वो पगली
वो पगली
हाँ वह पगली ही थी,फटे,चिथड़े कपड़े,बिखरे बाल,अस्त व्यस्त हालात,अपनी ही धुन में मगन रहती थी,गुमसुम सी कभी यहाँ ,कभी वहाँ भटकती रहती थी।कभी खूब हँसती ,कभी रोने लगती,कभी जोर जोर से चिल्लाती,कभी एकदम से चुप जाती थी।
गाँव में जिधर से वह गुजरती बच्चे पगली पगली कहकर चिढ़ाने लगते तब वह दुखित होकर छुप जाती या फिर चिल्ला चिल्ला कर आवाज देने लगती।
उसे देखकर नियति पर बड़ा अफसोस होता कि ईश्वर का विधान और ईश्वर के अस्तित्व पर भी संदेह गहराने लगते।
बड़े बुजुर्गों से सुना था कि वह बचपन से पगली नही थी,उसकी सुंदरता ,उसकी छवि ,उसका कार्य सब कुछ प्रशंसनीय था।हर तरफ उसके नाम की धुन मची रहती थी।श्वेता,श्वेता हर तरफ यही शोर था। वह महफ़िल की जान हुई करती थी,किसी के घर ,शादी विवाह पूजा या कोई भी उत्सव हो श्वेता के बिन कुछ भी सम्भव नही था।कब वह धीरे धीरे सारी जिम्मेदारी उठा लेती थी पता ही नही चलता था।बच्चों की प्यारी बुआ,बड़ों की प्यारी बहन,बुजुर्गों की प्यारी बिटिया थी वह।वह जिंदादिली का पर्याय थी।
उम्र के संग अन्य लड़कियों की तरह ही श्वेता की भी शादी की बात चलने लगी ।हर लड़की की तरह श्वेता के मन में भी शादी को लेकर कुछ सपने थे,कुछ अरमान थे।शादी का नाम सुनते ही श्वेता कल्पना की एक अलग दुनिया बसाने लगी थी।जहाँ एक खूबसूरत सा राजकुमार था जो उसका ख्याल रानियों की तरह ही रखता था।
खैर कल्पना पूरे होने के दिन भी करीब आ गए,श्वेता की शादी तय हो गयी।लड़के को बिना देखे,जाने ,सुने अपने अम्मा बाबूजी की पसंद पर उसने मुहर लगा दी थी।
नियत दिन बारात आई ,बारात क्या आई उसके अरमानों पर तुषारापात हो गया,उसकी उम्र से तिगुने उम्र का आदमी उसका दूल्हा बन कर आया था।
हर तरफ शोर फुसफुसाहट शुरू हो चुका था,धीरे धीरे ये फुसफुसाहट श्वेता के कानों में पहुँची और वह मौन हो गयी।
फिर उस दिन से श्वेता मौन हो गयी,मंडप पर श्वेता मशीनी रूप में थी।शादी संपन्न होने के बाद श्वेता ससुराल चल गयीं, एक महीने बाद ही खिलखिलाती हँसमुख श्वेता की जगह यह मौन श्वेता आईं।जो जिंदा लाश बन चुकी थी।
किसी को पता नही था वह हँसती खिलखिलाती श्वेता कहाँ गुम हो गयी थी।