एक नई सुबह जागृति की ओर
एक नई सुबह जागृति की ओर
सुबह की धुंध एक अनचाही चादर की तरह कस्बे पर जमी हुई थी। गीता, जो अपनी उम्र के ढलान पर थी, अपनी खस्ताहाल चारपाई पर सिमटी हुई थी। सालों से उसकी जिंदगी तिल-तिल कर बीत रही थी। हर सुबह वही दिनचर्या - उठना, मुश्किल से कुछ काम करना, दर्द से कराहना और फिर अगली सुबह का इंतजार करना ताकि वही सब दोहराया जा सके। उसके शरीर में दर्द था, मन में निराशा और भविष्य के प्रति अविश्वास।
उसका छोटा सा मिट्टी का घर तंग और अंधेरा था, मानो उसकी जिंदगी की ही प्रतिछाया हो। उसके पति की मृत्यु हुए कई साल बीत चुके थे और बच्चे शहर में जाकर बस गए थे। कभी-कभार उनका फोन आ जाता था, लेकिन वो अकेलापन नहीं भर पाते थे जो गीता को हर पल सताता था।
गीता को लगने लगा था कि उसका जीवन एक बुझती हुई लौ की तरह है। वो बस दिन काट रही थी, जी नहीं रही थी। उसे याद भी नहीं था कि आखिरी बार उसने कब दिल से हंसी थी या किसी काम में खुशी महसूस की थी।
एक दिन, गीता अपने आंगन में बैठी धूप सेक रही थी। सूरज की हल्की किरणें उसके चेहरे पर पड़ रही थीं, लेकिन उसकी उदासी कम नहीं हो रही थी। तभी उसकी नजर एक छोटी सी गौरैया पर पड़ी। वो गौरैया एक सूखे तिनके को चोंच में दबाए उड़ रही थी। थोड़ी दूर पर वो एक घोंसला बना रही थी।
गीता उस गौरैया को देखती रही। उस नन्ही सी चिड़िया में कितनी लगन थी, कितनी मेहनत थी! गीता सोचने लगी कि क्या वो भी अपनी जिंदगी को ऐसे ही बना सकती है? क्या वो भी कुछ नया कर सकती है?
उसी दिन, गीता ने एक फैसला किया। उसने सोचा, "तिल-तिल मरने से तो अच्छा है की एक नई सुबह लाओ उठो और जागृति लाओ।"
उसने सबसे पहले अपने घर को साफ करना शुरू किया। उसने हर कोने को झाड़ा, हर चीज को धोया। कई दिनों तक वो लगातार काम करती रही। उसका शरीर दर्द से कराह रहा था, लेकिन उसके मन में एक नई ऊर्जा थी।
जब घर साफ हो गया, तो उसने अपने आंगन में कुछ पौधे लगाए। उसने फूलों और सब्जियों के बीज बोए और उन्हें पानी दिया। धीरे-धीरे पौधे बढ़ने लगे और आंगन रंगों से भर गया।
गीता ने गांव के बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। उसे पढ़ना-लिखना आता था और वो चाहती थी कि बच्चे भी शिक्षित हों। बच्चे हर रोज उसके घर आते और वो उन्हें कहानियां सुनाती और लिखना-पढ़ना सिखाती।
गीता की मानो तो उसकी जिंदगी ही बदल गई। अब वो अकेली नहीं थी। उसके आसपास बच्चे थे, पौधे थे और एक नई उम्मीद थी। उसने महसूस किया कि जिंदगी में अभी भी बहुत कुछ करने को बाकी है।
एक दिन, गीता अपने आंगन में बैठी बच्चों को पढ़ा रही थी। सूरज चमक रहा था और फूल खिल रहे थे। गीता ने गहरी सांस ली और मुस्कुराई। उसने सोचा, "मैंने तिल-तिल कर मरने से इनकार कर दिया और एक नई जिंदगी चुनी। और यह जिंदगी बहुत खूबसूरत है।"
गीता की कहानी मेरे लिए प्रेरणा थी। उसने सिखाया कि जिंदगी में कभी भी देर नहीं होती। अगर हम चाहें तो हम हमेशा एक नई शुरुआत कर सकते हैं और अपनी जिंदगी को सार्थक बना सकते हैं। बस हमें जागने और उठने की जरूरत है।
जब जागो तभी सवेरा ।
