रिश्तों की महक

रिश्तों की महक

3 mins
572


रिश्ता कब किससे जुड़ जाए पता नहीं होता पर कुछ रिश्ते हमेशा के लिए जुड़ जाते हैं और एक खूबसूरती के साथ मन में बस जाते हैं। आज रितु के साथ भी अनमोल बहुत से रिश्ते बँध गये थे। खूबसूरत रिश्ते पति, ननद, सास सभी कितना प्यारा रिश्ता उसे मिला है आज। रितु अपनेआप में खोई थी।

"रितु क्या कर रही है ? जल्दी से तैयार हो जा सब मुँह दिखाई के लिए आते ही होगें।" सुनंदा ने अपनी नयी-नवेली बहू से कहा। 

हाँ अम्माँ बस तैयार ही हूँ। तैयार है मतलब.. यही बस ? सुनंदा ने पूछा ।हाँ अम्माँ मुझे ज्यादा मेकअप पसंद नहीं है। अरे ! अभी न करेगी तो कब करेगी बच्चे होने के बाद तो सब स्वाहा हो जाता है। जा अच्छे से तैयार हो जा मुझे एकदम सजी- संवरी बहू चाहिए। अभी नयी-नयी शादी हुई है। जरा पहन ओढ़ तो रंजन भी तेरे पास ही मंडराता रहेगा। समझी... सुनंदा ने बहू को चिढ़ाया।

अम्माँ आप भी ...कह कर रितु शरमाती हूई भाग गई। सुनंदा की सारी सहेलियाँ और मोहल्ले वाले आ चुके थे। बस रितु के आने का इन्तजार था जैसे ही सुनंदा रितु को लेकर आई सब बस देखते ही रह गए। दुल्हन के लिबास में वो अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। सब के बीच बैठी वो रंजन को ढ़ूंढ रही थी। रंजन दूर कोने से उसे निहार रहा था।

आँखों ही आँखों में इशारे होने लगे। एक -एक लम्हा भारी बीत रहा था, दोनों के लिए मिलने की बैचैनी बढ़ती ही जा रही थी। मुँह दिखाई की रस्म खत्म हो गई थी, और रात भी काफी। मिलने की जल्दी.. पर रस्मों की बाढ़ सी आ गई थी।

नहीं नहीं भैया ये बाकी है.. वो बाकी है.. अभी।

मैं बार- बार चक्कर काटता और हर बार यही सुनने को मिलता। "अरे रंजन तु यहाँ क्या कर रहा है" जा कमरे में। "कौन सा कमरा?" रंजन ने पूछा। "अपने कमरे में और क्या" माँ ने बोला।

"पर माँ, वहाँ तो न जाने कौन सी रस्में चल रही हैं।"

"रस्में कौन सी रस्में ?" 

"अब कोई रस्म नहीं बची पागल, सब तुझे उल्लु बना रहे हैं। चल सबको भगाती हूँ! अरे छोरीयों! कौन सी रस्म हो रही यहाँ जरा बताना मुझे!" उसके बाद तो सब भाग खड़े हुए। रंजन जा अंदर बस यही रस्म बाकी है उसे चिढ़ाते हुए निकल गई।

"माँ तुम भी", वो अंदर आ गया। शर्माई सी रितु गजब सुन्दर लग रही थी धीरे से उसके करीब बैठ गया हाथों में हाथ लिए एक दूसरे को निहारते रहे चुपचाप।

"अरे ! भैया अब कुछ बोलोगे नहीं.. तो रात बीत जायेगी।" पलंग के नीचे से आवाज आई रंजन ने नीचे देखा, दो बहनें पलंग के नीचे थीं। फिर फुर्ती से भागीं। रंजन ने पूरे कमरे को अच्छे से देखा और लाइट बंद कर दी और दोनों चुपचाप एक दूसरे को देखकर हँस रहे थे। रंजन ने अपनी रितु को अपने बांहों में भर लिया। कितने लम्बे इंतजार के बाद ये लम्हा मिला था उन्हें...

ऐसा लग रहा था जैसे "वक्त यहीं थम सा जाए।"

जिंदगी में हमारा हर पल कुछ नया होता है। कुछ पल खास होते हैं जिन्हें हम कभी नहीं भूल पाते आपके पास भी हैं न.. कुछ ऐसी ही यादें जो हमें कुछ शरारतें याद दिला जाती हैं और आप उसे याद कर पल भर में ही मुस्कुरा देती हैं। हैं न जरूर उस पल को याद कीजिए और जिंदगी हँस कर जियें।मैंने तो रिश्तों की पोटली में आज सास,ननद,पति सभी को बाँध लिया है।रिशतों की ये पोटली हर सुख-दुख हँसी गम में मेरे साथ रहेंगे ये पूरा यकीन है आपने भी जरूर बाँधी होगी अपने घर में ये खूबसूरत पोटली है न।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract