राख से ही शोला
राख से ही शोला
गंगा किनारे, एक छोटा सा गांव था – आशापुर। नाम के विपरीत, अक्सर यहां निराशा का डेरा रहता था। हर साल गंगा की बाढ़ किसानों की उम्मीदों को डुबो देती थी और इस साल तो जैसे गंगा ने ठान ली थी कि आशापुर का नाम इतिहास के पन्नों से मिटा देगी।
इस साल की बाढ़ सबसे भयावह थी। लहलहाती धान की फसलें पानी में डूब गईं, मिट्टी के घर ताश के पत्तों की तरह ढह गए और लोगों के चूल्हे ठंडे पड़ गए। चारों तरफ हाहाकार मचा था। गांव का जमींदार, ठाकुर विक्रम सिंह, अपने ऊंचे टीले पर बने हवेली से सब देख रहा था, लेकिन मदद का हाथ बढ़ाने से पहले उसे अपनी जेबें भरनी ज़रूरी थीं।
उन हालातों में एक बूढ़ी औरत अम्मा, गांव के मंदिर में बैठी रो रही थी। उनका जवान बेटा, रवि, गांव का एकमात्र सहारा था। वो साहसी था, मेहनती था और हर विपदा में गांव के साथ खड़ा रहता था। लेकिन इस बाढ़ में रवि भी लापता हो गया था। नदी में डूबी फसलें और ध्वस्त घर तो फिर बन सकते थे, लेकिन रवि...उम्मीद की वो किरण..अम्मा के लिए रवि का गुम होना सब कुछ खो देने जैसा था।
गांव के लोग धीरे-धीरे उम्मीद खोने लगे थे। भूख और निराशा ने उन्हें जकड़ लिया था। कई लोग गांव छोड़ने की तैयारी कर रहे थे। ठाकुर विक्रम सिंह इस मौके का फायदा उठा रहा था। औने-पौने दामों पर लोगों की जमीनें खरीद रहा था।
उसी दौरान, गांव का एक युवा लड़का, सूरज, अम्मा के पास पहुंचा। सूरज हमेशा रवि को अपना आदर्श मानता था। उसने अम्मा के कंधे पर हाथ रखा और कहा, " अम्मा, रवि भैया यही कहते थे कि उम्मीद मत छोड़ो। जब लगेगा कि अब कुछ नहीं हो सकता, तभी चमत्कार होगा।"
अम्मा ने कमजोर आवाज में कहा, "पर सूरज, अब क्या चमत्कार होगा? रवि भी नहीं रहा और ये बाढ़ सब कुछ बहा ले गई।"
सूरज ने कहा, " अम्मा, रवि भैया ने सिखाया था कि हमें खुद मेहनत कर हर समस्या से लड़ना है। हम हार नहीं मानेंगे। हम मिलकर गांव को फिर से खड़ा करेंगे।"
सूरज ने गांव के युवाओं को इकट्ठा किया। उसने उन्हें रवि की बहादुरी की कहानियां सुनाईं और उन्हें प्रेरित किया। उन्होंने मिलकर ठाकुर विक्रम सिंह के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने घोषणा की कि कोई भी अपनी जमीन नहीं बेचेगा।
सूरज की प्रेरणा और गांव वालों के एकजुट होने से एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। उन्होंने मिलकर बाढ़ से हुए नुकसान का जायजा लिया। उन्होंने नदी के किनारे मजबूत बांध बनाने का फैसला किया।
सभी गांववाले दिन-रात मेहनत करने लगे। महिलाएं मिट्टी ढो रही थीं, पुरुष पत्थर जमा रहे थे और बच्चे छोटे-मोटे काम में मदद कर रहे थे। ठाकुर विक्रम सिंह ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन गांव वाले डटे रहे।
एक दिन, बांध बनाते समय, सूरज को नदी किनारे एक चमकती चीज दिखाई दी। वह उसे निकालने के लिए पानी में उतरा। वह रवि का कड़ा था। रवि का कड़ा मिलने से सूरज की उम्मीद और बढ़ गई।
और फिर चमत्कार हुआ। कई दिनों की अथक मेहनत के बाद, उन्होंने बांध बना लिया था। उसके बाद एक हफ़्ते तक लगातार बारिश हुई, लेकिन इस बार गंगा का पानी बांध के ऊपर से नहीं गुज़रा। आशापुर सुरक्षित था।
उसी शाम, एक नाव गंगा किनारे आकर रुकी। उस नाव से रवि उतरा। वह जीवित था! बाढ़ में बह जाने के बाद, वह एक नाव में सवार होकर एक दूर के गांव में पहुंच गया था। वापस आकर उसने गांव वालों को बांध बनाने में मदद की।
रवि को जिंदा देखकर अम्मा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। गांव में जश्न का माहौल था। ठाकुर विक्रम सिंह शर्मिंदा होकर अपनी हवेली में छिप गया।
आशापुर फिर से मुस्कुराने लगा। खेतों में धान की फसल फिर से लहलहाने लगी। मिट्टी के घरों को फिर से बना लिया गया। और अम्मा, सूरज और रवि की कहानी गांव-गांव तक फैल गई।
हर साल, आशापुर के लोग गंगा किनारे एक मेला लगाते हैं। वे रवि की याद में और उम्मीद की जीत का जश्न मनाते हैं। वे एक-दूसरे को याद दिलाते हैं कि जब आपको लगेगा कि अब कुछ नहीं हो सकता, तभी चमत्कार होगा। बस उम्मीद मत छोड़ो। क्योंकि राख से ही शोला उठता है।
