Bharat Bhushan Pathak

Inspirational

1.5  

Bharat Bhushan Pathak

Inspirational

प्यास का महत्व

प्यास का महत्व

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अग्निवेश अपने परिवार के साथ गाँव में ही रहता था, ऐसा गाँव जहाँ जीवनयापन करना बमुश्किल ही संभव था। अन्य गाँवों तथा शहरों की अपेक्षा बहुत ही पिछड़ा हुआ 

था वह गाँव। विभिन्न प्रकार की असुविधाएँ तथा परेशानियों ने इस गाँव को ही सम्भवतः अपना बसेरा बनाना स्वीकार कर लिया था,जो इस गाँव में दिख भी रहा था।


 ‘अभावनगर’ ऐसा ही तो गाँव था न पीने को साफ पानी, न खाने को अच्छा भोजन और दूर-दूर तक फसल का नामोनिशान भी नहीं था वहाँ। ऊपर से मोहनजोदड़ो की सड़कों की भाँति यहाँ के सड़क और उस पर वहाँ 

इधर-उधर पड़ा कचरे का अंबार और चहुँओर पड़ा भयंकर सूखे का मार।


यहाँ तक स्नानादि तक के पानी का प्रबन्ध नहीं दिखता था वहाँ।

हाँ एक चीज की उपलब्धता थी वहाँ, और वह थी असंख्य कंकाल

सदृश्य मानवाकृतियाँ।

यहाँ तक शिक्षा-दीक्षा की भी व्यवस्था और न ही कहने को एक अस्पताल ही था वहाँ।

’दरिद्रता को भी रूला देने वाले गाँव’ की संज्ञा उस गाँव को देना अनुचित न होगा।


पर प्यास तो बूझाना अनिवार्य होता है न! इसलिए लोग कोसों दूर भरे गड्ढे का गन्दा मटमैला पानी पीने को मजबूर थे, जो कि गाँव के बाहर था।

कहने को तो पानी था वह जिसे पीने क्या छूने तक का मन न करे। पर कीचड़ में ही कमल खिला करता है न, इसलिए अग्निवेश के रूप में वहाँ भी खिल गया, उसने गाँव से बाहर निकलकर शहर जाकर कुछ सीखकर अपने गाँव का

उद्धार करने का प्रण ले लिया।


बड़ा ही मुश्किल सफर था उस गाँव से बाहर निकलकर कोलकाता जाकर अपनी आगे की पढाई पूरी

कर पुनः अपने गाँव लौटकर गाँव की तस्वीर को बदलना, परन्तु वह जल संरक्षण कैसे करें और गन्दे पानी को 

पीने लायक किस प्रकार बनाया जाए, इन सारे चीजों को सीखकर आया। यथा - वाटर हार्वेस्टिंग, वाटर फिल्ट्रेशन, वाटर प्यूरीफिकेशन, डैम बनाकर पानी के बहाव को नियंत्रित करना, पानी का बचाव इत्यादि कोलकाता से सीखकर आया और

अपने गाँव की तस्वीर को अपने प्रण के अनुसार बदल ही दिया था। साथ ही अब उसका गाँव ‘अनुभवनगर’ से ‘समृद्धनगर’ के नाम से प्रसिद्ध हो चुका था और विकास ने इस गाँव की ओर भी अग्निवेश के प्रयत्न से अपने रथ को मोड़ दिया था।


अब कालान्तर में अभावनगर नाम से जाना जाने वाला वह गाँव ‘समृद्धनगर’ और बाद में अग्निवेश के प्रयासों की खुशी से लोगों ने इस गाँव का नाम ‘अग्निवेशपुरी’ रख

दिया था और वह गाँव इसी नाम से विख्यात हो गया था।


जहाँ-जहाँ दूर-दूर तक यातायात का नामोनिशान नहीं था अब अनुभव और उसके काॅलेज के प्रयास से उस गाँव में न्यूज चैनल व तरह-तरह के दूकान और कल-कारखाने खुल चुके थे। पर लोगों ने अभी भी इस गाँव में जल की

प्रचुरता बनाए रखने के लिए नए-नए तकनीकों से जल संरक्षण करने के लिए नए-नए तकनीकों को अपनाना

बन्द नहीं किया था। साथ ही वो अपने पास-पड़ोस के गाँव में भी जाकर लोगों को जल का हमारे लिए महत्व, जल की कमी से होने वाली समस्या को बताना भी शुरू कर दिया था।


साथ ही वे लोग प्रतिदिन किसी न किसी गाँव में जाकर लोगों को जल -संरक्षण करने के उपाय को भी

बतलाते थे, जिसमें जल-संरक्षण न करने से होने वाले परेशानियों को दिखाने के लिए ‘अभावनगर’ से ‘समृद्धनगर’ बनने तक की सम्पूर्ण कहानी नाटकीय रूप में अवश्य सम्मिलीत रहती थी, क्योंकि विज्ञान का ऐसा मानना है कि

लोग कहने से अधिक देखकर अधिक सीखते है।


अब इस गाँव के लोगों की जीवनशैली में लगभग यह शामिल-सा हो गया था कि लोग कभी अकेले कभी अग्निवेश के साथ-साथ घूम-घूम कर आसपास के गाँव, नगर व मुहल्ले में जाते थे और उन्हें जल के महत्व को समझाते थे। कभी-कभी अब इस ‘समृद्धनगर’ के लोग

बड़े-बड़े क्लब व हाॅटल तक जाने में परहेज नहीं करते थे और वहाँ जाकर बरबाद होते पानी को बन्द कर देते थे।


इसमें वे लोग कभी-कभी स्विमींग पुल का पूरा पानी तक सूखा देते थे और लोगों को पानी बचाने की विनती करते थे। कभी कुछ लोग जो ये सब समझ जाते थे, वो भी इस जागरूक टोली का हिस्सा बन जाते थे और जो लोग इसके उपयोग को नहीं समझते थे वे विरोध पर हावी हो

जाते थे।


सारांश के तौर पर अनुभव का गाँव तो प्यास का महत्व समझ चुका था, पर न जाने हम सब बुद्धिजीवी कब समझेंगे इस प्यास के महत्व को??


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