प्यारी सखी
प्यारी सखी
आज मेरी दोस्त हमेशा के लिए यह शहर छोड़कर चली गई,मन बहुत उदास हो रहा है, अभी- अभी टैंम्पू में अपने पूरे परिवार संग बैठ कर रेलवे स्टेशन के लिए निकली है, अलविदा कहकर बोझिल कदमों से घर लौट आई,आते ही बच्चों ने भूख का शोर मचाना शुरू कर दिया है। बच्चों को खाना खिलाने के बाद रसोई समेट कर बिस्तर में ढह गई,सुबह से कुछ खाया नहीं है फिर भी खाने की इच्छा नहीं हो रही है,ये दोस्ती अजीब ही होती हैं,एक बार हो जाए फिर तो आपको सारी जिन्दगी अपने घेरे में कैद कर लेती है।
कुछ ही दिनों की जान पहचान को गहरी दोस्ती में बदलते देर नहीं लगी, और समय के साथ- साथ ,धीरे-धीरे एक दूसरे से खुलते ही चले गए।अपने सुख-दुःख बांटते और रास्ते किनारे घंटों बतियाते,कोई क्या सोचता है इन सब बातों को नजरअंदाज करते हुए हम बातें करते रहते, फिर अपने अपने घरों के फर्ज याद आते और हम अगले दिन मिलने का वादा कर एक-दूसरे को अलविदा कहते।
तभी एक दिन उसने कहा कि वे अपने गाँव लौट जाएँगे ,वहाँ घर में बेटा-बहू की जरूरत है,आजकल जहाँ बच्चे माता पिता को वृद्धाश्रम भेज रहे हैं, मेरी सहेली अपने सास-ससुर की सेवा के लिए अच्छी खासी नौकरी छोड़कर चली जा रहे हैं , जानकर अच्छा लगा। फिर वे जाने की तैयारियों में जुट गए, हमारा मिलना भी कम हो गया।अंततः आज चली भी गयी।
मैं जानती हूँ उसकी याद हमेशा आएगी, और वह भी मुझे याद करेगी मगर अब कभी-कभी बात होगी रोज मिलना तो दूर की बात है। घर की जिम्मेदारियों के बीच पता नहीं कैसे समय निकाल पाएँगी हम। लेकिन वह सारी जिंदगी मुझे याद रहेगी ,मन कहता है कि दुनिया गोल है हम जरूर मिलेंगी ।
