Ranjeet Jha

Tragedy

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Ranjeet Jha

Tragedy

क़र्ज़ की ज़िम्मेदारी

क़र्ज़ की ज़िम्मेदारी

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बाथरूम के दरवाजे से हलकी-हलकी आवाज़ आ रही थी, रात को क्या बनेगा? पर डिस्कशन चल रहा था बेटी बोली- “मम्मी फ्राइड राइस, चिंग्स वाला”

“चिंग्स मशाला के लिए पैसा कहाँ से आयेगा?”

मैंने दरवाजा हल्का सा खोलकर बोला -“मेरे बैग में से ले लो”

“पापा आज बहुत खुश हैं उनसे जो मांगो मिल जायेगा”- छोटका बोला

“तुम्हारे लिए दो थाप मांग लेते हैं अभी ठहरो दो मिनट में मिल जायेगा”-ये आवाज बीवी की थी मैंने बाथरूम का दरवाजा बंद कर लियाI

घर का माहौल हल्का थाI पिछले सात-आठ साल बाद ये पहला मौका था सब खुश थे कई सालो बाद मैंने अपना बोझ हल्का किया था वस्तुतः मुझे कोरोना काल में पता चला कि लोन पर ली गई चीज़े तब तक अपनी नही होती जब तक उसकी किस्ते ना चुक जायेI फिर मोह माया त्यागकर उस लोन का निपटारा कर दिया गयाI

बात 2011-12 की है उस समय प्रॉपर्टी की कीमत आसमान पर थाI हम किराये पर रहते थेI जब हम किराये पर होते हैं लगता है कि किराये का पैसा ऐसे हीं फ्री फ़ोकट का दे रहे हैंI उस पैसे को हम बचाने के चक्कर में लग जाते हैं लेकिन ऐसा होता नहीं है जिसको हम अभी दे रहे हैं उसने पहले लगाया होगा ये सोंचते नहीं हैंI किराये के घर की परेशानियाँ अलग होती हैI सैलरी समय पर मिले या ना मिलेI किराया हमें समय पर देना होता हैI अगर एकाध दिन आगे पीछे हो जाये तो मकान-मालिक शक्ल देखने लग जाता हैI कभी मकान मालिक को चुप्पी चाहिए, बच्चे शोर बहुत मचाते हैंI बच्चे हैं तो शोर है बड़ों का मजाल कि ज़रा सा चूं चां कर लेI साल में एकाध मेहमान आ जाये तो पानी बहुत खर्च होने लगता हैI जरा सा कुछ भी हो तो उनको बोलने में तनिक भी झिझक नहीं होता- “जी कहीं और दूसरा देख लोI” इसके बाद पूरा घर रिक्शा ठेला परI सामान ढोने के क्रम में कितने मिक्सियाँ, कुर्सियाँ, टी.वी. टूट जाते हैं इसका कोई हिसाब किताब नहींI इनसे बचने का एकमात्र उपाय यह है बात-बेबात किराया बढ़ाते रहो, और मकान मालिक के हाँ में हाँ मिलाते रहोI

इन्ही परेशानियों का स्थायी हल ढूढने के लिए अपने घर के चाहत में हम लोग इधर उधर हाथ पाँव मार रहे थेI हाथ पाँव इसलिये मार रहे थे क्योंकि घर हमें लोन पर चाहिए थाI हमारे पास पूरे पैसे नहीं थेI हम जहाँ रहते थे वो जगह मेरे ऑफिस के नजदीक में था 3-4 किमी की दूरी थी चाहे तो पैदल भी आ-जा सकते थे लेकिन वहां लोन की सुविधा नहीं थीI 

मेरे ऑफिस में एक भद्र महिला काम करती थी, और वो मेरठ से आती थी, एक हमारे साथी बागपत से आते थे कई लोग फरीदाबाद और गुडगाँव से भी आते थे, ना केवल आते थे बल्कि समय से पहले आते थे सबसे नजदीक मैं रहता था और सबसे लेट मैं हीं आता थाI अपने साथियों को देखकर में भी ऑफिस से दूर घर लेने के लिए उत्साहित हुआI

