रहस्यमयी तहखाना
रहस्यमयी तहखाना
"मम्मा मुझे अपना पुराना घर पसंद था क्या हमे यहा आना ज़रुरी था?"छोटे से कृष ने अपनी मां से पूछा।
"कृष चुप चाप खाना खाओ।एक ही बात कितनी बार बतानी पङेगी।उसकी मां ने उसे डांटा।
आरव बेटा चलो कृष और नेहा को कमरे मे ले जाकर सुला दो सुबह स्कूल भी जाना है।"
"ओके ममा।"आरव ने कहा और सबको कमरे में ले गया।
मीरा के तीन बच्चे थे।आरव 15 साल का था और 11 क्लास मै था कृष 11 साल का था और नेहा7 साल की थी।वह अपने शौहर आकाश से अलग हो गयी थी।इसी लिए वह अपने बच्चों के साथ यहां शिफ्ट हो गयी थी।
"आरव उठो ,आरव उठो।" कृष की आवाज पर उसकी आंखें खुली।
"क्या हुआ ? इतनी रात को क्यों चिल्ला रहे हो?"आरव आँख मलते हुए बोला.
"मुझे नींद नहीं आ रही चलो चले अपना घर देखते है". कृष ने कहा उसकी आँखे चमक रही थी.
"पागल हो गए हो क्या ये काम तो हम सुबह भी कर सकते है". आरव ने कहा
"ठीक है तुम मत आओ मै अकेला ही जा रहा हु. कृष ने गुस्से मे कहा और अपनी टोर्च लेकर बाहर चला गया मजबूर होकर आरव को भी उसके पीछे जाना पड़ा.
"वेयरहाउस कितना डरावना लग रहा है रात में है ना". कृष ने अँधेरे में अपनी टोर्च दिखाते हुए पूछा.
"हां, लगता है यहाँ कई सालो से कोई नहीं आया"आरव ने जाले लगी हुयी दीवारों को देखते हुए कहा।
"आरव जल्दी आओ यहाँ की ज़मीन खोखली है". कृष की आवाज़ पर वह चौका.
दोनों ने ज़मींन के ऊपर जमीं धूल को साफ किया. तुम सही कह रहे थे कृष ये तो कोई दरवाज़ा लगता है. आरव ने कहा
"क्या सच में शायद ये तहखना के दरवाज़ा है चलो अंदर चलते है. कृष ने खुश होते हुए कहा.
पागल मत बनो हमें अब वापस चलना चाहिए". आरव ने उसे डांटा
"ऐसा क्यों नहीं कहते की तुम्हे डर लगता है डरपोक कहिके". कृष ने उसका मज़ाक उड़ाया
ठीक चलो इसे खोलते है... बहुत मेहनत करने के बाद भी दरवाज़ा नहीं खुला वह बिलकुल जाम था तभी कृष एक बढ़ा सा स्क्रू ड्राइवर ले आया.शायद इससे काम बन जाये.
हा लाओ. आरव ने जल्दी से लिए थोड़ी देर बाद दरवाज़ा चरर की आवाज़ के साथ खुल गया..वाह.. सीढ़िया मिल गयी हमें चलो नीचे चलते है. कृष बोला वह बहुत खुश था उसे एडवेंचरस काम पसंद था.
एक बार फिर से सोच लो कृष.. आरव ने कहा लेकिन कृष उसकी बात सुनने से पहले ही तहखाने में उतर गया।सदियों से बंद पढ़ा तहखना बहुत भूतिया लग रहा था और चारो तरफ बढे बढ़े जले लगे थे.
"ये कितना डरावना है"... कृष बोला
"क्यों डर गए?" आरव बोला तभी तहखने का दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया. आरव दरवाज़ा बंद हो गया अब क्या करें? कृष चिल्लाया. और सीढ़ियों पर दौड़ा. और तभी उसके हाथ से टोर्च गिर गयी। आरव ने उसे देखा तो वह भी डर गया एक बड़े से मकड़ी के जाले में फंसा हुआ था उसका सिर्फ चेहरा दिख रहा था . आरव बचाओ.. कृष चिल्ला रहा था
आरव ने जल्दी से अपने हाथ में पकड़ी हुयी लालटेन जाले पर फ़ेंकी जाले में आग लग गयी और कृष निचे गिर गया और जल्दी से अपनी टोर्च उठाकर आरव की तरफ भागा । दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ा और दौड़ने लगे जाला अब भी उनका पीछे था. इस बार आरव के पैर मे फँसने ही वाला था की आरव ने उछाल कर खुद को बचा लिया ।
आरव वहां रौशनी दिख रही शायद वह वापस जाने का रास्ता है.. कृष ने कहा और दोनों जल्दी से वहा पहुंचे वह एक दरवाज़ा था वो दोनों जल्दी से दरवाज़ा खोल कर अंदर भागे मकड़ी के जले ने पूरी रफ़्तार से उन पर वार किया लेकिन तबतक दरवाज़ा बंद हो चूका था
यहाँ कितना सन्नाटा है... कृष बोला उसकी आवाज़ चारो तरफ गूंजने लगी ।
ये शायद बाहर निकलने का रास्ता नहीं है कृष हम तो कही और फँस गए है.. आरव ने कहा.
क्या हमें किसी को आवाज़ देनी चाहिए । कृष ने पूछा.
अच्छा किसे आवाज़ देंगे तुम्हे लगता है कोई है सुनेगा ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है समझे।अब देखो हमलोग इस तहखाने की दुनिया मे फंस गए है । आरव ने उसे डांटते हुए कहा
आई एम सॉरी । कृष बोला वह भी डरा हुआ था
वह जगह बिलकुल सुनसान थी चारो तरफ सिर्फ अंधेरा और सपाट ज़मीन और चारो तरफ उनकी आवाज़े गूंज रही थी
वह रहा दरवाज़ा ।....कृष चिल्लाया उनसे पांच छ मीटर की दुरी पर बढ़ा सा दरवाज़ा था किसी पुराने किले के दरवाज़े जैसा जो टोर्च की हलकी सी रौशनी में और भी डरावना लग रहा था.
तभी कृष दरवाज़े की और झपटा....
आआआ..... कृष की चीख़ चारो तरफ गूंज उठी।
...
कृष की आवाज़ चारो तरफ गूंज उठी । वह ज़मीन के निचे गिर गया था जिसे वह लोग ज़मीन समझ रहे थे वह खायी थी । आरव को एक पल के लिए लगा की उसने अपने भाई को खो दिया ।
कृष ....... आरव चिल्लाया वो रो रहा था..
मै ठीक हु... मै ठीक हु..तभी उसे कृष की आवाज़ सुनाई दी..
मुझे ऊपर खींचो.... कृष चिल्लाया वह ज़मीन पर चढने की कोशिश कर रहा था आरव ने जल्दी से उसे ऊपर खींच लिया।और दोनों एक दूसरे के गले लग कर रो दिए ..
आरव मुझे मम्मा के पास जाना है क्या अब हम लोग वापस नहीं जा सकेंगे.... कृष ने रोते हुए कहा..
बिलकुल वापस जायेंगे बस हमें हिम्मत नहीं हारनी... आरव ने उसे समझाया जबकि अंदर से वह भी डरा हुआ था..
लेकिन कैसे पहुंचेंगे उस दरवाज़े तक यहाँ तो रास्ता ही नहीं है क्या रास्ता अपने आप निकलेगा .... कृष ने कहा..तभी बहुत ज़ोर की गढ़गढ़ाहट शुरू हो गयी और पूरी ज़मीन हिलने लगी... और वह दोनों सहम गए.. तभी खायी मे से बहुत सारे छोटे छोटे रास्ते निकल गए..
इतने सारे रास्ते इनमे से सही रास्ता कोनसा होगा आरव... कृष ने पूछा..
ये शायद कोई ( पहेली ) है और हमें इसे सोल्व करना होगा.. आरव सोचते हुए बोला
लेकिन कैसे हमें तो रूल्स भी नहीं पता.. कृष बोला
मुझे पता है कृष...
तुम्हे... पर कैसे?...
जब तुमने रास्ता निकलने की बात कही तभी रास्ता हमारे सामने आया अब हमें इन रास्तो को आज्ञा देनी होंगी. इन्हे जोड़ना होगा .. आरव ने कहा और एक कदम आगे बढ़ा वो थोड़ी ऊँचाई पर था वो रास्ते बहुत ध्यान से देखने लगा...उसे अपने सामने वाले रास्ते की और इशारा किया लेकिन शायद वह गलत रास्ता था वो धमाके के साथ टूट गया.. धीरे धीरे उसने रास्ते जोड़ने शुरू कर दिए और एक लम्बा सा पुल बन गया..
वाह.. आरव तुमने कर दिखाया.. जल्दी चलो अब हमें दरवाज़े के पास पहुंचना है.. कृष ने कहा और दोनों ने जल्दी से पुल पर किया उनके वहा पहुँचते ही पुल धमाके के साथ टूट गया.. और उसका नामोनिशान मिट गया..
ये दरवाज़ा तो किसी महल का लगता है... आरव ने दरवाज़े को गौर से देखते हुए कहा..
वह बहुत पुराना दरवाज़ा था उस पर बहुत नक़्क़ाशी बनी हुयी थी जो धूल और जाले की वजह से साफ पता नहीं चल रही थी..
क्या हम वापस घर जा पाएंगे.. कृष ने उससे पूछा उसकी आँखों में बेयक़ीनी थी
बिलकुल जायेंगे... लेकिन कब ये नहीं पता.. आरव ने कहा..
चलो इसे खोलते है.. कृष ने कहा और आरव के रोकते रोकते दरवाज़े को दरवाज़े खोलने चला गया दरवाज़ा छूते ही वह करंट खा कर ज़मीन पर गिर गया..
तुम ठीक हो.. आरव ने उसे सहारा देकर उठाया
आह.... हाँ.. मै ठीक हु लेकिन दरवाज़ा कैसे खुलेगा.. कृष ने कराहते हुए पूछा.
शायद हमें इसकी चाबी ढूंढनी पड़ेगी.. आरव बोला.
लेकिन चाबी मिलेगी कहा?.. कृष ने पूछा
मेरे जेब में है निकाल लो......इडियट... आरव गुस्साया..
सॉरी..
कुछ ही देर मे उन दोनों ने चारो तरफ देख लिया लेकिन उन्हें ऊँची ऊँची दीवारों के अलावा कुछ भी नहीं मिला..
अब हम क्या करेंगे भाई... कृष रोने लगा पहली बार उसने उसे भाई बुलाया था..
कुछ नहीं होगा कृष हम यहाँ से बाहर निकलेंगे हौसला रखो हम डरपोक नहीं है... आरव ने उसके आंसू पोछते हुए कहा..
चलो दरवाज़े के पास चलते है शायद वह खुद ही एक चाबी हो... आरव ने उठते हुए कहा..
दरवाज़ा धूल से अटा हुआ था आरव ने अपनी जेब से रुमाल निकाल कर उसे साफ किया..
ये क्या है कृष.. देखो यहाँ तीन तारे है जिनमे से दो तारे चमक रहे है लेकिन ये तीसरा तारा नहीं चमक रहा... आरव ने कृष को दिखाते हुए कहा
तुम सही कह रहे हो इस तारे की जगह खाली है
लेकिन वह तीसरा तारा हमें कहा मिलेगा.. कृष बोला.
