प्यासी रूह (हास्य-व्यंग्य)
प्यासी रूह (हास्य-व्यंग्य)




"रोहन! रोहन!” जय खिड़की से धीरे-धीरे आवाज़ सामने ही बैठे रोहन को बुला रहा था।
रोहन टीवी देखने में मगन, रुक अभी बताता हूँ! जय ने एक छोटा सा कंकड़ उठाकर रोहन के ऊपर फेंका।
वो कंकड़ अंदर से आ रही माँ को लग गया।
”आह्ह!”
“माँ क्या हुआ?” रोहन ने चौंककर माँ से पूछा।
“पता नहीं यह कंकड़ कहाँ से आकर मेरे हाथ में लगा!” यह सुनते ही रोहन के कान खड़े हो गए।
“अरे माँ खिड़की खुली है, शायद बाहर बच्चे होंगे? मैं देखता हूँ! आप मेरे लिए कुछ खाने को बना दो बहुत भूख लगी है!”
“हम्म शायद!”
माँ को रसोईघर में भेज, रोहन खिड़की पे, “अबे मरवाएगा क्या? माँ देख लेती तो?”
“तो क्या करता? मैं अपना आराम खोकर तेरे लिए कल के प्रश्नपत्र के नोट्स बनाकर लाया हूँ! तू यहाँ मजे कर रहा है!”
“सॉरी यार ला अब जल्दी देदे माँ आ जाएगी तो हालत खराब कर देगी!”
“ना! ऐसे नहीं मिलने वाला बेटा!”
“क्यों?”
“रोहन बेटा! गरमागरम भजिए बन गए आकर खाले!”
“आया माँ! दे देना जय माफ़ कर दे गलती हो गई! माँ बुला रही है।”
“एक शर्त पर!”
”क्या?”
“मुझे भी भजिए खाने है! अब पहले पेट पूजा फिर काम दूजा!”
रोहन कभी नोट्स नहीं बनाता था! “ठीक है रुक!”
“कोल्ड ड्रिंक भी हो तो ले आना!” जय ने हँसकर कहा।
रोहनने फ्रिज से कोल्डड्रिंक निकाली, भजिए की प्लेट लेकर बाहर चला।
“रोहन? यह क्या? कहाँ चले? यहीं बैठ खतम करो और पढ़ाई शुरू करो!”
“माँ पाँच मिनट में आया, यही हूँ खिड़की पर!” माँ को झूठ बोलकर रोहन जय को भजिए, कोल्ड ड्रिंक पकड़ाते हुए रोहन को पापा ने देख लिया।
“यह ले अब तो दे!”
”हाँ यह ले...” जय से नोट्स ले रोहन पलटा तो देखा माँ पीछे आ रही थी। रोहन ने तुरंत नोट्स छुपाए...
”अरे भजिए की प्लेट और कोल्ड ड्रिंक कहाँ गई रोहन?”
“माँ यहाँ वो! वो प्यासी रूह!” डरते हुए बोला।
“प्यासी रूह? क्या बक बक रहा है?”
“हाँ माँ अचानक से प्यासी रूह आई और मेरे हाथों से सब छीन ले गई!” मासूम चेहरा बनाकर रोहन बोला।
दरवाजे से पिताजी दाखिल होते हुए बोले, “बेटा डरो मत! मैं उस प्यासी रूह को अपने साथ लेकर आया हूँ।”
जय को देख, मरर गए! प्यासी रूह का नाम क्या लिया! अब पापा हमारी रूह कँपाएंगे!