रौशनी
रौशनी
प्रतीक को अब कुछ भी दिखाई नहीं देता, जब वह आठ साल था ,तब एक दुर्घटना में उनके आँखों की रोशनी चली गई थी।अपने इस दर्द से लड़ते लड़ते प्रतीक अब जवान हो चुका था।नेत्रहीनों के लिए बनी संस्था से जुड़कर उसके पिताजी प्रतीक की शिक्षा दीक्षा को पूरा करवाये।प्रतीक अपना हर काम अनुभव के सहारे कर लेता है।पर दिक्कत तो होती ही है, आम इंसानों की ज़िंदगी से थोड़ी मुश्किल जिंदगी जीते जीते प्रतीक नेत्रहीनों की तकलीफों को बहुत अच्छी तरह समझने लगा था।
प्रतीक के पिताजी अपनी मृत्यु के बाद नेत्रदान की इच्छा जाहिर की थी।उनकी इच्छा के अनुरूप उनकी आँखें प्रतीक को मिल गई, अब प्रतीक को नव रौशनी मिल गई, अपने पिताजी की आँखों से वह फिर से दुनिया देखने लगे।
प्रतीक ने फैसला किया कि वे किसी नेत्रहीन लड़की से ही विवाह करेंगे। वह अपने निर्णय पर अडिग रहा, उसकी तलाश पूरी हुई और वह नेत्रहीन लड़की को अपना जीवनसाथी बना लिया।
वह उसका सहारा बनकर एक मिसाल कायम किया।