हमें हिंट मिल गया है तारा भी हम ढूंढ़ लेंगे.. तुम बढ़ी वाली टोर्च नहीं ले सकते थे.. अँधेरे की वजह से कुछ दिख ही नहीं रहा.. आरव गुस्साया
तुम्हे याद था तो तुम्ही रख लेते.. कृष ने नाक भौ चढ़ाये.. वो दोनों तारा ढूंढने लगे..
आरव वह रहा तारा... मै उसे ले आता हु.. कृष ने कहा... तारा एक बढ़े से पत्थर पर चमक रहा था अँधेरे मे सिर्फ तारा ही दिख रहा था लेकिन आरव को पता था की इस जादुई दुनिया मे क़दम क़दम पर खतरा है
नहीं कृष रुको आगे कोई खतरा होगा.. आरव के चिल्लाने बाद भी वह उस पत्थर पर चढ़ गया
आआआआ....उसकी चीख़ हर तरफ गूंज उठी
फिर से पढ़ गए ना मुसीबत में और करो जल्दबाज़ी.. आरव गुस्साया और उसकी और लपका
मेरी मदद करो... कृष चिल्लाया उसने तारा अपने हाथ में ले लिया था..
जिसे वह दोनों पत्थर समझ रहे थे वो पत्थर नहीं बल्कि एक विशालकाय पत्थर का राक्षस था कृष उसके हाथो पर चिपका हुआ था और वो ज़ोर ज़ोर से अपने हाथो को दीवार पर मर रहा था आरव उसका ध्यान भटकाने के लिए खुद आगे आ गया और कृष उसके हाथ से फ़िसल गया..
कृष जल्दी जाओ वह तारा दरवाज़े पर लगाओ तब तक मै इसका ध्यान भटकता हु... आरव चिल्लाया..
मै तुम्हे अकेला छोड़ कर नहीं जाऊंगा.. कृष बोला..
पागल मत बनो जल्दी करो.. आरव चिल्लाया तभी राक्छस का हाथ ज़मीन पर पढ़ा और वहा की ज़मीन टूट गयी आरव हर तरह से खुद को बचाने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसके पत्थर के हाथो से बचना नामुमकिन था.. कृष दौड़ता हुआ दरवाज़े के पास गया और तारे को उसकी जगह पर फिट कर दिया. चररररररर..... की आवाज़ के साथ दरवाज़ा खुल गया..
आरव जल्दी आओ दरवाज़ा खुल गया... कृष ख़ुशी से चिल्लाया.. आरव उसके थोड़े दूर ही पहुंचा था राक्छस ने ज़मीन पर वार कर दिया और पूरी ज़मीन हिलने लगी और जगह जगह से टूटने लगी आरव ज़ख़्मी हो गया था वो वही गिर गया
. तुम जाओ कृष... भागो.. उसने लड़खड़ाती साँसो से कहा..
नहीं बिलकुल भी नहीं मै तुम्हे छोड़ कर नहीं जाऊंगा... कृष रोते हुए बोला और दौड़ता हुआ आरव के पास आया और उसे सहारा देकर दरवाज़े के पास लाने लगा ज़मीन टूटने लगी थी राक्छस भी खायी मे समय गया और जैसे ही उन दोनों के दरवाज़े के अंदर पैर रखते ही बाकि बची भी ज़मीन गिर गयी.....
.....
दोनो के दरवाज़े के अंदर प्रवेश करते ही दरवाज़ा गायब हो गया...
ये तो हमारा घर नहीं है... कृष बोला
ये कोई जंगल है.. आरव ने नीमबेहोशी की हालत मे कहा..ये बहुत घना जंगल था..
सुबह होने वाली है आरव.. देखो सूरज निकल रहा है.. कृष के कहने पर उसने सामने देखा
पहाड़ो के पीछे से सूरज झाँक रहा था.. उसकी गुलाबी रौशनी सारे आसमान में फैली थी.. तभी उसे पास ही कही झरने का शोर सुनाई दिया..कृष यहाँ आस पास झरना है चलो पानी पीते है.. आरव ने कहा उन्हें थोड़ी ही दूर पर झरना मिल गया और उन दोनों ने अपनी प्यास बुझायी हाथ मुंह धुले और थक कर वही बैठ गए..
सब मेरी वजह से हुआ है ना आरव मेरी वजह से तुम भी यहाँ फंस गए.. कृष ने कहा उसकी आँखों मे आंसू थे
ऐसा कुछ भी नहीं है जो होना था हो गया हिम्मत मत हारो.. आरव ने उसे दिलासा दिया
अब वह काफ़ी. बेहतर महसूस कर रहा था..
हम वापस कब जायेंगे घर कैसे निकलेंगे यहाँ से..उसने आरव के कंधे पर टेक लगाते हुए कहा.. आरव ने कोई जवाब नहीं दिया.. दोनों कुछ ही देर में थकान की वजह से वही सो गए
शश्शाश्शश.....अचानक से कृष ने अपने कानो पर हाथ मारा एक मक्खी उसे परीशान कर रही थी.
आआआआआह... कृष के चिल्लाने पर आरव की आँख खुल गयी.
क्या हुआ?..आरव ने पूछा..
मक्खी ने काट लिया उफ़ ...
मक्खी नहीं मच्छर ने काटा होगा इडियट.. आरव ने उसका मज़ाक उड़ाया..
तभी कृष ने अपनी उंगलियां ऊपर की उनसे बहुत तेज़ी से खून रिस रहा था..
यहाँ की मक्खीया खून पीती है क्या?.. कृष ने अपनी उंगलियों को झटकते हुए कहा..
लगता तो है..क्या तुम्हे भूक नहीं लगी चलो कुछ खाने के लिए ढूंढ़ते है... आरव ने कहा और दोनों खाना ढूंढने लगे थोड़ी ही देर मे उन्हें आम का पेड़ मिल गया और उन्होंने उसे कहा लिया..
आरव सोचो एक छोटी सी मक्खी मेरा इतना खून पी गयी उनका पूरा झुण्ड होता तो हम क्या करते... कृष के कहने पर वह भी सोच मे पढ़ गया.. तभी उन्हें बहुत ज़ोर की भंभनाहट सुनाई दी उन्होंने पीछे मूढ़कर देखा मक्खीयो का पूरा झुण्ड उनकी और आ रहा था ऐसा लग रहा था जैसे काली आंधी हो....
कृष भागो.... आरव ने उसका हाथ पकड़ा और दोनों दौड़ पढ़े एक झुण्ड आरव के पास पहुँच गया था उसने जल्दी से अपनी जैकेट उतारी एयर उन्हें भगाने लगा एक मक्खी उसके कान पर लिपट गयी थी बड़ी मुश्किल से उसने छुढ़ाया और नीचे फेक दिया और सामने एक गुफा मे दोनों घुस गए..
आखिर उन पिशाच मक्खीयो से पीछा छूटा.. कृष ने ठंडी सांस भरते हुए कहा..जबकि आरव उसे देख कर रह गया..
दोपहर होने वाली थी सूरज बहुत तेज़ी से चमक रहा था दोनों किसी इंसान को खोज रहे थे या फिर कुछ ऐसा जो उन्हें भी नहीं पता था....
दोनों चलते जा रहे थे तभी उन्हें एक बहुत तेज़ आवाज़ सुनाई दी..और अचानक से बहुत तेज़ हो गयी..
शायद तूफान आने वाला है... आरव बोला.. और कृष का हाथ मज़बूती से पकड़ लिया..
लेकिन तूफान आने वाला नहीं था.. बल्कि आ चूका था कुछ ही पलों मे वो दोनों धुंध में खो चुके थे बस उनकी चीखे बाक़ी रह गयी थीं...
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उफ्फफ्फ्फ़... कृष हलकी सी कराह के साथ उठा उसका सर घूम रहा था..लेकिन वो जल्द ही संभल गया था.. उसने अपने चारो और नज़र दोढ़ाई.. वो एक बहुत खूबसूरत कमरे मे था खिड़कियों पर बहुत ही खूबसूरत परदे झिलमिला रहे थे और वह एक बढ़े से मखमली बिस्तर पर सोया हुआ था उसने बहुत ही सुन्दर रेशम का sleeping gown पहना हुआ था उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह कोई राजकुमार हो वह हैरत से सबकुछ देख रहा था तभी दरवाज़ा पट... की आवाज़ के साथ खुल गया..और एक बूढा आदमी अंदर आया
आप होश मे आ गए योर हाईनेस! उस आदमी ने उसके सामने सर झुकाते हुए पूछा...
आप कौन है? मै कहा हु... औ.. और मेरा भाई कहा है?... उसने एकसाथ कई सवाल किये
आप यहाँ हमारी प्रिंसेस एलिज़ा के मेहमान है उनके सिपाहियों ने आपकी जान बचायी थी.. उस आदमी ने कहा..
मेरा भाई वो कहा है... कृष ने पूछा
उन्हें बस आप ही मिले थे लेकिन आप घबराये नही आपके भाई को हम ढूंढ लेंगे... आप मेरे साथ चले प्रिंसेस आपसे मिलना चाहती है... उस आदमी ने कहा.. और कृष उसके पीछे चल दिया..
आआ... आआ... हम्म... हम्म्म..
एक बहुत ही सुरीली धुन उसके कानो मे गुंजी वो जल्दी से उठ बैठा..... शाम हो चुकी थी और जंगल मे वो बिल्कुल अकेला था.. उसे कृष का ख्याल आया लेकिन वह उस धुन की ओर खिंचा जा रहा था...वह उसके बहुत करीब सुनाई दे रही थी.... जो उसके कानोें में रस घोल रही थी..
वो सुरीली धुन उसके बहुत क़रीब से आ रही थी. वो एक लड़की थी पत्थर पर बैठ कर शायद बांसुरी बजा रही थी उसकी पीठ आरव की तरफ थी उसने बहुत ही खूबसूरत सिल्क का गाउन पहना हुआ था उसके बाल पीठ से नीचे तक जो हवा मे लहरा रहे थे. उस लड़की ने शायद आरव की आहट महसूस कर ली थी वह चौंक कर खड़ी हो गयी और आरव की और मुढ़ी.
आरव आश्चर्य से उसे देखे जा रहा था उसने इतनी सुन्दर लड़की अपनी दुनिया मे नहीं देखी थी उसकी आंखे नीले रंग की थी वो कोई परी लग रही थी लेकिन उसके माथे पर आरव की निगाह ठहर गयी उसके माथे पर नीले रंग का खूबसूरात हीरे लगे हूये थे जो बहुत तेज़ी से जगमगा रहे थे और कोई टिका नहीं था बल्कि उसकी त्वचा मे ही जुड़ा हुआ था बिलकुल ऐसा लग रहा था जैसे उसके माथे पर खूबसूरत नक्कशी की गयी हो
हैलो मै आरव हूँ? आप कौन है? आरव ने उससे पूछा
मै जानती हूँ तुम्हे यहाँ मैंने ही बुलाया है. वो लड़की बोली । और आरव उसकी बात पर चौक गया ।
तुमने हमें बुलाया...पर क्यों? आरव को बहुत आश्चर्य हो रहा था । उसने इतनी मुश्किलें झेली अपने भाई को भी खो दिया था उसे उसपर गुस्सा भी आ रहा था.. लेकिन उस लड़की ने उसे कुछ नहीं बताया और उसे एक किले में ले आयी जो बिलकुल खंडहर जैसा था लेकिन ज़रूरत का सामान सब रखा हुआ था..