सबसे पहले हमने फरीदाबाद में देखाI वहाँ हमारे एक साथी रहते थेI लेकिन वहाँ भी लोन नहीं हो रहा थाI फिर हमने कौशाम्बी में देखाI पहली बार जब हम फ्लैट देखने गये तो हमें दाम बताया गया आठ लाख, हफ्ता दिन बाद जब दोबारा गये तो भी वही बताया गयाI फिर 15-20 दिन बाद जब मैं अपने एक दोस्त को दिखाने ले गयाI उस दिन वहाँ मेट्रो चालू हुआ था, उस दिन आठ लाख वाले फ्लैट की कीमत ग्यारह लाख बताई गईI हफ्ता बाद जब बीवी को लेकर गया तो उस फ्लैट की कीमत तेरह बताई गईI इतना हमारा बजट नहीं थाI जब मैंने उससे आठ वाली बात की तो वो प्रताप विहार और पता नहीं कहाँ-कहाँ दिखाने लगाI फिर हमने उसे मना कर दिया इसके बाद हम वहां कभी नही गयेI डीलर के यहाँ एक बुज़ुर्ग भी फ्लैट देखने आये थे उन्होंने साइड में लेजाकर हमें समझाया- “बच्चों के पढाई-लिखाई पर ध्यान दो अभी इन चक्करों में कहाँ पड़ रहे हो?” लेकिन हमारे दिमाग में तो अपना मकान घुसा हुआ थाI

हमारे पास जो पैसे थे उसको हमने एफ.डी. में डाल दिया और फ्लैट की बात हम दिमाग से निकालने का कोशिश करने लगेI लेकिन मेरी खोज इन्टरनेट पर जारी थाI जब कभी मुझे खाली समय मिलता मैं नेट पर घर खोजने लगताI इसी क्रम में मुझे अंकुर विहार के बारे में पता चलाI वहाँ मेरे बजट के हिसाब से एलआईजी फ्लैट आठ/साढ़े आठ का मिल रहा थाI फिर एक रविवार को मैं उधर से घूम-घाम कर भी आ गयाI फ्लैट मुझे ठीक-ठाक लगाI 35-40 गज का एक रूम सेट छोटी फैमिली के रहने लायक सही थाI किराये पर भी तो हम एक ही रूम में गुज़ारा करते थेI दूरी मेरे ऑफिस से लगभग 35 किमी था बाइक से डेढ़ घंटे का समय लगता थाI उस समय मेरा छोटा भाई माँ के साथ उधर हीं आस-पास में शास्त्री नगर, पुश्ता पर रहता थाI मेरे एक ग्रामीण मित्र उससे भी आगे ट्रोनिका सिटी के आस-पास किराये पर रहते थेI मुझे लगा यहाँ रहा जा सकता हैI मैंने बीवी को दिखाकर एक जगह फाइनल कर बयाना दे दियाI जनवरी में हमारी रजिस्ट्री हो गईI

मेरे दिमाग में दो चीज़े थी- एक तो अभी जो है उसे देकर बाकी लोन करा लिया जाय, और जो किराया हम देते हैं उसी में हज़ार-दो हज़ार मिलाकर ई.एम.आई. दे दिया जायेगाI आज नहीं तो कल हमारे लिए नहीं तो बच्चों के लिए कुछ हो जायेगाI दूसरा आज नहीं तो कल निकालने पर भी कुछ देकर ही जायेगा लेकर नहींI प्रॉपर्टी का दाम बढ़ता ही है घटता नहींI

मार्च में मैंने नौकरी बदलीI जून में हम शिफ्ट हुएI शुरू-शुरू में तो सब कुछ सही थाI बेटी का एडमिशन मैंने वहां के प्राईवेट स्कूल में करवा दियाI ऑफिस तो मैं पहले भी लेट हीं आता था अब और ज्यादा लेट आने लग गया थाI पहले मैं 10 साढ़े 10 बजे तक आ जाता था अब मैं 12 साढ़े 12 बजे तक आने लग गया था क्योंकि 10 बजे मैं घर से ही निकलता थाI एक डेढ़ घंटे का रास्ता पीक ऑवर में 2 ढाई घंटे में कैसे तब्दील हो जाते पता नहीं चलताI 8 साढ़े 8 बजे शाम में मैं ऑफिस से निकलता घर पहुँचते-पहुँचते साढ़े 10-11 बज जातेI ऑफिस में बॉस परेशान! घर पर बीवी परेशानI इन दोनो के बीच मैं महा परेशानI

