जीवन में चहूँ ओर है रंग
जीवन में चहूँ ओर है रंग
शीला ने अपने माथे पर लगी गुलाल को हौले से छुआ। आज रंगों से सराबोर होने का मन था, पर घर की सूनी दीवारें और उदासी से भरी निगाहें उसे हर बार रोक लेती थीं। पति के गुज़र जाने के बाद, होली का त्योहार जैसे बेरंग हो गया था। पर आज, उस उदासी को तोड़ने का उसने एक फैसला लिया था।
शीला ने एक थाली में गुलाल, अबीर और कुछ मिठाइयां सजाईं और चल पड़ी, शहर के किनारे बने 'आशा किरण' वृद्धाश्रम की ओर। सुना था, वहां कई विधवा महिलाएं रहती हैं, जिनकी ज़िंदगी रंगों से दूर, एकाकीपन में कट रही है।
वृद्धाश्रम के गेट पर पहुंचते ही एक अजीब सी शांति ने उसे घेर लिया। अंदर एक बड़ा सा आंगन था, जहां कुछ महिलाएं धूप में बैठी बातें कर रही थीं, कुछ माला जप रही थीं और कुछ बस शून्य में ताक रही थीं।
शीला को देखकर वार्डन ने मुस्कुराकर स्वागत किया। उसने शीला को सारी महिलाओं से मिलवाया। शीला ने देखा, हर चेहरे पर एक कहानी छिपी थी - किसी ने पति खोया था, किसी ने बच्चे और किसी को अपनों ने ही छोड़ दिया था।
शीला ने संकोचते हुए थाली आगे बढ़ाई और कहा, "आज होली है... मेरा मन किया कि आप सबके साथ थोड़ा रंग खेल लूं।"
पहले तो सब चुप रहीं, फिर कमला दीदी, जो सबसे बुजुर्ग थीं, उन्होंने धीरे से कहा, "बेटा, हमारे जीवन में अब रंग कहां? सब तो बेरंग हो गया है।"
शीला ने उनकी आंखों में झांका। उसमें सालों की उदासी और अकेलापन दिख रहा था। उसने हौले से कमला दीदी के गाल पर गुलाल लगाया और कहा, "नहीं दीदी, रंग तो हर जगह है, बस उसे देखने की ज़रूरत है। आज हम सब मिलकर इस होली को मनाएंगे और अपने जीवन में फिर से रंग भरेंगे।"
धीरे-धीरे माहौल बदलने लगा। शीला ने एक-एक करके सभी महिलाओं को रंग लगाया। उसने होली के गीत गाए, चुटकुले सुनाए और सबके साथ मिलकर खूब हंसी-मज़ाक किया।
पहले संकोच कर रही महिलाएं भी धीरे-धीरे खुल गईं। उन्होंने भी शीला को रंग लगाया, होली के पुराने गीत गाए और अपनी कहानियां सुनाईं।
कमला दीदी ने बताया कि कैसे वो और उनके पति हर साल होली पर मिलकर पकवान बनाते थे और पूरे मोहल्ले में बांटते थे। सरला दीदी ने अपने बच्चों के साथ होली खेलने की यादों को साझा किया। रमा दीदी ने अपने पति के साथ मिलकर लगाए गए फूलों के पौधों की कहानी सुनाई।
शीला ने महसूस किया कि हर कहानी में दर्द तो था, लेकिन साथ ही जीवन के प्रति एक ललक भी थी। उन्हें ज़रूरत थी बस किसी ऐसे की, जो उन्हें सुने, समझे और उनके जीवन में फिर से रंग भरे।
दोपहर तक आंगन रंगों से भर गया। महिलाएं बच्चे बन गई थीं, सब एक दूसरे पर गुलाल डाल रहे थे, नाच रहे थे और गा रहे थे। शीला ने देखा, कमला दीदी के चेहरे पर बरसों बाद मुस्कान आई थी। सरला दीदी की आंखें चमक रही थीं और रमा दीदी के होंठों पर हंसी खेल रही थी।
शाम को जब शीला वापस जाने लगी तो सभी महिलाओं ने उसे घेर लिया। कमला दीदी ने उसका हाथ पकड़ा और कहा, "बेटा, आज तुमने हमारे जीवन में सचमुच रंग भर दिए। हम तुम्हें कभी नहीं भूलेंगे।"
शीला की आंखें भर आईं। उसने कहा, "ये तो मेरा सौभाग्य है कि मुझे आप सबके साथ होली मनाने का मौका मिला। मैं आपसे वादा करती हूं, मैं फिर आऊंगी।"
घर लौटते वक्त शीला के मन में एक अजीब सी शांति थी। उसने महसूस किया कि दूसरों के जीवन में रंग भरने से ज़्यादा खुशी और कुछ नहीं होती। आज उसने सिर्फ होली नहीं खेली थी, बल्कि कुछ विधवा महिलाओं के मुरझाए जीवन में उम्मीद और खुशियों के रंग भी भरे थे।
उस दिन से, शीला ने वृद्धाश्रम जाना नियमित कर दिया। वो वहां जाकर महिलाओं के साथ समय बिताती, उनकी कहानियां सुनती और उन्हें अपने जीवन में फिर से खुश रहने के लिए प्रेरित करती। और हर होली पर, वो 'आशा किरण' वृद्धाश्रम जरूर जाती, यह वादा निभाती हुई कि वो उनके जीवन में रंगों की कमी नहीं होने देगी।