तुम बहुत थके हुए हो और ज़ख़्मी भी हो जाओ थोड़ा आराम कर लो ये तुम्हे तुम्हारे कमरे में ले जायेंगे.. उसने एक आदमी की तरफ इशारा करते हुए कहा.... और वह उसके साथ चला गया....
तुमने मुझे यहाँ क्यों बुलाया है? आरव ने पूछा उस लड़की ने उस किले की बुर्ज पर बुलाया था...
सामने देखो... क्या तुम्हे वह महल दिख रहा है.. लड़की ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा और आरव ने अपने सामने नज़र दौढ़ाई.. किले से बहुत दुरी पर एक महल था जो रोशनि से जगमगा रहा था और उसके सामने बढ़ी सी नदी थी महल के अगल बगल बस्ती थी..
तुम मुझे ये सब क्यों दिखा रही हो. आरव बोला
मै... उस महल की राजकुमारी हूँ... राजकुमारी अलीना.. उसने ठंडी सांस भरते हुए कहा उसकी सुन्दर आँखों मे दर्द भर आया था...
तो तुम यहाँ क्यों रहती हो...और मेरा भाई कहा है... आरव ने पूछा
वह वहा उस महल मे है मेरी बढ़ी बहन प्रिंसेस एलिज़ा के पास ।प्रिंसेस अलीना बोली
उसने बताया की उसकी बहन बहुत क्रूर, निर्दयी और घमंडी है और उसके इसी व्यवहार की वजह से उनके पिता ने अलीना को भावी महारानी घोषित कर दिया था क्यूंकि वो बहुत बहादुर, बुद्धिमान, रहम दिल और प्रजा से प्रेम करती थी हर कोई अलीना से प्यार करता था इसी वजह से एलिज़ा अलीना से बहुत जलती थी और एक दिन अपनी इसी ईर्ष्या की आग मे जलते हुए उसने अपने पिता की हत्या कर दी और पुरे राज्य को हथिया लिया और वहा की महारानी बन गयी उसने अलीना को मरने का आदेश दे दिया और अलीना को घर मे बंद करवा के उसमे आग लगवा दी लेकिन उसके एक बूढी जादूगरनी ने उस आग में एक मुर्दा लड़की का शव डाल दिया जिससे एलिज़ा को लगा की एलीना मर गयी और वो अलीना को इस गुप्त अपनी कुटिया मे ले गयी . एलीना की मदद करने वाला कोई नहीं था और एलिज़ा अपनी प्रजा पर बहुत अत्याचार कर रही थी.. ये सारी बातें जब एलीना सुनती तो उसका दिल भर आता... बहुत सालो बाद उस बूढी जादूगरनी ने उसे एक जादुई द्वार दिया और कहा की वह अगर चाहे तो इंसानों से मदद ले सकती है और उन्होंने उस गुप्त मार्ग में बहुत सी बधाएं डाली और कहा की जो भी इंसान इन सारी बधाओं को पर करके हमारी दुनिया में प्रवेश करेगा सिर्फ वही हमारे राज्य को बचा सकता है.. और बहुत से इंसानों के सामने उसने वो गुप्त मार्ग खोला लेकिन उनमे से कुछ डर गए, कुछ वापस भाग, और कुछ अपनी जिंदगी हर बैठे लेकिन सिर्फ कृष और आरव एकमात्र इंसान थे जिन्होंने सारी बधाएं पर की थी इसीलिए हर किसी को यकीन था की वो उन्हें बचा लेगा.. और आरव सोच रहा था की वो कैसे बचाएगा इस पुरे राज्य को.... एलीना को.... और अपने भाई कृष को......
महल के ऐशो आराम में कृष बिलकुल खो चूका था और आरव को भी भूल गया था... वह हमेशा ऐसे राजाओं वाली जिंदगी चाहता था और प्रिंसेस एलिज़ा ने उसे अपना छोटा भाई बना लिया था.. अब वोह राजकुमार बन गया था.. वो बहुत मासूम था उसे एलिज़ा की मक्कारी समझ नहीं आयी...
आखिर हम महल मे कैसे प्रवेश करेंगे कोई तो रास्ता होगा ना... आरव बहुत परीशान था और हर हाल मे अपने भाई को वापस लाना चाहता था.. लेकिन उसे मजाल मे घुसने का कोई मार्ग नहीं मिल रहा था.. अलीना भी बहुत परीशान थी..
अगर रास्ता मिल भी जाये तो हम अंदर नहीं जा पाएंगे... अलीना ने दुख से कहा
क्या... मगर क्यों... आरव बोला
हमने एक बार झील के रास्ते से जाने की कोशिश की थी मगर नहीं जा पाए और हमारे कुछ वफादार लोग मारे गए क्यूंकि महल पर एलिज़ा ने सुरक्षा कवच लगाया हुआ है और उसे तोड़ना नामुमकिन है...
एलिना की बात पर आरव सोच मे पढ़ गया.. तभी उसकी आँखे चमक उठी...
नामुमकिन कुछ नहीं... बस हर नामुमकिन को मुमकिन करने का हौसला होना चाहिए... आरव बोला और एलीना उसे चौंक कर देखने लगी..
क्या तुम्हे पता है वो बूढी जादूगर्नी कहा रहती है... आरव के पूछने पर एलीना ने हा मे सर हिलाया और आरव उसे देख कर मुस्कुरा दिया... जबकि अलीना भी हल्का सा मुस्कुराई थी
हमें और कबतक चलना होगा.. आरव बोला वह और अलीना काले जंगलों मे आये थे..
तुम्हे पता है बूढ़ी अम्मा ने ही मुझे पाला है मै पहले यही रहती थी लेकिन अम्मा को डर था की कही एलिज़ा को पता ना चल जाये इसी लिए उन्होंने मुझे उस खंडहर मे भेज दिया लेकिन मुझसे मिलने हमेशा आती रहती थी..एलीना मुस्कुराते हुए बोली..
तम दस साल की थी ज़ब तुम महल से आयी थी अब तम सोलह साल की हो ना.. आरव ने पूछा तो उसने हा मे सर हिला दिया..
तो तुम्हारी अम्मा ने पहले तहखाना क्यों नहीं खोला.. आरव ने पूछा..
पहले वो मुझे महल से दूर रखना चाहती थी इसलिए हम दूसरे राज्य मे छीपकर रहते थे लेकिन एलिज़ा के द्वारा प्रजा पर हो रहे अत्याचार मुझसे सहन नहीं हो रहे थे इसलिए हम यहां आ गए और हमारे वफादार लोगो ने कई बार महल मे घुसने का प्रयास किया पर असफल रहे.. और तहखाना भी खोला गया मगर कोई हमारे लोक मे नहीं आसका.. एलीना अपनी थोड़ी देर के लिए रुकी और उसे देखने लगी.. मगर तुम आ गए.. वो मुस्कुराई...
और कबतक चलना है... आरव बोला..
बस थोड़ी दूर और लेकिन ध्यान रहे कोई हमें देख ना पाए हम एलिज़ा की रियासत मे आये है... एलीना ने उसे समझाया दोनों ने काले रंग का नक़ाब ओढ़ रखा था और उनका चेहरा बिलकुल ढका हुआ था..
आह.... अचानक एलीना ने सिसकी ली
क्या हुआ तुम ठीक तो हो ना.. आरव ने घबरा कर पूछा.. उसके खूबसूरत पैर से खून निकल रहा था शायद कोई कांटा चुभ गया था जो बहुत अंदर तक धस गया था आरव ने उसका जख्म साफ करके अपने रुमाल से बैंडेज कर दी.. एलीना उसे ही देख रही थी बहुत प्यार भरी नज़रो से... तभी आरव ने उसकी तरफ नज़र उठा कर देखा वो हड बड़ा गयी और जल्दी से इधर उधर देखने लगी आरव मुस्करा दिया... वो दोनों हम उम्र थे और एक दूसरे के अच्छे दोस्त भी बन गए थे... चलो नहीं तो शाम हो जाएगी... आरव ने कहा वो खड़ी हुयी मगर चल नई पायी.. तभी आरव उसकी तरफ पीठ करके बैठ गया..
चलो मेरी पीठ पर आ जाओ जल्दी... आरव ने उससे कहा और फिर उसकी पीठ आ गयी दोनों ने रास्ते मे बातें की तभी जादूगरनी की कुटिया उन्हें मिल गयी जो बहुत छोटी थी आरव ने दरवाज़ा खटखटाया.
कौन है... एक बूढी औरत ने दरवाज़ा खोला वह बहुत उम्रदराज़ थी मगर उनकी आँखों में अजीब सी चमक थी उनकी कमर झुकी हुयी थी और उन्होंने एक बढे से डंडे का सहारा लिया हुआ था जिसपर तीन उल्लू का सर बना था
मै हूँ अम्मा प्रिंसेस एलीना.. एलीना ने अपना नक़ाब हटाते हुए कहा और बूढ़ी अम्मा के सीने से लग गयी वह उन्हें अंदर ले आयी बाहर से वो कुटिया जितनी छोटी थी अंदर से बहुत बढ़ी थी... वो हैरत से सब देख रहा था
हमें महल मे प्रवेश करने का रास्ता ढूंढना है और उसका सुरक्षा कवच भी तोड़ना है हमें आपकी मदद चाहिए.. एलीना ने कहा..
ठीक है पहले इसे पी लीजिये राजकुमारी...वह उन दोनों के लिए गर्म गर्म चाय ले आयी थी...उन दोनों ने जल्दी से चाय ले ली क्यूंकि उन्हें बहुत ठण्ड लग रही थी
वो महल का एक बोसीदा और पुराना नक़षा ले आयी जिस पर धूल अटी हुयी थी...
बहुत देर तक नक़शा देखने के बाद भी उन्हें कुछ समझ नहीं आया क्यूंकि महल दो तरफ से झील से घिरा हुआ था और एक तरफ खायी थी और एक रास्ता आबादी का था और जोकि सुरक्षा को भेद नहीं सकता था उसके पांच द्वार थे हर मोढ पर सेनाओ की फौज थी...
तभी बूढी जादूगरनी ने अपनी आँखे बंद करके अपना हाथ फ़ैलाया और मंत्र पढ़ने लगी और कुछ ही देर मे एक किताब उनके सामने आ गयी जो हवा मे उड़ रही थी उसके पन्ने तेज़ी से पलटने लगे और फिर एकाएक रुक गया... और बूढी जादूगरनी नेउसे पढ़ना शुरू किया..
"(सवाल का जवाब चाहते हो तो गहराइयों मे उतर जाओ...
अगर हो नीयत नेक तो रास्ता पाओ...
अगर हो दिल में छल कपट तो मौत को
गले लगाओ.....)"
जादूगरनी के पढ़ते ही किताब अपने आप सुनहरे रंग की धूल बन कर गायब हो गयी..
"पूर्वजो के अनुसार झील की गहराइयों मे एक गुप्त मार्ग है जिसे सदियों से किसी ने नहीं देखा वो मार्ग सिर्फ एक सच्चा इंसान जिसका जिसका दिल छल और कपट से खाली हो सिर्फ वही खोल सकता है.. लेकिन वह रास्ता कठिनाइयों से भर हुआ है...बूढी जादूगरनी बोली
इसका मतलब हमें झील मे उतरना होगा... आरव ने कहा..