रजिस्ट्री में ज्यादा खर्च होने के वजह से मैं कर्जे में आ गया थाI ई.एम.आई., फीस देने के बाद हर महीने कुछ ना कुछ खर्च बढ़ ही जाताI कभी बिजली कनेक्शन के पैसे तो कभी लोहे के गेट के पैसे अतिरिक्त हो जातेI जिसके लिए हमें हाथ खर्च में भी कंजूसी करना पड़ताI उस समय बहुत कडकी थी हर दुसरे दिन किसी ना किसी से सौ-पचास माँगने पड़तेI बाइक पर थकान ज़्यादा होने के वज़ह से मैंने मेट्रो से आना-जाना शुरू कर दिया थाI बाइक कश्मीरी गेट मेट्रो स्टेशन पर लगाकर मैं मेट्रो पकड़ लेता, लेकिन ना तो उससे समय बचता और ना ही पैसेI आने-जाने का खर्च डेली का सौ रुपये थाI मेट्रो में सीट मिलने के बाद थकान थोड़ी कम होतीI बारिश में जाम से छुटकारा मिल जाताI वहाँ मच्छरों ने भी खूब परेशान किया कभी भी चैन से सोने ना दिया थाI अबतक आते जाते मुझे लगभग तीन महीने हो गये थेI मुझे ऐसा लगने लगा था कि सारी ज़िन्दगी बाइक पर ही बीत जाएगीI डेली का कम से कम चार पाँच घंटा तो था हीI वापस घर आने पर ऐसा लगता था जैसे कोई कुछ बोले नहीं चुपचाप लेटा रहूँ सोता रहूँI सन्डे को भी अक्सर यही हाल होता थाI

मच्छर वहाँ खुजली वाले थेI काटने के बाद उस जगह पर बहुत देर तक खुजली होती थीI एक बार ऐसे ही खुजलाने के चक्कर में मैंने पैर को ज्यादा खुजला दियाI दुसरे दिन वहां एक जख्म हो गयाI मुझे लगा अपने आप पहले जैसे ठीक हो जाता था हो जायेगाI लेकिन हुआ नहींI तीन चार दिन बाद मैंने आधी-अधूरी दवाई खाई, जब तक दवाई खाई ठीक रहा, दवाई छोड़ने के बाद दुबारा से हो जाता थाI अबतक मैं कई डॉक्टरों को दिखा चुका थाI जख्म दिखाते-दिखाते ब्लड टेस्ट शुगर टेस्ट भी हो गयाI सब नार्मल! डॉक्टर वहां सारे पैसे ठगने वाले लगेI सरकारी में भीड़ देखकर मुझे घबराहट होतीI एक दिन बाइक पर किक मरते समय वो फुट गयाI खून-मवाद देखकर बीवी बोली - “हमको यहाँ रहना नहीं है वापस चलोI”

वहां रहने के क्रम में उसे पता चला, ये जगह लूट-पाट, मर्डर जैसे क्राइम के लिए मशहूर है, और मेरी घर वापसी हमेशा देर रात होती थीI इस कारण वो चिंतिंत रहती थीI उधर का वातावरण भी ठीक नहीं थाI बच्चों ने भी एक छत से दुसरे छत पर छलांग लगाना शुरू कर दिया थाI एक छत से दुसरे छत के बीच में दो-तीन फूट की खाली जगह होती थीI बच्चे उस खतरनाक खाली जगह की परवाह किये बगैर इधर से उधर कूदते रहतेI मेरी बेटी भी इस उछलकूद में शामिल हो गईI खैरियत ये रही कि वो दुसरे छत पर ढीक ढंग से पहुँच गयीI अगर कुछ उंच-नीच हो जाता तो भगवान जाने क्या होता? उस दिन उसका धुलाई अच्छे से हुआ, और मुझे अंतिम अल्टीमेटम मिल गया-“हमको यहाँ रहना ही नहीं है, चाहे जैसे मर्जी कीजिये, जो मर्जी कीजिये वापस चलना हैI”

