किया ?"

मैं भी क्या करता !मजबूर था,नौकरी के लिए हमेशा बच्चों से अलग रहा।आप बताइए अकेलापन किसे अच्छा लगता है ?नौकरी कर परेशानीआखिर उठाई किसके लिए ?अपने बीवी-बच्चों के लिए,लेकिन दोनों को ही मुझसे नराजगी रही।आज एक बोलो तो बच्चे चार सुनाते हैं।बहुत ख्वाब थे,ये सोच आया था कि बच्चों को कभी समय नहीं दे पाया,अब भरपूर दूँगा लेकिन मैं रिटायर हो गया नौकरी से ही नहीं अपने घर से भी।"

"देखिए तिवाड़ी जी निराश मत होईए।एक पिता बच्चों को प्यार और सम्पन्नता तो दे सकता है पर मनचाहा समय नहीं।संस्कार,समय और ममता हमेशा माँ देती है।पिता का त्याग,उसके परिवार को भौतिक सुख देने के लिए की गई मेहनत,जगह-जगह धक्के खा अपनी जवानी और अरमान जो बच्चों की सहूलियत के लिए न्यौंछावर किये,उससे उन्हें माँ परिचित करवाती है।आप निराश न हों आप कभी रिटायर हो ही नहीं सकते।आपका परिवार तब भी आप ही चलाते थे और बाद में भी आपकी मेहनत के पैसों से ही घर चल रहा है।यदि बच्चे आपके त्याग को नहीं समझते,पत्नी के लिए आप कोई महत्व नहीं रखते तो ये उनकी छोटी सोच है।आप खुश रहा कीजिए।"

"कहना बहुत आसान है पुरोहित जी।जब सच का सामना होता है सिर्फ तनाव और निराशा हाथ होती है।"

विदा ले तिवाड़ी जी धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए चल दिए।

"सर आप एक चाय और लेंगे ?"

"नहीं किशन।आज चाय बहुत अच्छी बनाई तूने।थोड़े महीने और है तेरे हाथ की चाय पीने को।"

"साब ये चाय का कमाल नहीं था।आपको पुराने दोस्त मिल गए ना,तो चाय अच्छी लगने लगी।इन चार-पाँच सालों में ही तिवाड़ी साब कितने बूढ़े लगने लगे हैं।"

"याद है तुझे इनकी !"

"हाँ साब,मैं छोटा था।आप दोनों चुपचाप मुझे कुल्फी के पैसे भी देते थे।कैसे दिखने लगे हैं साब !"


"सब अपनी गलती है।जब इंसान अपनी हद से ऊपर उठ बच्चों के लिए करता है तो वो बच्चे कभी तकलीफ और पिता के त्याग को समझ ही नहीं समझ पाते।बच्चों के लिए सब करो,उन्हें सहूलियत दो लेकिन आपकी मेहनत और दर्द का एहसास भी उन्हें होता रहे तभी तो आपके त्याग की कीमत वो समझेंगे।"

पुरोहित जी ने कह तो दिया लेकिन उस दिन से खुदके रिटायरमेंट के बाद का सोच,मन भारी हो गया।

अब हर समय उन्हें यही चिंता सताए रहती कि इतने बुलंद आदमी का भविष्य इतना निराशाजनक हो सकता है तो....।

घर पहुँचे तो पत्नी ने कहा"चलिए जी थोड़ा मंदिर घूम आते है। पार्क में बच्चों को खेलता देख अच्छा लगेगा।थोड़े दिनों बाद जब आप रिटायर हो जाएंगे तब रोज चला करेंगे।वैसे भी सारा दिन आपको घर में बैठे-बैठे करना क्या है !"

रास्ते में जगह-जगह कुर्सियां लगी थी और मंदिर कैम्प्स में भी।

"रुकिए थोड़ी थकान हो रही है।थोड़ा बैठकर....।"

फिर हँस बोली,"याद है,बचपन में अजय जब चलता-चलता थक जाता था तो आप उसे डराने के लिए कहते थे,"ये कुर्सियां रिटायर लोगों के लिए बनी हैं।"और उसके बाद न कभी वो इनमें बैठा न आपको बैठने दिया।अब आपको पद मिलने वाला है जी,कुछ समय बाद इन कुर्सियों पर आपका अधिकार होगा।"

पुरोहित जी को पत्नी का ये मजाक पसंद नहीं आया।

रिटारमेंट से पहले का दिन आ गया।सब खुश थे घरवाले पार्टी की तैयारी में लगे थे पर पुरोहित जी के विचार तो तिवाड़ी जी से मिलने के बाद बदल चुके थे।वो पुरोहित जी,जो रिटायरमेंट का इंतजार कर रहे थे,आज बाद का सोच उनके मन में सिर्फ निराशा थी।