हा यही एकमात्र रास्ता है.. जादूगरनी बोली
लेकिन सुरक्षा कवच कैसे हटेगा... एलीना ने पूछा
वो गुप्त मार्ग खुलते ही सुरक्षा कवच हट जायेगा...जादूगरनी बोली...
सेनापति जी आपको कुछ पता चला की कृष हमारे लोक में कैसे आया?.. एलिज़ा ने पूछा
माफ कीजियेगा महारानी अब तक कुछ नहीं पता चला लेकिन मैंने राजगुरु के पास सन्देश भेजा था वह तपस्या कर रहे थे इस लिए उनसे बात नहीं हो पायी लेकिन वो आपसे मिलना चाहते है... सेनापति बोला
ठीक है हम अभी जायेंगे... एलिज़ा बोली
अभी... महारानी रात होने वाली है हम जंगलों में कैसे जायेंगे....सेनापति के कहने पर एलिज़ा ने उसे घूर कर देखा और सेनापति ने अपना सर झुका लिया
झील के पास बहुत सन्नाटा था ठंडी हवाएं उनकी हड्डियों में घुस रही थी... हलकी हलकी बर्फ बारी हो रही थी.. दो साये काले नक़ाब में झील की और बढ़ रहे थे..
आरव मुझे भी साथ ले चलो.. एलीना बोली
नहीं मै तुम्हे किसी कठिनाई में नहीं डाल सकता.. आरव बोला.
आखिर तुम पर ये कठिनाईया मेरे ही कारण आयी है. एलीना ने कहा उसकी सुन्दर आँखे आंसू से भारी हुयी थी आरव का दिल पिघल गया..
ठीक है.. चलो..तुम्हे पता है तुम बहुत ज़िद्दी हो... आरव मुस्कुराया
लेकिन हम महल मे घुस भी गए तो क्या कर लेंगे आरव हम एलीज़ा का सामना कैसे करेंगे मेरे पास तो शक्तियां भी नहीं है... एलीना बोली
मुझे नहीं पता लेकिन मै पहले अपने भाई को वहा से निकालूंगा फिर हम तुम्हारे राज्य मे छिप कर रहेंगे और कोई योजना बनाएंगे... आरव बोला
और दोनों झील मे उतर गए..
रात की देवी अपनी चादर तान कर फ़ैल गयी थी हर तरफ सन्नाटे का राज था घने जंगलों के बीच दो साये घोढ़े से उतर कर एक पहाड़ी के पास रुक गए उनमे से एक ने अपने दोनों हाथ आसमान की और उठाये और फिर पहाड़ी की तरफ अपने हाथ फैलाये उसके हाथ से लाल रौशनी बहुत तेज़ी से निकल रही थी और थोड़ी ही देर मे पहाड़ दो हिस्सों मे बाँट गया और बीच मे रास्ता बन गया और दोनों साये अंदर घुस गए और रास्ता बंद हो गया और अब वहा सिर्फ पहाड़ था....
आरव और एलीना झील के अंदर तैरते जा रहे थे... उन्हें कोई रास्ता नहीं पता था लेकिन उन्हें बहुत आश्चर्य भी हो रहा था क्यूंकि झील मे बहुत रौशनी थी वह सब कुछ बहुत आसानी से देख सकते थे और ऑक्सीजन भी मिल रही थी...
आहाहह.... अचानक से एलीना चिल्लायी उसका पैर झाडीयों में फंस गया था और वह छुढ़ाने के लिए छटपटा रही थी... आरव जल्दी से उसके पास गया और उसे छुड़ाने की कोशिश करने लगा मगर वो झाढ़िया उन दोनों को अंदर खींचे जा रही थी... और धीरे धीरे वह उनके पुरे शरीर पर लिपट गयी और दोनों उन झाड़ियों मे समा गए...
एलिज़ा और सेनापति पहाड़ के अंदर घुस चुके थे लेकिन जो बाहर से पहाड़ दिखता था वह राजगुरु की हवेली थी.. जो बहुत अँधेरी और डरावनी लग रही थी.. दीवारों पर माशालें लगी हुयी थी और उनकी लो बहुत मद्धम थी.. ये एक ख़ुफ़िया हवेली जिसके बारे में सिर्फ वही तीनो जानते थे...सामने ही एक बूढ़ा आदमी जिसने धोती कुरता पहना हुआ था और सर पर बहुत बढ़ी पगड़ी लगाए हुए था... उसकी आँखे सफ़ेद थी... उसके हाथ मे बढ़ा सा दंड था जिस पर काले चमगादड़ और सांप बने हुए थे उसके पीठ पर कुबड़ था और वह दंड के सहारे खड़ा था... एलीज़ा उसके आगे घुटनो के बाल बैठ गयी और उसके हाथो को चुम लिया..
आप तो जानते ही है राजगुरु मैं यहाँ किस उद्देश्य से आयी हूँ..कृपया मुझे बताये की वह इंसान हमारे लोक मे कैसे आया... एलीज़ा ने उठते हुए कहा
वो आया नहीं है बुलाया गया है... किसी ने रहस्यमयी तहखाना खोला है.. राजगुरु बोला..
मगर किसने अपने तो कभी नहीं बताया इस बारे में हमें
.. एलिज़ा बोली..
हा क्यूंकि वह रहस्यमयी तहखाना सदियों पहले बंद कर दिया गया था.. लेकिन कुछ समय बाद ही वह गायब हो गया था.. कहा जाता था की उस तहखाने ने खुद को अदृश्य कर लिया है.. और वह किसी की सहायता के लिए ही वापस आएगा.. उसके लिए जिसका ह्रदय प्रेम और विनम्रता से भरा हो..ये कहकर राजगुरु सोच मे पढ़ गया.. और दोबारा बोला...
लेकिन उस तहखाने को सिर्फ राजघराने का वारिस ही खोल सकता है...जो ... और फिर वह रुक कर एलिज़ा को देखने लगा..
आप रुक क्यों गए आगे बोलिये... उसकी आँखों मे खून उतर आया था...
जो सिंघासन सँभालने के योग्य हो.. राजगुरु के बात खत्म करने से पहले ही एलीजा ने उसकी गर्दन को दबोच लिया... राजगुरु की आंखे उबलने लगी उसका दम घुटने लगा... वो अपने हाथ पैर मारने लगा...
जब उनकी आँखे खुली तो उन्होंने खुद को ज़मीन पर पाया.. रेतीली और ठंडी ज़मीन.. आरव जल्दी से ऊपर देखने लगा.. ऊपर आसमान नहीं था... सिर्फ पानी था.. तभी एलीना को भी होश आ गया.. वो भी आँखे फाड़े देख रही थी...
तुम ठीक हो ना आरव... एलीना ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा..आरव ने हा मे सर हिला दिया और उठ गया अब वो दोनों आगे बढ़ रहे थे.. ज़मीन रेतीली थी और बहुत ठंडी थी.. और रौशनी भी बहुत तेज़ थी उनकी आँखे चोंधिया गयी थी.. कुछ देर मे उनकी आँखे रौशनी की आदी हो गयीं.. चारों तरफ सिर्फ ऊँचे पहाड़ थे और रेतीली ज़मीन.. दोनों पहाड़ पर चढ़ने लगे..बहुत देर तक चढ़ाई करने के बाद वो उसके छोर पर पहुँच गए.. सामने बढ़ा सा मैदान था.. जहा कुछ भी नहीं था सिवाय रेतीली ज़मीन के..वो दोनों नीचे उतर गए..
तुम्हेे मेरी योग्यता पर संदेह है राजगुरु.. एलिज़ा गुर्रायी
छोड़ो.. मुझे... राजगुरु टूटती साँसो से बोला लेकिन एलिज़ा ने उसे नहीं छोड़ा
एल.. एली.. एलीना.. जिंदा है... राजगुरु घुटी घुटी आवाज़ मे बोला और एलिज़ा की पकड़ ढीली हो गयी और उसने राजगुरु की गर्दन छोड़ दी..राजगुरु खाँसने लगा सेनापति ने उसे जल्दी से पानी पिलाया
मगर कैसे... मैंने खुद अपने इन्ही हाथो से दस साल पहले उसे जलाया था.. उसकी लाश भी देखी थी मैंने.. ऐसा नहीं हो सकता.. एलिज़ा बेयक़ीनी से बोली
ऐसा ही है महारानी! वरना तहखाना खुलने असंभव है.. राजगुरु बोला अब वो ठीक हो गया था..
मुझे लगता है किसी ने उसे बचा लिया था शायद कोई महाराज का वफादार हो.. राजगुरु बोला..
याद आया.. मुझे... वो बुढ़िया... जिसे हमने अपनी रियासत से निकल दिया था.. वो पिता महाराज की वफादार थी.. एलिज़ा चिल्लायी उसकी आँखे चमक उठी..
कृष अपने महल मे सोया हुआ था ज़ब अचानक से उसकी आंख खुल गयी.. उसे ऐसा लगा जैसे उसकी मम्मा उसे उठा रही हो... वो जल्दी से इधर उधर देखने लगा..
ओह मम्मा आई मिस यू... उसकी आँखों से आंसू निकल पढ़े...
बूढ़ी जादूगरनी ने जल्दी से दरवाज़ा खोला.. और डर कर पीछे हट गयी एलिज़ा ने एक तेज़ धार खंजर उसकी गर्दन से लगा दिया था..
अब बता बुढ़िया अलीना कहा है... तुझे क्या लगा तू मुझे बेवक़ूफ़ बनाती रहेगी मुझे पता नही चलेगा.. चल जल्दी बोल.. कहा है वो.. एलिज़ा ने खंजर और धसाया बुढ़िया की गर्दन से खून के नन्हें नन्हें कतरे निकलने लगे...
तेरा अंत निकट है एलिज़ा बहुत राज कर लिया तूने इस राज्य पर लेकिन अब बस अब वही सिंघासन सभालेगा जो इसके योग्य है... मेरी एलीना मेरी बच्ची बनेगी इस राज्य की महारानी... बूढी जादूगरनी की आँखे चमक रही थी विश्वास से.. एलिज़ा गुस्से से कांप रही थी..
पृथ्वीवासी यहां क्यों आया है.. क्या उसे सहायता के लिए बुलाया है लेकिन वो सहायता कैसे करेगा वह तो छोटा सा बच्चा है और वह महल मे है.. राजगुरु बोला लेकिन जादूगरनी ने आरव के बारे मे कुछ नहीं बताया..
बता जल्दी एलीना कहा है.. वरना बेमौत मेरी जाएगी बुढ़िया.. एलिज़ा चिल्लायी मगर जादूगरनी ने अपनी आँखे सुकून से बंद कर ली.. उनकी आँखों के सामने नन्ही एलीना थी दस साल की ज़ब उसे उन्होंने बचाया था.. जब वो एलीना को अपने हाथो से खाना खिलाती थी..तभी एलिज़ा ने अपना खंजर चलाया और उनकी गर्दन काट दी.. खून के छीटे उसके बदसूरत और भयानक चेहरे पर छिटक गए थे और बूढ़ी जादूगरनी का शरीर सूखे पत्ते की तरह ज़मीन पर गिर गया...