अबतक मैं भी काफी थक गया थाI इस तीन चार महीने में मुझे खुद कभी इतना समय नहीं मिला कि मैं बच्चों के पास बैठूं, बात करूँI मेरा अधिकतर समय ऑफिस आने-जाने में ही बीतता थाI मेरे दिमाग से अपने मकान का भुत उतर चुका थाI फिर मेरे मन में ये बात आई कि तीन हज़ार तो मैं महीने का आने-जाने में खर्च करता ही हूँ इसी में दो ढाई मिलाकर किराया दे दूंगा, आने जाने का तीन चार घंटा तो बचेगा इस समय में कोई दूसरा काम कर लूँगा तो भी दो पैसे मिल जायेंगे, और कुछ नहीं तो आराम ही कर लूँगा, और फिर तीन साढ़े तीन हमें यहाँ किराये से भी मिल जायेगाI यही सब सोचकर नवंबर में दिवाली के बाद हम लोग पवेलियन बैक किराए पर आ गयेI

जिस समय हम वहाँ से खाली करके आ रहे थे, मैंने एक डीलर से बात की उसको निकालने के लिएI उसने बोला तेरह तक निकल जायेगाI उस समय मेरे दिमाग में लालच आ गयाI पाँच छे महीने में इतना भाव मिल रहा है और साल दो साल रुकने के बाद हो सकता है और ज़्यादा मिलेI ये सोचकर मैं रूक गयाI दो तीन महीने बाद वहां किरायेदार मिल गयाI पैंतीस सौ रुपये महीने पर उसे किराए पर लगा दिया गयाI लेकिन किरायेदार वहाँ कभी टिक कर रहा नहींI 

साल में छह महीना वो खाली ही रहता थाI इस छह महीने का बिजली भी हमें अपने ही जेब से देना पड़ता थाI हर साल छह महीने में मकान के डेंटिंग-पेंटिंग में पाँच छह हज़ार खर्च हो जातेI लोन का इ.एम.आई. भी सात हज़ार रुपये महिना थाI इस बीच एक बार मकान काफी समय तक खाली रह गया, लगभग एक साल तकI उसका बिजली का बिल भी बहुत हो गया छह हज़ार के करीबI बिजली बिल जमा करने के बाद मैंने बिजली कटवाने के लिए अप्प्लिकेशन दे दियाI उन्होंने रसीद तो दे दिया लेकिन बिजली काटा नहींI 

इस बीच 2014 में चुनाव हुए और सरकार बदल गयाI अगर कुछ नहीं बदला तो वो था प्रॉपर्टी की कीमत जो हमेशा खरीदते समय आसमान पर और बेचते समय पाताल में होता हैI इस बीच परेशानी होने पर मैं उसको फिरसे निकालने में लग गयाI पता चला- “अभी तो घाटे में जायेगा प्रॉपर्टी के दाम काफी नीचे हो गये हैंI कुछ टाइम रुक जाओ तो सही दाम दिला दूंगाI” मैं रुक गयाI हमने सोचा खाली है तो किराये पर ही लगा देते हैं कुछ तो आएगाI बिजली का कनेक्शन कटा नहीं था लेकिन बिल नहीं आता थाI मकान में मरमत का काम करवाकर एक बुजुर्ग को किराए पर दे दिया गयाI वो भाई साहब डेढ़-दो साल रहेI बिजली का बिल आता नहीं था इसलिये हम भी लेते नहीं थेI हम भी यह सोचकर निश्चिंत थे कि कनेक्शन तो कटवा रखा है जब आएगा तो देखेंगेI इस बीच पता चला बिजली वाले आकर कनेक्शन काट गयेI किरायेदार को हमने अस्थायी बिजली का कनेक्शन बगल के फ्लैट से दिलवायाI जब हम दुबारा कनेक्शन के लिए गये तो पता चला पिछला कनेक्शन कटा नहीं था और दो साल का उसका बिल लेट फी मिलाकर तीस हज़ार होते हैं उसको दिए बिना नया कनेक्शन नहीं होगाI 