शाम को अकेले घंटों छत पर खड़े सोचते रहे कल से कुर्सी छिन जाएगी,मैं रिटायर हो जाऊँगा।नहीं जानता किस-किस की नजरों से।बीवी के साथ पूरी जिंदगी नहीं रहा।उसने अकेले शहर में रह बच्चों को पढ़ाया,पर क्या मैंने सुख उठाया ?अकेले रहने की पीड़ा,खान-पान,जगह-जगह के धक्के,ये सब मैंने इन सबकी सुविधा के लिए ही तो झेले।कल को कहीं मेरी जगह एक बिस्तर तक सीमित न हो जाए।क्या कल से मैं इन सबके लिए बेकार की चीज हो जाऊँगा।क्या इनकी नजरों में मेरी कोई कद्र नहीं होगी।

नीचे गए तो देखा सब कल की तैयारियों में लगे है।आज पोते ने भी मुँह नहीं लगाया तो निराश हो,सो गए।

सुबह घरवालों सहित रिटायरमेंट फंक्शन में निकल गए।बहुत सी तारीफों को समेट सम्मान के साथ गाजे-बाजे से उन्हें घर लाया गया।रास्ते में लगी उन कुर्सियों को देख पांव वहीं रुक गए। शाम को पार्टी थी।चाय वाले किशन को बुलाने की बड़ी इच्छा थी पर सोचा बच्चे विरोध करेंगे तो चुप रहे।

शाम को पार्टी में देखा किशन खुशी-खुशी सबको पानी सर्व कर रहा है।जाने से पहले बच्चों ने उसे कपड़े और पिता की तरफ से सहयोग राशि भेंट कर,विदा किया।

तिवाड़ी जी भी जाने से पहले बोले,"आज भागादौड़ी में बहुत थक गए होंगे।कल आराम से उठना।मर्जी आए तब तक लेटे रहना।कोई चिंता नहीं क्योंकि कोई आपको जगाने नहीं आने वाला।"

रात को कल से नए दिन की शुरुवात का सोच पुरोहित जी बेचैनी में आधी रात बिता सो गए।

सुबह गहरी नींद में थे कि अजय की आवाज़ आई, "पापा,पापा उठो !चलो आज से घूमने जाना है।आपने कहा था रिटारमेंट के बाद चलेंगे।"

दोनों बाप-बेटा घंटो साथ घूम कर आए।आज बरसों बाद अजय के इतना करीब खुदको महसूस किया।

घर पहुँचे तो बिट्टू हल्ला मचाने लगा,"दादाजी अब आप रोज मुझे पार्क लेकर जाओगे और मेरे साथ खेलोगे भी।"

बहू नाश्ता ले आई "बाऊजी अब अपना रूटीन चेंज कर दीजिए आप ऑफिस जाते थे तो हम नाश्ता नहीं बनाते थे आज से सब साथ बैठ नाश्ता किया करेंगे।"

पत्नी भी सारे दिन साथ बैठ जवानी के दिन याद करती रही।कुछ दिन बीत गए घर का माहौल बहुत खुशनुमा था,पुरोहित जी की सोच के विपरीत।बच्चे उन्हें सारे दिन व्यस्त रखते,करते चाहे मनमानी लेकिन पिता को पूरी इज्जत देते।धीरे-धीरे उनका नजरिया बदलने लगा।

पत्नी का हाथ थाम बोले,"सुधा पूरी ज़िंदगी बीत गई जिन दिनों तुम्हारे साथ रहना चाहिए था कर्तव्य पूरे करने में लगे रहे।आज तुम्हें दिल से धन्यवाद देना चाहता हूँ कि अकेले रहकर भी तुमने मेरे बच्चों की बहुत अच्छी परवरिश की है।उन्हें मेरी तकलीफों का आभास है।दूर रहकर भी बच्चे मुझसे इतना जुड़े रहे।मेरे मान-सम्मान में कहीं कोई कमी नहीं।इसकी वजह सिर्फ तुम हो।जो मेरी गैर -मौजूदगी में भी मेरी मौजूदगी का एहसास करवाती रहीं।"

शाम को बेटा और पत्नी सहित मंदिर घूमने आए।अजय ने देखा,माँ पार्क में लगी चेयर देख उस पर बैठ गई और पिताजी का हाथ पकड़ उन्हें चिढ़ाते हुए बोली,"अब तो बैठ जाइए आपका अधिकार है इस पर....।"

पुरोहित जी मुस्कुरा दिए और बेटे का हाथ पकड़ बोले,"नहीं मैं अभी रिटायर नहीं हुआ हूँ।मेरे बच्चे मुझे कभी रिटायर नहीं होने देंगे।अभी मेरे घर को मेरी उतनी ही जरूरत है जितनी पहले थी।"


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