यहाँ तो दूर दूर तक कुछ भी नहीं है आरव!
कोई है.. कोई है..एलीना चिल्लायी..
क्या कर रही हो तम चिल्लाओ मत.. आरव ने उसे डांटा.. तभी ज़मीन ज़ोर ज़ोर से हिलने लगी और हिचकोले लेने लगी.. अजीब सी घरघाराहट होने लगी दोनों ने जल्दी से अपने कानो को बंद कर लिया.. वो आवाज़ इतनी तेज़ और खतरनाक थी ऐसा लग रहा था उनके कान के परदे फट जायेंगे.. तभी ज़मीन फटने लगी... दरारे पड़ने लगी... और फिर उनकी आँखे फटी रह गयी.. उनकर होशो हवाश गुम ही गए.. एलीना जल्दी से आरव से चिपक गयी जबकी आरव आँखे फाड़े अपनी और बढ़ते हुए खतरे को देख रहा था...
एलीना और आरव आंखे फाड़ेमौत को अपनी और बढ़ते देख रहे थे.. वो को 10-15फ़ीट लम्बा और 8-9 फ़ीट उंचा ड्रैगन था.. उसकी बढ़ी बढ़ी खूंखार आँखो मे अँगारे जल रहे थे.. वो गुरराता हुआ ज़मीन के अंदर से निकल कर उनके सामने आ गया.. उसके माथे पर एक बहुत खूबसरत हीरा जगमगा रहा था जो हूबहू एलीना के माथे के हीरे जैसा था.. उसके तीन सर थे.. और पुरे शरीर पर बढे बढे कांटे... वह आग उगलता हुआ उनकी तरफ आ रहा था.. तभी आरव ने एलीना का हाथ पकड़ा और वापस पहाड़ो की तरफ भागा.. दोनों अपनी जान बचाने के लिए बहुत तेज़ी से भाग रहे थे.. ड्रैगन अपने भारी भरकम पंजे और सर से पहाड़ो को रोदें जा रहा था.. वो दोनों पहाड़ पर चढ़ते हुए बहुत ज़ख्म हो गए थे.. पहाड़ की ऊंचाईया पार करना वह भी इतनी जल्दी कोई आसान बात नहीं थी एक जगह पहाड़ो मे दरार थी आरव और एलीना जल्दी से उसी मे छिप गए... दरार अंदर से बहुत बढ़ी थी और दो तरफ से खुली थी.. वह दोनों दुआ कर रहे थे की ड्रैगन इस दरार को ना देखे...एलीना का पाँव ज़ख़्मी हो गया था.. ड्रैगन उन्हें हर तरफ ढूंढ रहा था और पहाड़ तोड़ रहा था तभी उसने एलीना के खून की बू सूंघ ली... और उस दरार मे घुसने की कोशिश करने लगा..वह उनके बिलकुल सामने था.. मौत उनसे बस दो इंच दूर थी...
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महारानी अपने बुढ़िया को मार दिया अब हम कैसे पता करेंगे की एलीना क्या करने वाली है और उसकी मदद कौन करेगा... सेनापति बहुत परीशान था...
आप ये काम मुझपर छोड़ दें.. एलिज़ा ने कहा और थोड़ी ही देर मे वो कृष के कमरे की ओर जा रही थी...
कैसे हो मेरे छोटे राजकुमार... एलिज़ा ने कृष से पूछा..
ठीक हूँ महारानी दीदी! कृष बोला वह उसे अपनी बड़ी बहन मानता था..
ये देखो तुम्हारे लिए तोहफा.. उसने एक बहुत ही खूबसूरत डिब्बा कृष को थमाते हुए कहा उसपर बहुत नक्काशी की गयी थी... कृष ने उसे खोला उसमे बहुत ही खूबसूरत हीरे का ब्रुच था जो जगमगा रहा था कृष बहुत खुश हो गया.. एलिज़ा ने वो ब्रुच उसके कोट मे लगा दिया.. और अगले ही पल कृष बिलकुल किसी गुलाम की तरह उसके कदमो मे बैठ गया..
कृष.. मेरे भाई जानते हो ना एलिज़ा दीदी तुमसे कितना प्यार करती है.. तो बताओ मुझे तम यहां कैसे आये..एलिज़ा का इतना ही पूछना था की कृष ने किसी रट्टू तोते की तरह सबकुछ बता दिया एलिज़ा ने उस ब्रुचे जादू किया हुआ था जिससे कृष सममोहित हो गया था..
ड्रैगन दरार में घुसने की कोशिश करने लगा लेकिन उसका एक सर दरार मे फँस गया और ज़ख़्मी हो वो दर्द से चिंघाड़ रहा था.. तभी आरव और एलीना दरार की दूसरी ओर से निकल कर भागे.. उसकी चिंघाड़ चारों तरफ गूंज रही थी वह बहुत ही लाचार नज़रो से उन्हें देख रहा था जैसे वो मदद मांग रहा हो..उसकी आँखों से आंसू निकल रहे थे.. आरव से उसका दर्द देखा नहीं गया उसने पास पड़े हुए नुकीले पत्थर के टुकड़े से उसका सर निकालने की कोशिश करने लगा और बहुत देर बाद उसका सर बाहर आ गया और वह चिंगाड़ता हुआ पीछे हटा..और फिरसे उनके सामने आ गया उसने धीरे से अपना सर आरव के सामने झुकाया ऐसा लग रहा था जैसे वह उसका शुक्रिया अदा कर रहा हो.. आरव ने डरते डरते उसका चेहरा छुने के लिये अपना हाथ बढ़ाया तभी ड्रैगन ने अपना माथा उसके हाथ से लगा दिया..आरव का हाथ जैसे ही उसके माथे पर लगे हीरे पर पड़ा एक तेज़ बवण्डर उठा..आरव और एलीना उस बवंडर में खो गए....
सैनिको महल की सुरक्षा बड़ा दो और किसी पर ज़रा भी संदेह हो उसे जान से मर दो.. एलिज़ा ने सुरक्षा और बड़ा दी थी वो जानती थी की आरव और एलीना महल मे ज़रूर आएंगे...उसने प्रवेश द्वार की सुरक्षा और कड़ी कर दी थी मगर वो नहीं जानती थी की झील के रास्ते से भी कोई प्रवेश कर सकता है...वो रहदारी से निकल कर एक तहखाने मे दाखिल हुयी उस तहखाने के अंदर और भी कई दरवाज़े थे वो आखरी दरवाज़े से अंदर दाखिल हुयी... एक बूढा आदमी ज़जीरो में जकड़ा हुआ था..वह बहुत कमज़ोर लग रहा था उसकी सांसे फूल रही थी...
कैसे है पिता महाराज... एलिज़ा ने मक्कारी से मुस्कुराते हुए पूछा..
बूढ़े आदमी ने अपनी झुकी हुयी गर्दन उठायी और एक नफ़रत भरी नज़र से उसकी तरफ देखा...
जब उन्हें होश आया तो उन्होंने खुद को एक सुरंग मे पाया ये शायद महल की सुरंग थी...हर तरफ अंधेरा था और कही से हलकी से रोशनी आ रही थी..
आखिर हम महल मे पहुंच ही गए... आरव ख़ुशी से बोला..
10 साल बाद मै अपने महल मे वापस आयी हूँ आरव एलिज़ा ने मुझसे मेरा बचपन छीन लिया मेरे पिता जी को भी.. एलीना सिसक कर रो पढ़ी थी... आरव ने उसे दिलासा दिया और उसे सीने से लगा लिया...
आपको एक ख़ुशी की खबर देनी है पिताजी... एलिज़ा अपने पिता के क़रीब बैठते हुए बोली...जबकि वह अब भी खामोश थे बस खाली आँखों से उसे देख रहे थे...
आपकी प्यारी लाडली बेटी एलीना याद है ना आपको... वो ज़िंदा है जिसे 10साल पहले मैंने अपने इन्ही हाथो से जलाया था.. वह जिंदा है... वो पास रखा हुआ मिट्टी का घड़ा दिवार पर मारकर चिल्लायी..
और उन बूढी हड्डियों में जैसे जान दौड़ गयी.. उनकी आँखों से ख़ुशी के आंसू निकल उठे.. एलिज़ा का खून खोल गया...
जानते है आप वो यहां महल आ रही उसे लगता है वह सिंघासन वापस ले लेगी.. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं होगा.. वो दस साल पहले नहीं मेरी लेकिन अब मरेगी..
वह गुस्से से चिंघाड़ते हुए बाहर निकल गयी जबकी बूढे आदमी अपना हाथ उठाकर अपने रब का शुक्र अदा कर रहा था..एलीना अँधेरे मे एक रौशनी की किरण बनकर आयी थी... उनके जीने की वजह बनकर...
वो दोनों अँधेरे मे आगे बढ़ रहे थे ज़ब उन्हें अपने पीछे कदमो की आहट महसूस हुयी.. दोनों जल्दी से सुरंग की दरारो में छिप गए.काले नक़ाब मे एलिज़ा थी । आरव और एलीना जल्दी से छिप गए..
मै तुम्हे ज़िंदा नहीं छोडूंगी एलीना ये महल तुम्हारी क़ब्र बनेगा और तुम्हारा सर पिताजी के सामने पेश करूंगी.... एलिज़ा नफरत और गुस्से से खुद मे ही चिल्ला रही थी उसने देखा ही नहीं की दो साये जल्दी से खम्बे की ओट मे छिप गए थे..
एलीना को समझ नहीं आ रहा था की वो रोये या हँसे..
आरव तुमने सुना मेरे.. मेरे पिता महाराज ज़िंदा है.. उसकी सुंदर आँखो में आंसू भरे थे और उसके होंटो पर मुस्कुराहट थी..जबकि आरव बस उसे देख रहा था
मुझे अपने पिता जी से मिलना है मै उन्हें ढूंढने जा रही हूँ.. वो जल्दी से आगे बढ़ी तभी आरव ने उसे रोक लिया..
एलीना होश मे रहो.. हम यहां इतने बढ़े महल मे तुम्हारे पापा को कैसे ढूंढेगे..और अगर ढूंढ लिया तो उनहे आज़ाद कैसे कराएंगे... आरव ने उसे समझाया
फिर एलीना नहीं मानी और वो दोनों अब उसी तरफ जा रहे थे जिधर से एलिज़ा आयी थी.. लेकिन... सामने कोई दरवाज़ा नहीं था सिर्फ दीवार थी..
आखिर वो किधर से आयी होंगी यहां तो कोई दरवाज़ा ही नहीं है.. आरव बोला
ये ज़रूर गुप्त द्वार होगा बचपन में मैंने पिता जी से सुना था.. यहां सबसे खतरनाक कैदीयो को उम्र कैद की सज़ा दी जाती थी.. उसने पिता महाराज को यहां रखा होगा.. एलीना बोली और दीवार टटोलने लगी
क्या तुम्हे पता है ये कैसे खुलता है..आरव ने पूछा
जबकि एलीना ने ना मे सर हिला दिया.. लेकिन फिर भी वो प्रयास कर रही थी.. तभी उसका पैर रखा पत्थर से टकरा गया और वो निचे गिर गयी और उसका हाथ ज़मीन पर रखे एक छोटे से पत्थर पर पड़ गया जो बिलकुल दीवार से लगा हुआ था और ऐसा लग रहा था जैसे दीवार टूट गयी हो.. तभी दीवार से हल्की सी आवाज आयी और दीवार सामने से हट गयी और उनके सामने एक खुला हुआ दरवाज़ा था..
