STORYMIRROR

Vijay Kumar Vishwakarma

Drama Crime Others

4  

Vijay Kumar Vishwakarma

Drama Crime Others

रिहाई

रिहाई

4 mins
244

कई सालों से जेल की अंधेरी कोठरी में बंद उन आधा दर्जन कैदियों को जब रिहाई की खबर लगी तो उन्हें अपने कानों पर विश्वास न हुआ। उन्हें अपना घर-परिवार चलचित्र की तरह आँखों में तैरता दिखाई देने लगा। गांव की कोहरे वाली सुबह। आवाज करती भेड़ बकरियों के झुंड के साथ लोगों की चहल पहल। चूल्हे के धुएँ से खांसती अम्मी और हुक्का गुड़गुड़ाते अब्बाजान।


पहाड़ों पर दौड़ते हुए चढ़ने का जुनून और साथियों के साथ फूलों की क्यारियों के बीच छुप छुप कर कतारबद्ध काम करने में जुटी हूर जैसी लड़कियों को घंटों तकना। दोस्तों से बाजी लगाना कि वो फौजियों की नजर में आये बिना सरहद की कटीली तारों को छूकर वापस आ सकते हैं और फिर जीतने पर अजीब ढंग से उछल उछल कर नाचना। यादों की वो महक उस बदबूदार कोठरी में भी उस दिन बेहद अच्छी लग रही थी। जेल में बेरहमी से हुई पिटाई और शरीर के बेतरतीब जख्मों की टीस भी रिहाई की एक खबर से ही काफूर हो चुकी थी।


कल तक उन कैदियों के मुंह से उस मुल्क के फौजियों की लिए बद्दुआ निकलती थी जिन्होंने उन्हें गलती से सरहद पार कर उनके मुल्क की धरती पर पांव रखने पर, जासूसी के शक में लड़कपन और जवानी को जुल्म भरी कैद में झोंक दिया था। लेकिन अब उनके मुंह से उन बेरहमों के लिए भी दुआ निकल रही थी क्योंकि उन्हें आजाद किया जा रहा था।


रिहाई के पहले कुछ हफ्तों तक उनके जख्मों पर रोजाना मरहम पट्टी कर दवाई और इंजेक्शन भी दिया गया जिससे वे जल्दी पूरी तरह ठीक होकर सरहद पर बनी गोपनीय सुरंग से सरक कर रेंगते हुए अपने मुल्क लौट सकें। कैदियों को सख्त हिदायत दी गई थी कि वे वहां के जुल्म, कैद और किसी भी सिपाही का हुलिया या जेल की बनावट आदि किसी बारे में अपने मुल्क में किसी को कुछ न बतायेंगे। उन्हें डराया गया कि उनके खुफिया जासूसों की नजर उनपर हरदम बनी रहेगी, इसलिए वे एहतियात बरतें और अपने वापस लौटने की खबर किसी को न होने दें।


रिहाई के लिए उन्हीं कैदियों को चुना गया था जिनके रिश्तेदार देश के दूसरे शहरों में रहते थे। रिहा होने जा रहे कैदियों को छुपकर अपने रिश्तेदारों के पास जाकर रहने की सलाह और खर्चे के लिए कुछ रूपये भी दिये गये। उन सिपाहियों की उस रहमदिली से रिहा हुए कैदी बीते जुल्म को भूल गये और उन्हें दुआ देते हुए सुरंग के रास्ते चुपके से अपने गांव लौटे और फिर अपने वालिदों से दरयाफ्त कर अन्य किसी की जानकारी में आये बिना देश के दूसरे हिस्सों में रहने वाले अपने अपने रिश्तेदारों के घर पहुंच गये।


रिहाई के पहले उस मुल्क के अफसरों से मिली सलाह के अनुसार वे हर दूसरे दिन रिश्तेदारों का घर बदल देते जिससे उन्हें पुलिस गिरफ्तार कर बेवजह पूछताछ में परेशान न करे। वे अपने देश की खुली हवा में सांस लेते हुए जी भर कर पकवानों को हजम करने में जुटे थे मगर पंद्रह दिन बाद जब उनकी सांस फूलने लगी और शरीर तपने लगा तो उनके रिश्तेदारों ने गुपचुप ढंग से नीम हकीमों से उनका इलाज कराया मगर उनकी हालत बिगड़ती गई।


चंद दिन पहले लम्बी कैद से रिहा हुए उन कैदियों को जब तक सरकारी अस्पताल पहुंचाया गया तब तक देर हो चुकी थी। अलग अलग शहरों में मौजूद वे सभी कैदी एक एक कर दम तोड़ दिये। उसी दरम्यान दुनिया भर में एक नई संक्रामक बीमारी फैलने की सुगबुगाहट सुनाई देने लगी। उन कैदियों के रिश्तेदार और उनके संपर्क में आये पड़ोसी तथा परिचित सभी सिलसिलेवार बीमार पड़ने लगे।


कैदियों की भटकती रूह कुछ दिनों बाद सरहद पार उसी जेल की इमारत में पहुंची जहां अन्य कैदियों की रिहाई की तैयारी चल रही थी। एक गुप्त कमरे में कुछ अफसर शराब की घूंट अपने हलक में उतारते हुए चर्चा कर रहे थे। वर्दी धारी एक अफसर कारतूस हाथ में लेकर कह रहा था - "इससे एक ही दुश्मन मारा जाता लेकिन अब ......।" वह कारतूस टेबिल पर रखकर वहीं रखी एक इंजेक्शन उठाकर उसे घूरने लगा। अन्य वर्दी धारी शैतानों की तरह हंस रहे थे।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama