प्यारी चिड़िया
प्यारी चिड़िया
इस प्यारी सी चिड़िया ने मेरे घर की बालकनी से सटे पेड़ पर घोंसला बनाया था। घोंसला भी इतना सुंदर मानो किसी कारीगर ने बनाया हो। बालकनी से सटी डाल पर उसका घोंसला था। कुछ दिनों के बाद वहाँ से आवाजें आनी शुरू हो गई थी, चीं -चीं। न बड़ा अच्छा लगता था उन आवाजों को सुनना छोटे-छोटे बच्चों की आवाजें सुनना अब तो आदत सी पड़ गई थी। चिड़िया का बार- बार उड़कर कर जाना बच्चों के लिए दाना लाना और उनके मुंह में डालना दिखाई देता था।
शायद अब चिड़िया को भी पता लग गया था कि हम उसका ध्यान रखते हैं उसके लिए बालकनी की मुंडेर पर खाना पानी सब रख दिया जाता था। थोड़े दिनों के बाद बच्चे बड़े हो गए और यहाँ- वहाँ उन्होंने भी उड़ना शुरु कर दिया। पर चिड़िया माँ की पारखी नजर हमेशा बच्चों पर लगी रहती। उनको उड़ना सिखाने से लेकर दाना चुगने तक शायद उसने एक लंबा सफर तय किया। फिर एक दिन मैंने देखा घौंसला खाली था।चिड़िया के बच्चे खुले आसमान में दूर क्षितिज तक कहीं भी उड़ने के लिए चले गए और फिर लौट कर ना आए।पता नहीं क्यों, मन बहुत दुखी हुआ पर हैरान थी चिड़िया के जज्बे को देखकर,वह दुखी नहीं थी। उसने भी घोंसला छोड़ दिया था पर पता नहीं क्यों शाम ढलते ही जैसे ही दीपक जलता चिड़िया पेड़ की टहनी पर आकर बैठ जाती। कोई माने या ना माने पर मेरा दिल कहता है शायद,अभी भी इंतजार रहता है कि उसके बच्चे लौट आएँगे। मैं खुश थी क्योंकि उसके बच्चे उड़ना सीख गए थे अपनी स्वच्छंद उड़ान ले सकते थे। पर माँ तो माँ होती है ना। शायद आज भी शाम होते ही जैसे ही मैं दीपक जलाती तो मेरी नजरें डाल पर चली जाती है और दो-चार दिन में कभी ना कभी मेरी प्यारी चिड़िया मुझे देखने को मिल जाती है। उसे देखते ही मुझे लगता है कि उसे पता लग गया कि मैं उसे मिस कर रही हूँ। अब इसे कुदरत का करिश्मा कहिए या हमारी दोस्ती, मैं और मेरी प्यारी चिड़िया यूँ ही अक्सर मिल जाते हैं।