आरव तुम जाओ कृष को लेकर आओ फिर हम झील के पास मिलेंगे.. एलीना ने उससे कहा
पागल हो गयी हो क्या तुम.. मै तुम्हे अकेला छोड़ के कही नहीं जाऊंगा अबतक हमने सबकुछ साथ मे किया ये भी साथ मे करेंगे... आरव ने साफ इंकार कर दिया..
आरव तूम समझ नहीं रहे.. अब तक एलिज़ा को पता चल गया होगा की दरवाज़ा खुल गया है तुम वक़्त बर्बाद मत करो जल्दी जाओ और कृष को लेकर झील के पास पहुंचो.. मै वही तुम्हारा इंतज़ार करूंगी.. एलीना ने उसका हाथ पकड़ कर कहा और उसकी आँखों मे देख कर मुस्कुराई... और जल्दी से दरवाज़े के अंदर चली गयी और दीवार फिर से पहले जैसी हो गयी.. आरव दीवार को देख रहा था...
आरव सबसे छुपते छुपते रहदारी मे आ गए था.. सैनिक हर जगह थे लेकिन अँधेरेे मे वो उसे देख नहीं पर रहे थे.. तभी महल की सारी घंटिया बजने लगी और सैनिको मे अफरातफरी मच गयी..
महल घुसपैठिये आ गए सब होशियार हो जाओ गुप्त द्वार खोला गया है... एक सैनिक चिल्ला रहा था..
ओह... एलीना.. उसने एक ठंडी सांस भरी उसे पता था अब वो पकड़ी जाएगी.. और वो उसकी मदद भी नहीं कर सकता..
अलीना सारे दरवाज़े को पर कर के अपने पिता के पास पहुंच गयी और उनके सीने से लग कर रो दी
मुझे लगा मैंने आपको खो दिया पिताजी.. एलीना बोली
मुझे भी ऐसा ही लगा था मेरे बच्चे... उन्होंने उसे अपने सीने से लगाते हुए कहा..एलीना ने जल्दी जल्दी अपने पिता को आज़ाद किया और बाहर निकलने के लिए भागी.. मगर वो दोनों आधी दूर भी नहीं पहुंचे होंगे ज़ब सैनिको ने उन्हें पकड़ लिया...
आरव को कृष मिल गया था मगर कृष उसे पहचान नहीं रहा था वो तो किसी पुतले की तरह सामने देख रहा था..
आखिर इसे हो क्या गया है एलिज़ा ने इसपर जादू तो नहीं किया...वो अभी सोच ही रहा था तभी उसे कदमो की चाप महसूस हुयी वो जल्दी से पर्दे के पीछे छिप गया.
छोटे राजकुमार महारानी एलिज़ा आपको राजदरबार मे बुला रही है.. महल के घुसपैठिये पकड़े गए.. सैनिक ने कहा तो कृष उसके साथ चल दिया जबकि आरव के पैरों से ज़मीन खिसक गयी.. आरव ने जल्दी से कृष के कपड़े पहने क्यूंकि वो इंसानो के कपडे मे था और वो आसानी से पहचाना जा सकता था.. कपड़े बदल कर वो भी सैनिको के साथ दरबार की ओर चल दिया...
अलीना और उसके पिता घुटनो के बल बैठे हुए थे जबकि एलिज़ा सिंघासन पर अकड़ी हुयी बैठी थी..और पूरा राजदरबार प्रजा और सैनिको से भरा था हर कोई अपने दस साल पहले मरे हुए राजा और उसकी पुत्री को देख रहा था जो अब उनके सामने थे.... जीवित...
कभी कभी मुझे तुम्हारी बेवक़ूफी पर बहुत तरस आता है.. अगर ज़िंदा बच ही गयी थी तो मरने की लिए वापस क्यों आयी... मेरी प्यारी बहन.. एलिज़ा अपनी मक्कार हंसी हँसते हुए बोली...
इस बार मै नहीं मरूंगी एलिज़ा तुम मरोगी.. और तुम्हारा ये अहंकार मरेगा... एलीना नफरत से उसे देखते हुए बोली..
तुम इतनी क्रूर और निर्दयी होंगी अगर मुझे पता होता तो मै तुम्हे पहले ही मर डालता.. महाराज बोले..
अफ़सोस.. अफ़सोस.. की तुम दोनों का ये सपना कभी पूरा नहीं होने वाला क्यूंकि कल सुबह होते ही सबके सामने तुम दोनों को फांसी दी जाएगी.. एलिज़ा ने अपना फैसला सुना दिया था और वहा से जा चुकी थी पुरे दरबार को जैसे सांप सूंघ गया था.. हर कोई चुप था.. जबकि आंसू का एक कतरा एलीना की आँखों से मोती की तरह टूट कर गिरा था और आरव का दिल कट कर रह गया था....
...एलीना और महाराज को कैदखाने मे डाल दिया गया था और एलिज़ा के हज़ार बार पूछने पर भी एलीना ने आरव की बारे मे नहीं बताया था उसे यक़ीन था की आरव उसे बचा लेगा..
आरव महल से बाहर जाने वाले लोगो में शामिल हो गया था उसे किसी तरह सुबह होने से पहले सब कुछ ठीक करना था... उसने सोचा की महल से बाहर वो किसी ऐसे इंसान को ढूंढ लेगा जो उसकी मदद कर सके...
वो ऐसे ही इधर उधर भटक रहा था उसे बहुत ज़ोर की भूक लगी थी.. रात के अँधेरे मे उसे समझ नहीं आरहा था क्या करे... ठंड भी बहुत ज़्यादा थी... वो सड़क पर बैठे एक बूढ़े भिखारी के पास बैठ गया.. वो थक गया था.. तभी बूढ़े आदमी ने उसकी तरफ एक रोटी बड़ाई आरव ने जल्दी से ले लिया उस रोटी पर छोटा सा अचार भी था आरव जल्दी जल्दी खाने लगा.. एक वक़्त था ज़ब आरव ऑमलेट थोड़ा सा अगर जल भी जाये तो नहीं खाता था उसे हर चीज फ्रेश और अच्छी चाहिए होती थी और आज वो सुखी रोटी और अचार खा रहा था उसे अपनी माँ बहुत शिद्दत से याद आयी..
महाराज को बचाने आये हो.. बूढ़े भिखारी ने अपनी कांपती आवाज़ में पूछा... आरव चौंक गया
आपको कैसे पता... आरव ने पूछा
मुझे पता है बच्चे एलिज़ा को हराना इतना आसान नहीं है... तुम लोग उसे नहीं मार सकते.. वह अमर है...भिखारी बोला
मगर क्यों?... आरव ने पूछा
क्यूंकि एलिज़ा की जान उसके शरीर में नहीं है..उसने अपनी जान कही छुपा दी है...
लेकिन आपको ये सब कैसे पता.. आरव ने पूछा
मै उसके महल में काम करता था लेकिन महाराज के मरने के बाद उसने उनके सारे वफादार लोगो को मरवा दिया मै किसी तरह बच गया लेकिन तभी मैंने राजगुरु और एलिज़ा को ये बात करते सुना था...भिखारी बोला
क्या आपको पता है की उसने अपनी जान खा छिपायी है और मै उसे ढूंढूंगा कैसे?.. आरव को कुछ समझ नहीं आरहा था...
ये तो मै भी नहीं जानता बेटा लेकिन तुम्हे लाल पहाड़ी पर जाना होगा... मैंने अपने बुज़ुर्गो से सुना है की वहा हर सवाल का जवाब मिलता है... भिखारी बोला.. और आरव को लाल पहाड़ी का रास्ता बताया अब एक पल गँवाये बिना लाल पहाड़ी की ओर बढ़ रहा था....
पहाड़ी वाक़ई लाल थी बिलकुल खून की तरह.. ज़मीन... पहाड़ .. यहां तक की पौधे भी लाल थे यहां बहुत गर्मी थी ज़मीन आग की तरह जल रही थी... लेकिन आरव को हर हाल में सुबह होने से पहले अपने सवालों का जवाब चाहिए थे... आरव लाल पहाड़ी के पास पहुंच गया था... वो बहुत ऊँची थी... वो जैसे उसके क़रीब गया एक गड़गड़ाहट की आवाज़ के साथ पहाड़ी दो हिस्सों मे बट गयी और रास्ता बन गए आरव ने डरते डरते अंदर प्रवेश किया अंधेरा बहुत गहरा था... बस दरारो से चाँद की हल्की रौशनी अंदर आ रही थी... वो गुफा के बहुत अंदर पहुंच गया था.. तभी अचानक से रौशनी हुयी उसकी आँखे चोंधिया गयी...उसके सामने रौशनी मे एक आकृति बन रही थी... जिसने धीरे धीरे उसकी माँ का रूप ले लिया.. वो चौंक गया उसे लगा कही उसकी माँ भी उसी रहस्यमयी तहखाने से ना आ गयी हो ...
मॉम.. आप यहां... आरव ने पूछा
मै तुम्हारे सवालों का जवाब हूँ... तेरे मन में जो भी है सभी पता है मुझे... उसकी माँ की आकृति ने कहा आरव समझ चूका था की ये उसकी माँ नही हो सकती..
मुझे जानना है की एलिज़ा ने अपनी जान कहा छिपायी है? आरव ने पूछा आकृति ने बताया जहाँ एलिज़ा पैदा हुयी थी वहा राजमहल का शमशान घाट और एक हिस्सा खुद एलिज़ा के अंदर है... फिर उसकी माँ की आकृति गायब हो गयी.. गुफा में फिर से अंधेरा फ़ैल गया था.. वह जल्दी से बाहर निकल आया उसे अब महल पहुंचना था.. मुख्य द्वार से वो नहीं जा सकता था... इसलीए वो फिर से झील की गहराइयों में उतर गया.. सब कुछ वैसे हुआ जैसे वो एलीना के साथ गया था तब हुआ था... लेकिन आरव यही सोच रहा था की ड्रैगन उसका साथ देगा या नहीं....
आरव ड्रैगन के पास पहूँच गया था उसने शायद आरव को पहचान लिया था..
अपना तीनो सर उसके आगे झुका दिया.. आरव ने जल्दी से उसके माथे पर लगे हीरे को छुआ और एक तेज़ रौशनी उठी आरव उसी रौशनी मे गायब होगया...
आरव सीधा वही पहुंचा जहाँ एलीना और उसके पिता कैद थे.. आरव ने सबकुछ एलीना को बताया.. तभी... एक सैनिक ने उसे देख लिया आरव ने उसके चिल्लाने से पहले उसे दबोच लिया और उसका कपड़ा पहन लिया...पहली पहेली का जवाब उसे समझ आ गया था महाराज ने उसे बताया की एलिज़ा महल के पश्चिमी सिरे पर बने कक्ष मे पैदा हुयी थी आरव वहा पहुंच गया था..मगर कक्ष मे बड़ा सा ताला लगा हुआ था...वो जानता था की जिस जगह एलिज़ा ने अपनी जान का एक हिस्सा छिपाया है वो इतनी आसानी से नहीं मिलेगा...आरव ने कक्ष के रोशनदान का सहारा लिया और बहुत मुश्किल से अंदर घुसा.. उसे हैरत हो रही थी की एलिज़ा इतनी बेवक़ूफ कैसे हो सकती है कि उसने कक्ष मे कोई सुरक्षा कवच नहीं लगाया....