तीस हज़ार बिजली बिल की बात सुनकर हमारे किरायेदार साहब अगले महीने बताये बिना ही गायब हो गयेI 

मकान एकबार फिर से खाली हो गया था और इस बार उसमे बिजली का कनेक्शन भी नहीं थाI मेरे लिए एक साथ तीस हज़ार रूपये का इंतजाम करना मुश्किल थाI इसी बीच हमारे प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की घोषणा कर दीI ब्लैक मनी को रोकने के लिए और पता नहीं क्या क्या? फ्लैट की कीमत हमने जितने का लिया था उतना भी नहीं मिल रहा था उल्टा बैंक को हम लगभग चार लाख खाली सूद दे चुके थेI मकान बेचने पर भी बिजली का भुगतान तो हमें ही करना थाI 

मेरे लिए बहुत मुश्किल समय था अपने खुले सभी विकल्पों पर बहुत अच्छी तरह सोंच समझकर मैंने पैसों का बंदोबस्त कियाI पहली बार भी बिजली के कनेक्शन के लिए बीवी के गहने गिरवी रखे थे इस बार भी रखा बिजली लगवाया मकान का मरम्त करवाया और किसी किरायेदार का इंतज़ार करने लगाI अबतक मैं खुद काफी हतोत्साहित हो चुका थाI अब मेरे दिमाग में ये आ रहा था कि अपने मकान के चक्कर में मैं आठ-नौ लाख लुटा चुका था और पता नही कबतक कितना लूटाना पड़ेगा? किरायेदार मिला और मकान किराये पर चढ़ा दिया गया पर हमेशा की तरह मकान का भाव नहीं चढ़ाI कुछ समय बाद जी.एस.टी. लागू हुआ और रहा सहा कसर भी टूट गयाI 

मुझे एक दो लोगों के चेहरे और नाम याद आये, जिन्होंने बयाना तो दिया था लेकिन किसी कारण से उनका लोन नही हो पाया और वो लोग मकान नहीं ले पाए थे कितने खुशकिस्मत रहे होंगे वो लोगI माना डीलरों ने उनके पैसे वापस किये हो या ना किये हो डूबा भी होगा तो लाख पचास हज़ारI

हमारे बिल्डिंग में एक फ्लोर पर छह फ्लैट बने थे, तीन आगे से तीन पीछे सेI ग्राउंड, फर्स्ट और सेकंड तीनो को मिलाकर अठारह फ्लैट थेI हम अपने-अपने फ्लैट में मरम्त करवा लेते थे लेकिन बिल्डिंग के कॉमन एरिया के लिए कभी किसी ने पैसे दिए नहीं, या कभी किसी ने पैसे इकट्ठे किये नहींI दिनोदिन बिल्डिंग खस्ताहाल होते जा रही थीI पहले तो प्लास्टर झडा, फिर सीढियों का रेलिंग टुटा और ईंटे दिखने लगीI छत पर पानी की टंकियां टूट चुकी थीI पहले अठारह थी अब वो पाँच छह बची थी वो भी टूटी हुई थी उनमे से पानी रिसते रहता थाI पूरे बिल्डिंग में सीलन थाI बीते सात-आठ सालों में बिल्डिंग की हालत खंडहर सी हो गई थीI दो तीन बार सड़क बना और बिल्डिंग नीचे हो गयाI अब नाले का पानी भी हमारे ग्राउंड पर जमा होने लग गया थाI

अब हम अगर किसी को दिखाते भी थे तो सामने वो कुछ बोलता नहीं था लेकिन बाद में मना कर देता थाI कई तो सामने बोल देता-“पहले बिल्डिंग का मरम्त करा लो फिर देखते हैंI”

