चुगली शुरू और कान खड़े हमारे
चुगली शुरू और कान खड़े हमारे
अरे अरे आप तो परेशान हो गए है, हेडिंग पढ़कर मैं आपकी नहीं उस चुगली की बात कर रही हूं जो ये मोबाइल महाराज हमसे छीन लिए है।"हाय" वो चुगली अब मुआ कहाँ सुनने को मिलती है। अरे वहीं जो शर्मा आंटी और मोना आंटी के आने पे होता था और फिर हमारे कान ऐसे खङे की पुछो ही मत। याद है न। ये मोबाइल जब से आया वो मजा ही नहीं।"हाय"वो शाम की चाय में जो मिठास आती थी ओह क्या बताऊं मोबाइल मेरा दुश्मन अब मुझपे ही हसँता है।"हाय"कहाँ गए वो दिन जो मोबाइल ने छीन लिया।
कुछ यादें ऐसी होती है जो हमेशा हमारे जेहन में रहती है। बचपन की वो यादें आज भी जेहन में है। जब भी मायके गई मैं उस घर में जरूर गई जहां बचपन से शादी होने तक रही थी मैं। मेरी आंखों के सामने आज भी वो तस्वीर आ जाती है जब हम सब कुछ बड़े हो गये थे और सब समझने लगे थे। कोई भी अगर बगल की आंटी मम्मी से मिलने आती तो एक के बाद एक करके चार-पांच आंटी जमा हो जाती थी, फिर सिलसिला शुरू होता चुगली का।
किसी न किसी की चुगली शुरू और हमारे कान खड़े। डांट कर भगाया जाता और फिर धीरे धीरे हम वहीं पहुंच जाते। चुगली सुनकर मजा आता था जानकारी नमी नमी मिल जाती। शर्मा जी से बर्मा जी की बेटी और बेटों की कहानी तो कभी उसकी साड़ी मेरी साड़ी से अच्छी कैसे पर बहस... ओह वो दिन भी गजब थे। आज समझ पाती हूं हम सब कितने पागल थे। उनके साथ साथ अपना भी समय बर्बाद किया।
इस बार अपने बच्चों को लेकर गयी थी अपने बचपन के घर में... बच्चों को हर वो जगह दिखाई जहां हम खेलते थे, पढ़ते थे, अपना स्कुल, कालेज सबकुछ उन्हें भी अच्छा लगा, सब देखकर।
एक मजेदार बात - बचपन में एक अमरूद का पेड़ था मुझे चढ़ना नहीं आता था, फिर भी मैं चढ़ गई। अब उतरूं भला कैसे काफी देर के बाद मैं कुदने को तैयार हो गई। पेड़ से कुद भी गयी और मेरे कपड़े उसमें अटक गये और साथ में मैं भी। अब उल्टी लटकी थी बेताल की तरह सब मजे ले रहे थे और मैं चिल्ला रही थी, फिर बड़े लोगों ने आकर मुझे उतारा।
ओह कितनी खूबसूरत यादें होती है ये जो शायद हमेशा हमारे दिल में रहेगी।