कक्ष मे बहुत अंधेरा था खिड़कियों से चाँद की हल्की से रौशनी आ रही थी..ऐसा लगता था जैसे कई सालो से कोई कक्ष मे न आया हो.. उसने अपनी मिनी टोर्च निकली और पुरे कक्ष की तलाशी लेने लगा लेकिन उसे कही भी कुछ नहीं मिला.. वो बिलकुल थक गया था... वो थक कर गर्द लगी हुयी पलंग पर बैठ गया... तभी उसकी नज़र सामने रखे किताबों के शेल्फ पर पड़ी जहा बहुत सी किताबें रखी हुयी थी.. आरव ने सारी किताबों को खोलकर और हिला कर देखा यहां तक की पूरा शेल्फ हिला डाला मगर कुछ भी नहीं हुआ आखिर गुस्से में इसने शेल्फ पर रखी एक पुरानी किताब उठा कर ज़मीन पर फेक दी..किताब के पन्ने अपने आप पलटने लगे और रुक गए आरव ने नज़दीक जाकर देखा तो उस पन्ने में एक बहुत पुरानी चाबी थी...आखिर ये चाबी किस ताले की है?उसने खुद से सवाल किया और किताब के पन्नों को पलटने लगा.. पूरी किताब सादी थी.. कही एक चिन्ह भी नहीं था.. तभी उसे किताब के आखरी पन्ने पर एक उभरी हुयी आकृति महसूस हुयी.. उसने टोर्च से गौर से उस आकृति को देखा..उसे कुछ समझ नहीं आया उसने चाभी को उसी आकृति पर रख दिया और पन्ने से एक तेज़ रौशनी निकली और आरव के सामने एक दरवाज़ा आ गया.. आरव जल्दी से उसमे घुस गया क्यूंकि उसके पास वक़्त बहुत काम था और उसे सुबह होने से पहले उसकी जान के सारे हिस्सों को नष्ट करना था...
ज़मीन समतल थी... कही आसमान नहीं था... चारों ओर सपाट ज़मीन.. और अंधेरा.. बस एक ओर से उजाला आ रहा था.. और वो स्टूल था जिस पर कुछ चमक रहा था... आरव जिस द्वार से आया था वो उससे दो मीटर के फासले पर ही था... आरव स्टूल के पास गया उस चमकती हुयी चीज को देखने के लिए.. वो एक चम्मच था... सोने का चम्मच.. जो शायद उसके बचपन का रहा हो आरव को समझ आ गया की एलिज़ा ने उसी मे अपनी जान का एक हिस्सा छिपाया है उसने जल्दी से वो चम्मच उठा लिया.. तभी एक बहुत ज़ोर की आवाज़ सुनाई दी... मक्खीयो की भनभनाहट.. अभी वो कुछ समझ भी नहीं पाया था की मक्खिया उससे लिपट गयी.. ये पिशाच मक्खीया थी जिनका शरीर तो आम मक्खी का था लेकिन.. चेहरा पिशाच जैसा.. बड़ी बड़ी आँखे लम्बे कान और... नुकैले दाँत... आरव उन मकखियो के झुंड मे घिर गया था.. और बचने का कोई रास्ता नहीं था....
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मक्खीयों के झुण्ड ने उसे अपने कब्ज़े में कर लिया था उसे कुछ भी दिखायी नहीं दे रहा था.. वो ज़ख्म भी हो गया था.. तभी उसकी आँखों के सामने अलीना का चेहरा आ गया उसे एलीना को बचाना था.. आरव ने पूरा ज़ोर लगाया और एलिज़ा के चम्मच को तोड़ दिया एक तेज़ रौशनी का विस्फोट हुआ और आरव दरवाज़े की ओर गिर गया और बाहर आ गया...
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एलिज़ा अपने कक्ष मे सोई हुयी थी अचानक से चीख मारकर उठ बैठी.. उसकी साँसे रुक रुक कर चल रहीं थीं उसे बहुत कमज़ोरी महसूस हो रही थी.. उसने जल्दी से पानी पिया और खुदको सँभालते हुए पश्चिमी द्वार तक आयी लेकिन तबतक बहुत देर हो चुकी थी आरव अपनी अगली मंज़िल पर निकल चूका था...
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उसे दूसरी पहेली हल करनी थी लेकिन उसे यक़ीन था की वह ज़रूर सफल होगा...भिखारी ने उसे दूसरी पहेली का संकेत कब्रिस्तान का दिया था.. राजमहल के कब्रिस्तान का जो महल से दूर काले जंगलो में था...
उसे कब्रिस्तान ढूंढना था.. उसे अंदाजा था की उसे उसकी जान का टुकड़ा यही मिलेगा..
कब्रिस्तान.. सन्नाटा... डर.... आरव भी थोड़ा सा डर रहा था लेकिन उसका लक्ष्य बड़ा था.. उसे हर डर से जीतना था.. वह बहुत देर तक पूरी कब्रिस्तान में ढूंढता रहा लेकिन उसे अपनी पहेली का कोई सिरा नहीं मिला...भोर होने वाली थी.. उसे लगने लगा था की वो हर जायेगा... वो थक कर एक क़ब्र के क़रीब बैठ गया...उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसे देख रहा है लेकिन उसने वहम समझ कर झटक दिया..
एक क़ब्र उसे अजीब लगी उसकी तखती उलटी हुयी थी और कब्र भी टूटी फूटी थी.. आरव ने उस पर अपनी पेन्सिल टोर्च की रौशनी डाली और हाथ से टटोलने लगा.. एक जगह पर उसका हाथ रुक गया और किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया आरव चीखने लगा..और अपना हाथ छुढ़ाने की कोशिश करने लगा लेकिन थोड़ी देर बाद ही वो भी कब्र मे समा गया...
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चारों तरफ मुर्दा लाशें, और अंधेरा.. उसने अपनी टोर्च पास पड़े मुर्दे पर डाली और उस मुर्दे ने अपनी आँखे खोल दी.. आरव डर कर पीछे हटा... उसके पैर जम गए थे और उसके माथे पर नन्ही पसीने की बुँदे चमक रही थी.. सन्नाटे मे आरव की साँसे गूंज रही थी..
सारे मुर्दे उसकी ओर बढ़ रहे थे.. उनके अधकटे शरीर और डरावने चेहरे देख कर वो सहमत गया तभी उसकी आँखे चमक गयी... इन सारे मुर्दो के बिच वो मुर्दा सबसे पीछे था.. उसके माथे पर हीरा चमक रहा था वैसा ही हीरा जैसा एलीना और ड्रैगन के माथे पर था..और जो एलिज़ा के पास नहीं था... आरव समझ गया की अब उसे ये मुकुट तोड़ना है..
मुझे जीतना होगा अपने डर से.. एलीना के लिए अपने भाई के लिए... आरव ने अपने आप से कहा और अपनी जेब में पड़ा खंजर निकाला जो एलीना ने उसे दिया था..सारे मुर्दे उसके करीब आ गए थे और उसपर हमला कर रहे थे लेकिन वो उन सबसे बचकर मुकुट के पास जा रहा था.. आरव उस मुर्दे के पास पहुंच गया लेकिन उसपर वार करने से पहले ही दो तीन मुर्दे उससे लिपट गए.. आरव का दम घुटने लगा उनके लम्बी और नुकली उंगलियां उसको गले मे धंस रही थी.. उसे लगा अब वो नहीं बचेगा.(. उसके सामने उसकी माँ का मुस्कुराता चेहरा आ गया.. कृष और रोज़ पुरे घर मे खेल रहे थे..)... आरव की साँसे डूबने लगी.. उसकी आँखे बंद होने लगी.(. उसकी और कृष की प्यारी सी नोक झोक.. और.. एलीना..उसके सुंदर आँखे... उसकी प्यारी सी मुस्कान.. वो उसकी तरफ हाथ बढ़ाये उसे बुला रही थी )... अचानक से आरव की आंखे खुल गयी और उसने ज़मीन पर गिरा खंजर उठाया और पूरी ताकत से उस मुर्दे के मुकुट पर मार दिया.. हीरे के टुकड़े चारों तरफ बिखर गए.. और तेज़ लाल रौशनी उठी...और आरव उसमे खो गया...
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कब्रिस्तान पर फिरसे पहले जैसा सन्नाटा था.. लेकिन सुबह हो चुकी थी.. वो बहुत थक चूका था उसका गला सूखा जा रहा था.. नींद, भूख और थकन की वजह से उसका दिमाग़ काम नहीं कर रहा था.. वो घुटनो के बल चलता हुआ क़ब्र के पास आया और अपना सर टिका कर आँखे बंद कर ली..
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एलिज़ा बहुत कमज़ोर हो गयी थी... राजगुरु ने उसे बताया था की उसकी जान का दो टुकड़ा आरव तोड़ चूका है.. अब सिर्फ आखिरी टुकड़ा बचा है.. उसने पुरे राज्य और महल मे सैनिको को आरव को ढूंढ़ने मे लगा दिया था..
महारानी सारी तैयारीया हो गयी है.. कैदीयो को फांसी के तखते पर पहुंचा दिया गया है.. अब आपका इंतज़ार है... सैनिक ने सर झुकाते हुए कहा..
एलिज़ा के चेहरे पर एक भयानक मुस्कान फैल गयी..
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अलीना, और उसके पिता के गर्दन पर फांसी का फंदा लगा दिया गया था.. सारी प्रजा इकठ्ठा थी..
एलिज़ा घमंड से मुस्कुरा रही थी...
एलीना की आँख से आंसू का एक कतरा निकला और उसके गालों पर फिसल गया...
अचानक ज़ोर की चिंघाड सुनाई दी.. हर कोई उधर ही देखने लगा.. आरव और कृष झील वाले ड्रैगन पर सवार थे.. ड्रैगन अपने मुंह से आग उगल रहा था.. हर तरफ भगदड़ मच गयी... आरव ने जल्दी से एलीना और उसके पिता को आज़ाद किया और ड्रैगन पर बैठ गया.. हर कोई हैरत से देख रहा था..
एलिज़ा अपनी हार पर हैरान थी.. और ड्रैगन पर उन चारों को जाता देखती रही...
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अब आगे क्या करेंगे?.. कृष ने पूछा वो चारों काले जंगलो में बैठे थे..
आरव तुमने आखिर ये सब किया कैसे? एलीना ने पूछा..
आरव उसे सब बताने लगा...
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(कब्रिस्तान से निकल कर ज़ब वो महल मे पहुंचा तो बहुत देर हो चुकी थी.. उन्हें फांसी के लिए ले जाया जा रहा था... आरव को ड्रैगन का ख्याल आया लेकिन उसे कृष को भी ढूंढना था...
वो महल के गालियारे में छिप छिप के जा रहा था ज़ब उसे कृष अपने कक्ष में किसी पत्थर की तरह बैठा दिखाई दिया... वो पुतला लग रहा था उसकी आंखे नीले रंग की रही थी.. आरव ने उसे बहुत समझाया लेकिन वो उसे पहचान ही नहीं रहा था...और कृष ने आरव पर हमला कर दिया.. वो उसपर हमला कर रहा था और आरव खुद को बचा रहा था तभी आरव ने उसे एक ज़ोर का घूँसा मार दिया आरव ज़मीन पर मुंह के बल गिरा...
