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Ruchika Rai

Abstract

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Ruchika Rai

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रात का सन्नाटा

रात का सन्नाटा

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वो सड़क पर अकेली चल रही रात का सन्नाटा डरा रहा उसेआज बैंक से लौटते वक़्त उसे काफी देर हो गयी थी ,रात का सन्नाटा गहरा हो रहा था मगर वह अकेले ही सड़क पर चली जा रही थी।रात का सन्नाटा उसे डरा रहा था पर वह कर भी क्या सकती थी।एक तो घर से इतने दूर बैंक में उसकी पोस्टिंग न चाहते हुए भी उसे ज्वाइन करना पड़ा था।

कोई सिफारिश काम नही आई थी।और दूसरे ये बैंक की ऑडिट ,सबको पता होता कि रात में उसे अकेले घर वापस लौटना होता पर कोई रियायत नही मिलनी थी।

ऑफिसर राजधानी से आये थे उन्हें भी अपना काम निपटाने की जल्दी थी।उन्हें बस अपनी सुविधाओं और परेशानियों का ख्याल था।और बार बार कहकर की मुझे जल्दी जाने दिया जाय खुद को छोटा महसूस नही कराना चाहती थी।पर अभी ये बहादुरी उसी पर भारी पड़ रही थी।कुत्ते का भौंकना और सियार की आवाज उस की रही सही हिम्मत को भी तोड़ने पर आमदा थी।

तभी उसे लगा कि उसका कोई पीछा कर रहा है वह जल्दी जल्दी कदम बढ़ाने लगी।पीछे मुड़कर देखना उसे गँवारा नही था।

जैसे ही वह अपने मुहल्ले की सड़क पर पहुँची तो उसकी जान में जान आई।और पीछे मुड़कर देखा तो बैंक के रास्ते में पड़ने वाले मंदिर के पास बैठा हुआ भिखारी था।जिसे रोज बैंक से लौटते वक़्त खाने के लिए कुछ पैसे दे जाती।वह आश्चर्य में पड़ गयी,वह यहाँ कैसे जैसे ही उसने कुछ पूछने के लिए आवाज दी, वह जल्दी से पलट कर गली से मुड़ चुका था।वह हतप्रभ रह गयी।



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