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Mukta Sahay

Inspirational

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Mukta Sahay

Inspirational

प्यारे नाज़ुक रिश्ते

प्यारे नाज़ुक रिश्ते

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मधु ऑफ़िस से लौटी तों देखा दोनो बड़ी ननंदे घर आई हैं। माँ जी ने मधु को देखते ही कहा “कितनी देर से आई हो मधु आज। देखो तो दोनो दीदियाँ दो घंटे से चाय और तुम्हारे हाथ के पकौड़े के इंतज़ार में बैठी हैं। ऐसा करो पहले पकौड़े ले आओ, छोटी भी आधे घंटे में पहुँचती ही होगी। तभी चाय लाना।”

जी माँ जी कहती हुई मधु पर्स वहीं सोफ़े पर रखती हुई किचन की ओर बढ़ गई। ऐसी स्थिति तो अब उसे महीने में चार पाँच बार झेलनी ही पड़ती है। ननंदे उसी शहर में जो रहती हैं। जब भी आराम करने का मन हुआ तीनों एक साथ घर चली आती हैं और फिर माँ जी के आदेशों के बौछार शुरू हो जाते हैं। मधु सोचती उसे कब ऐसा आराम मिलेगा।

पकौड़े ले कर जैसे ही मधु बैठक मैं आई, छोटी दीदी भी दरवाज़े से दाख़िल हुई और चहकती हुई बोली "वाह मधु ! तूने मेरे लिए गरमा गरम पकौड़े तैयार रखे हैं। मज़ा आ गया। भाभी हो तो ऐसी।" सभी पकौड़े खाने लगे, मधु ने एक पकौड़े हाथ में लिया और चाय लाने किचन में चली गई।

चाय के साथ बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ और घूमता फिरता मधु की नौकरी को ताने मरने पर पहुँच ही गया, हमेशा की तरह। बड़ी मेहनत से दिन रात एक कर के तो वह बैंक में पी॰ओ॰ बनी थी। इन ननंदो ने मधु के पी॰ओ॰ होने पर ही समर के लिए पसंद किया था और शान से सभी को बताती फिरतीं थीं की उनकी भाभी पी॰ओ॰ है। पर शादी के बाद से नौकरी पर ही ताने मिलने लगे। नौकरी पर होने के बाद भी मधु घर के सारे काम निपटाती है जैसे कि एक आम गृहिणी या यो कहे की जैसे उनकी तीनों ननंदे।

बार बार उन्ही तानों को सुन सुन कर आज मधु थोड़ी विचलित हो गई। उसने अपना संयम आज पाँच सालों बाद खो ही दिया। मधु ने बड़ी शालीनता से कहा "दीदी ये तो क़िस्मत और मेहनत की बात है की आज मैं बैंक मैं इस पद पर हूँ। वैसे माँ जी ने पढ़ाया तो आपको भी उतना ही है जितना मेरी माँ ने मुझे , पर शायद आपके ही तरफ़ से कोशिश में कमी रह गई की आपको किसी प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता नहीं मिली।"

माँ जी ने मधु के उखड़ते रूख को देख बात सम्भालते हुए कहा "चाय ठंडी हो रही है। मधु के हाथ के अदरक-दालचीनी के चाय का तो जवाब ही नहीं है। मधु ये बताओ तुम्हारे नए मैनेजर ने ज्वाइन किया कि नहीं ? उसके ना आने से मधु के पास काम ज़्यादा हो गया है। हर दिन ऑफ़िस में लेट हो जा रहा है। मधु तू बैठ आज मीना अपने हाथ के भरवाँ बैगन खिलाने वाली है।" अभी सब समझ गए थे की माँ जी अपनी बहु के काम के महत्व को समझती है और उसके साथ खड़ी हैं। माँ जी के इस मान और लाड़ की वजह से ही तो मधु ने भी उनके इस घोंसले के एक तिनके को हिलने भी नहीं दिया है। सास बहु के बीच का ऐसा तालमेल ही आज के सुखी सम्पन्न समाज की कुंजी है।


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