Barsha Mallik

Tragedy Inspirational Children

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Barsha Mallik

Tragedy Inspirational Children

प्यार से नफरत तक का सफर

प्यार से नफरत तक का सफर

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में और मेरे भईया हम दोनों को एक मां चाहे जन्म ना दिया था पर हम दोनों की प्यार किसी भी सगे भाई बहनें से कम न थी। हम दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे थे । मेरे भाई मेरे बिन एक पल ना रह सकते थे और मैं भी उन्हें छोड़ कर कुछ दूजा खयाल न ला सकती थी अपनी दिमाग में। मेरे भाई मुझसे बहुत बड़े होने के बाबजूद भी वो मेरे साथ एक छोटे बच्चे की तरह खेल ते थे । हम दोनों बहुत लड़ते थे , झगड़ते थे, लेकिन उसके बावजूद कभी भी हम दोनों में कोई दरार न आई थी। भईया जब शादी किए थे तब मेरी मामा पापा की भी शादी नहीं हुई थी। भईया ने तो लव मैरेज किया था। भईया और भाभी दोनों की जोड़ी राधाकृष्ण की जोड़ी जैसी थी। में जब पैदा हुई थी तब मेरे भईया की दो बेटे हो चुके थे। बह फिर भी मुझे अपने पलकों पर बिठा कर रखते थे।

भईया जहां भी जाते मेरे लिए कुछ न कुछ जरूर लाते थे। लेकिन वो कहते हैं न, जो कोई भी चीज बेहद हो जाती है तो उसे किसकी नजर लग जाती है। कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ भी।

वह दिन मेरे ज़िंदगी के काले बादल जैसे थे आज भी मुझे याद है। में भूल भी केसे सकती हूं। मेरी वह छोटी सी गलती की वजह से में मेरे भईया को हमेशा हमेशा के लिए खो बैठी । लेकिन सब कुछ इतना जल्दी हो गई की किसीको कुछ भनक भी न हुई। में कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि मैं भईया से इस तरह अलग हो जाऊंगी।

 वह दिन मुझे अभी भी याद है। उस दिन मैं मेरी सहेली के साथ बाहर जाने के वास्ते छुप छुप कर घर से बाहर जा रही थी। इतवार के कारण भईया ने उसदीन काम से छूटी लेकर घर पर थे। शाम की वक्त थी और हर तरफ अंधेरा छाने लगा था। भईया ने मुझे बाहर जाते हुए देख कर मेरे पास आकर बहुत कुछ सुनाए, ना जाने क्यों भाई को उस दिन क्या हुआ था वो बहुत ज़्यादा गुस्से में थे।

 मुझे शाम के वक्त बाहर जाता हुआ देख उनकी दिन भर की और गुस्सा का सारा भड़ास मुझ पर ही निकाल दिया । में बस उनकी बात सुनती ही रह गई और यह कह कर वो चले गए और मैं वहां पर ही खड़ी थी जैसे कोई म्यूजियम में रखे हुए स्टेच्यू जैसे। भईया के मन में फिर क्या विचार आया वह तो सिर्फ ईश्वर जाने, वह मेरे पास दुबारा आकार फिर से मुझे डाटने लगे। में चुप ही थी लेकिन पता नहीं शायद मुझ में जैसे कोई भूत सवार हो गया। में अचानक भईया के ऊपर गुस्सा हो कर बोल दिया – "तुम होते कौन मुझे इतनी बात सुनाने वाले..... तुम मेरे कुछ नहीं हो... तुम्हारा और मेरा कोई नाता नहीं है। "

हाय! फिर और क्या था ? मेरी मुंह से निकला हुआ यह शब्द जैसे उनकी दिल को टुकड़ा टुकड़ा ही कर डाला। में तब बहुत छोटी थी और मुझे पता भी नहीं था कि मैं भईया को क्या बोल दिया? में तो बस यह सोच कर रह गई की मेरे भाई हैं में उनसे रूठ गई तो वह मुझे मनाने आ जायेंगे , उनकी गुस्सा ठंडा हो जाएगा तो वह मुझ से आकर खुद बात करेगें। कुछ देर बाद मुझसे हर दिन की तरह खेल खेलेंगे और न जाने कितनी बात मुझे कह कर मुझे मुस्कुरा लेंगे , फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा।

मेरे सोचने जैसा कुछ भी नहीं हुआ। मेरी वह बात भईया को हमेशा हमेशा के लिए मुझसे दूर ले गया। एक दिन गया, एक महीना गया और एक बरस भी चला गया लेकिन भईया ने मुझसे ना बात की ना मेरे साथ उनकी पहला जैसा रिश्ता रहा। में तरस्ती रही मेरी भाई को पाने के लिए लेकिन मुझे क्या पता था की उनके दिल में मेरे लिए जो भी प्यार था वह अब नफरत में तकदीर हो चुकी थी। मेरी लाख कोशिशों के बाद भी वह मुझसे कभी भी बात नहीं की।

किसके दिल में जितनी मुस्कील से प्यार जगाते हैं न वही प्यार किसी छोटी सी वजह से नफरत में तकदीर होने को एक पल भी नहीं लेता है। इसलिए हम कभी अपने लोग हो या बाहर के लोग हो हम क्या कहते हैं उस बात किसीको केसा लगेगा अच्छा या बुरा यह सब कुछ ध्यान देना चाहिए। याद रखें तुम्हारी एक बात किसकी ज़िंदगी सबर और बिगाड़ भी सकती है। हां! यह सच है कि किसीको झूठ बोल कर उसकी दिल में घर बनाने से कहीं ज्यादा अच्छा है कि उसको सच बता कर उसकी दिल तोड़ देना सही होता है। मगर यह नियम हर जगह लागू नहीं होता है कभी कभी झूठ बोलना पड़ता है प्यार पाने के लिए । यह बोले तो झूठ ही किसी संपर्क की पहली सीढ़ी होती है। लेकिन याद है वह झूठ किसकी अच्छा के लिए होनी चाहिए।


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