आअह्ह्ह... कृष के माथे ओर चोट लग गयी थी...
तुम ठीक हो.. आरव घबरा गया और जल्दी से उसके पास पहुंचा...
हाँ ठीक हूँ तुमने मुझे मारा क्यों?पागल हो गए हो क्या .. कृष उसे हैरत से देख रहा था तभी आरव ने उसे सीने से लगा लिया दोनों रो दिए आरव ने उसे सबकुछ बताया... और महल की खिड़की से झील मे कूद गया.. कृष उसे हैरत से देख रहा था तभी आरव झील से ड्रैगन पर सवार होकर निकला.. कृष अपनी आँखे फैलाये तीन सरो वाले ड्रैगन को देख रहा था....)
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और बाकी सबकुछ तो तूम जानती ही हो.. आरव उसे देख रहा था एलीना ने हाँ मे सर हिला दिया..
हम तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलेंगे आरव.. महाराज ने उसके सामने हाथ जोड़ते हुए कहा..
आओ मुझे शर्मिंदा मत करे.. आरव ने जल्दी से उनका हाथ पकड़ लिया
लेकिन खतरा अभी टला नहीं है हम एलिज़ा से कैसे लड़ेंगे... कृष की बात पर सब सोच में पड़ गए..
उसकी जान के दो टुकड़े मै नष्ट कर चूका हूँ बस आखरी टुकड़ा बचा है जो उसके अंदर ही है... और उसे मरना बहुत आसान होगा.. आरव को यकीन था की वो उसे हरा देगा.. अभी वो सब बातें कर ही रहे थे ज़ब ज़मीन पर हलचल महसूस हुयी...
वो चारों बुरी तरह घिर चुके थे सैनिको ने उन्हें चारों तफ से घर लिया था... तभी महाराज ने उनसब से कुछ कहा और सभी ने एक दूसरे का हाथ पकड़ लिया महाराज ने एलीना के माथे ओर लगे मुकुट को छुआ और अपनी आंखे बंद कर ली और थोड़ी देर बाद वो सब वहा से गोल रौशनी में गायब हो गये ...
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वो सब महल के अंदर आ चुके थे लेकिन आरव वहाँ नहीं था..
आरव कहा चला गया? एलीना घबरा गयी थी..
शायद वो हमारे साथ टेलीपोर्ट नहीं हो पाया... कही वो पकड़ा तो नहीं गया ना... कृष भी डर गया था और उसकी बात सुनकर सब सोच मे पड़ गए..
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तुम्हे क्या लगा बच्चे तुम हमसे बच के जा पाओगे?... ये मेरी दुनिया है महारानी एलिज़ा की... और मेरे चुंगुल से कोई नहीं निकल सकता समझे... एलिज़ा अपनी छोटी सी जीत पर ऐसे ख़ुशी मना रही थी जैसे उसने दुनिया फतह कर ली हो
तुम्हारा ये घमंड तुम्हे ले डूबेगा एलिज़ा!तुम जिस रियासत की महारानी बनने का ख्वाब सजा रही हो ना वो कभी पूरा नहीं होगा... क्यूंकि ये सिंघासन और ये राज्य एलीना का है... और मैंने उससे वादा किया है मै उसे उसका अधिकार और सम्मान वापस दिलाऊंगा..
आरव बिना डरे उसकी आँखों मे देख रहा था वो पूरी तरह ज़ँजीरो में जकड़ा हुआ था...
तुम करोगे ये सब तुम हराओगे मुझे... क्या तुम भूल गए की तुम एक मामूली इंसान हो.. तुम मेरे सामने टिक भी नहीं पाओगे..और मेरी बहन की फ़िक्र तुम क्यों कर रहे हो.. उसकी बड़ी बहन अभी ज़िंदा है.. एलिज़ा मुस्कुराते हुए उसका मज़ाक़ उड़ा रही थी..
ये मत भूलो एलिज़ा की इस मामूली इंसान तुम्हारे जान का दो टुकड़ा खत्म कर चूका है अब बस आखरी बचा है और वो तुम्हारे अंदर है..आरव की बात पर वो चौंक गयी..उसे तो पहले ही पता था की वो कमज़ोर हो रही है.. राजगुरु ने उसे बताया की उसकी जान का दो टुकड़ा तोड़ा जा चूका है आखिरी टुकड़ा बचा है जो उसके अंदर है... लेकिन वो ये नहीं जानती थी की आरव ने तोड़ा है..
तुम्हारी इतनी हिम्मत.. एलिज़ा ने उसे कस के एक थप्पड़ मारा आरव को दिन में तारे दिख गए...एलिज़ा गुस्से से लाल हो चुकी थी उसने एक साथ आरव को कई थप्पड़ मार दिए...और उसे कैदखाने मे डालने का आदेश दे दिया... सिर्फ दो सैनिक ही उसे कैदखाने ले जा रहे थे..एलीना उसके पिता और कृष उनका पीछा कर रहे थे जैसे ही उन्होंने मौका देखा वो उनके सामने आ गए एलीना ने सुनहरी धूल उनकी आँखों में डाल दी और आरव को आज़ाद कर दिया और अब वो चारों फिरसे भाग रहे थे लेकिन थोड़ी ही देर मे एलिज़ा और उसके कुछ सैनिको ने उन्हें आ दबोचा.. अब भागने का कोई रास्ता नहीं था एलीना ने अपनी तलवार निकल और उनपर हमला बोल दिया.. रहदारी अब जंग का मैदान बन चुकी थी.. एलीना और एलिज़ा आमने सामने थी एलीना सालो का गुस्सा आज निकाल रही थी आरव और कृष तलवार चलाना नहीं जानते थे लेकिन अब जान बचाने के लिए लड़ रहे थे..
एलिज़ा अब भी वक़्त है सम्भल जाओ.. मै सिंघासन की लालच ने तुम्हे अंधा कर दिया है.. सम्भल जाओ आखिर तुम मेरी बड़ी बहन हो.. एलीना उसे समझाने की कोशिश कर रही थी..
कभी नहीं तुम मेरी दुश्मन हो मै तुम्हे ज़िंदा नहीं छोडूंगी दस साल पहले तुम बच गयी थी लेकिन अब नहीं... एलिज़ा ने वार किया और तलवार ने एलीना का हाथ घायल कर दिया एलीना ने भी पलटवार किया और तलवार एलिज़ा के पेट के आरपार हो गयी.. लेकिन थोड़ी ही देर बाद उसका जख्म भर गया और वो ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी और एलीना को ज़मीन पर गिरा दिया अब एलीना निहथी थी .. आरव ने ये देख लिया उसने जल्दी से अपना खंजर चला दिया और खंजर एलिज़ा के सीने के आरपार हो गया.. उसकी सांसे अटकने लगी और थोड़ी ही देर मे वो बेजान हो.. उसकी फौज के सारे सिपाही जो शायद उसके जादू के असर मे थे एलीना के सामने घुटनो के बल बैठ गए..
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राज्याभिषेक हो चूका था एलीना महारानी बन गयी थी पूरा राज्य खुशियों मे डूबा हुआ था.. और शाही दावत चल रही थी.. कृष तो दावत के मज़े लूट रहा था आखिर इतने दिनों बाद उसे ढंग का खाना मिला था.. वो बहुत खुश था.. लेकिन आरव बहुत उदास था.. आखिर उसे एलीना से जुदा होना था... वो अपनी सोचो में खोया हुआ था ज़ब एक नौकर उसे लेने आया.. एलीना ने उसे महल के बगीचे मे बुलाया था...
आरव मै तुम्हे बहुत याद करूंगी... एलीना उसके कंधे पर सर रख कर रो दी..
मै भी तुम्हे बहुत याद करूंगा.. क्या फिर कभी नहीं मिल सकते... आरव भी उसे छोड़कर जाना नहीं चाहता था इन कुछ दिनों मे वो उसके दिल के बहुत करीब आ गयी थी..
नहीं.. हम दोनों की दुनिया बिलकुल अलग है.. लेकिन तुम ज़ब भी इसे देखोगे मुझे अपने करीब पाओगे.. एलीना ने एक बहुत खूबसूरत ब्रेसलेट उसे पहनाते हुए कहा वो दोनों एक दुसरे को देखते रहे और खूब सारी बातें की लेकिन उन्हें जुदा होना ही था...
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कृष... आरव
...
उठो कबसे उठा रही हूँ तुम्हे स्कूल नहीं जाना क्या...
मम्मा की आवाज़ पर वो दोनों हड़बड़ा कर उठ बैठे..
मम्मा आप... हम यहाँ कैसे... दोनों एक साथ चिल्लाये उनकी आँखे हैरत से फैली हुयी थी.. उनकी माँ ने दोनों को दाँत लगाई और जल्दी उठने का कहकर चली गयी..
क्या वो सब सपना था.. कृष अपने आपसे बोला..
हरगिज़ नहीं भला एक ही सपना हमदोनो को कैसे aa सकता है.. आरव बेयक़ीनी से बोला तभी उसकी नज़र अपने हाथ मे पहने ब्रेसलेट पर पड़ी..
कृष हमारे साथ जो भी हुआ सबकुछ हकीकत था ये देखो ये मुझे एलीना ने दिया था... उसकी आख़री निशानी... आरव ने उसे ब्रेसलेट दिखाते हुए कहा अपने आखरी लफ़्ज़ पर वो उदास हो गया था उसे एलीना एक बार फिरसे याद आयी थी...
तुम्हे एलीना की याद आ रही है.. कृष ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुये पूछा जबकि आरव ने अपनी आँख से निकलने वाले आंसू को जल्दी से पीछे धकेल लिया तभी किचन से उनकी माँ की आवाज आयी और उन दोनों ने जल्दी से बिस्तर छोड़ दिया..
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स्कूल का पहला दिन खुशियों से भरा होता है लेकिन आरव बहुत उदास था.. प्रेयर के बाद ही वो स्कूल के पीछे आकर बैठ गया वो किसी से मिलना नहीं चाहता था.. वो अपनी सोचो मे गुम था तभी एक स्कूल बैग उसके पास आकर गिरा.. वो चौंक गया.. तभी एक लड़की दीवार पर से नीचे कुदी शायद वो लेट आयी थी और एंट्री ना मिलने की वजह से इधर से आयी थी.. वो ज़मीन गिर गयी थी..
आह.. वी कराह रही थी... उसका चेहरा नीचे झुका हुआ था
तुम ठीक हो...आरव जल्दी से उसके पास गया.और उसकी तरफ हाथ बढ़ाया...
लड़की ने सर उठा कर उसे देखे और आरव की आँखे हैरत से फैल गयी.. वही आँखे.. वही चेहरा.. एलीना वो एलीना ही थी लेकिन स्कूल यूनिफार्म में.. वो और भी प्यारी लग रही थी.. उसने अपना नाजुक हाथ आरव के हाथ मे दे दिया..
हाई.. मैं आरव हूँ.. आरव ने खुद पर काबू पाते हुए कहा वो बहुत खुश था..
मैं पूजा हूँ.. उसने कहा और दोनों मुस्कुरा दिए...आरव को लगा जैसे उसे नई जिंदगी मिल गयी..