हारकर मैं वापस उसी डीलर के पास गया आठ साल पहले जिसने मुझे दिलाया थाI उसको हाथ जोड़कर बोला-“भाई साहब उतने का ही बिकवा दो जितने का लिया थाI”

उसने कल्कुलेटर से कुछ केल्कुलेट किया फिर बोला- “भाई बिल्डिंग में तुम्हारे कुछ जान तो है नहीं जमीन का रेट इतना होता है इस हिसाब से अगर सारे फ्लैटवाले तैयार हो जाये तो बता देना एक को पाँच-छह लाख मिलेगाI लेकिन सारे उसी रेट में तैयार होने चाहिए तभी मैं किसी बिल्डर से बात करूँगाI वो तोड़कर नया फ्लैट बनाएगा और बेचेगाI”

“सारे बिल्डिंग वाले एक साथ मरम्त पर राजी नहीं होतेI बेचने पर कैसे हो जायेंगे मेरा एक है मै उसकी बात करने आया हूँ उसकी बात करोI”

“पाँच-छह मिलेगा” वो बोला 

“इतना तो बैंक का मूल बकाया है मुझे क्या बचेगा?”

“वो तुम देख लोI”

मुझे उसके बातों से लगा इतने का भी बिकवाकर वो मेरे ऊपर एहसान ही कर रहा हैI मुझसे पाँच-छह का लेके ये आगे जरूर नौ-दस का बेचेगाI अगर पाँच-छह का ही देना है तो किसी जरूरतमंद को दे दिया जायेI 

एक दो लोग किरायेदार के मौजूदगी में मकान देखने आये थेI किरायेदार को लग गया मकान बिकाऊ हैI उसने मुझसे पूछा मैंने बताया “परेशानी है बेच दूंगा आठ-नौ तक अगर मिल जाये तोI”

इस बात को दो तीन महीने हो गयेI बात आई गई हो गईI 

एक दिन समाचार देखते हुए पता चला कि चीन में कोई वायरस फैला है जिससे संक्रमित होकर लोंगों की मौत हो रही हैI बीवी बोली- “अब?”

मैंने कहा- “वो तो चीन में हो रहा है हमें क्या फर्क पड़ता है?” लेकिन दो महीने बाद जब लॉकडाउन लगा तो पता चला क्या और कितना फर्क पड़ता हैI लॉकडाउन के समय सेलेरी आधी हो गयी खर्चे जितने थे उतने ही रहेI सरकार ने मोरेटोरियम की घोषणा कर दियाI इसके बाबजूद एक ही महीने के अन्दर एक ही इ.सी.एस. को बाउंस होने के बाद भी बार-बार रेप्रेजेंट किया जाता रहाI हमने पहले तीन महीने का मोरेटोरियम लियाI फिर दुबारा तीन महीने का लियाI जिसको भी प्रिन्सिपल में जोड़ा गयाI पिछले आठ नौ सालों में हमने जितना प्रिन्सिपल में से जितना कम करवाया था उससे ज्यादा उसमे जोड़ दिया गयाI बार-बार बैंक का मेसेज भी आ रहा थाI धीरे-धीरे दिमाग पर बोझ बढता जा रहा थाI दिमाग ने काम करना बंद कर दियाI रात को दो-दो बजे तक जगे रहते सुबह 10-11 बजे तक सोये रहतेI

चारों तरफ से निराश-हताश नफे नुकसान को दिमाग से निकलकर मैंने अपने किरायेदार को फ़ोन किया-“भाई अगर आपको सच में लेना है तो जितना बैंक का लोन बाकी है उतना ही दे दो, मुझे कर्ज से छुटकारा मिल जायेगाI आप तो रह ही रहे होI दो तीन साल रह लोगेI इतने का तो कभी भी निकल जायेगाI”

बात उसके समझ में आई, वो मान गयाI लगभग 10-11 लाख डुबाने के बाद ये बात समझ में आई हमारे बड़े बुजुर्गो ने क्यों मना किया है बेटा कर्जा लेकर कुछ मत करना दो दिन भूखे रहना मंजूर था उन लोगों को लेकिन कर्ज मंजूर नहीं थाI


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