पहला प्यार
पहला प्यार
चारों तरफ से खुला बस छत ढँका हुआ क्लास रूम था, अनायास ही बच्चों का ध्यान आस पास से गुजरते हुए लोगों की तरफ चला जाता था और फिर शिक्षक की घूरती आँखें ही एक मात्र वजह थी जो छात्रों का बेमन से और बड़ी मुश्किल से कक्षा में ध्यान केंद्रित करने को मजबूर कर रही थी।
नौंवी कक्षा में अंग्रेजी की घंटी थी, यह वह दौर था जब किसी को चार लाइन धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलते सुन लो तो रश्क हो जाता था ।
कक्षा में अंग्रेजी के सर पढा रहे थे सभी बड़े मनोयोग से सुन रहे थे या सुनने का अभिनय कर रहे थे।
सुनने का अभिनय इसलिए कि बीच बीच में उनका ध्यान कक्षा से बाहर की तरफ चला ही जाता था।
तभी कक्षा के बाहर दो लड़के खड़े हुए और बोला, excuse me sir , सर ने पलट कर देखा, वह बोर्ड पर कुछ लिख रहे थे।और कक्षा के सारे बच्चों की नजर उस आवाज का पीछा करते हुए मुड़ी।
Sir ने कौतूहल से उन लड़कों की तरफ देखा , उनकी बोली और पहनावा दोनों ही उन्हें भीड़ से अलग कर रही थी।
देखने से वह पढ़े लिखे सभ्य सुसंस्कृत लग रहे थे, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कही बाहर से वह आये हों।
सर ने जवाब दिया , yes , say what happened?Who are you?
लड़के ने कहा-sir, where is principal chamber?
सर प्रिंसिपल चैम्बर का पता बताते हुए मुड़े।
इधर लड़कियों की साँसें ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे अटकी हुई थी।
और वह सारिका मानो किसी सहर में खो सी गयी थी।
जब मैंने उसे हिलाया तो उसकी तंद्रा भंग हुई और उसने कहा यार, क्या लड़का था?
मेरे दिलों दिमाग में वह बस गया है।
मैंने डांटते हुए कहा, पागल ये क्या कह रही तू, तू तो बिल्कुल ऐसी नहीं?
तब सारिका ने कहा, पता नहीं यार मेरे कानों में उसकी आवाज अब तक गूँज रही।
जैसे कोई मुझे अपनी तरफ खींच रहा।उसके बाद सारिका हमेशा उसकी यादों में रहती।
दिनों महीनों और वर्षों बीत गए, उस लड़के से कभी मुलाकात तो नहीं हुई।
पर सारिका जब भी मुझसे मिलती एक बार उसकी चर्चा करतीं और उसकी आँखें चमक उठती।
पहले प्रेम का ये जादू था जो उसके दिल पर असर कर रहा था।