प्यार की ऐसी की तैसी

प्यार की ऐसी की तैसी

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उसे देखकर उदय के मन में उदय होने लगते थे कई सारे सूरज। वह जिस ओर से आती, उदय को लगता रोशनी उसी ओर से आ रही है। उसके समीप पहुंचते ही वह महसूस करता जैसे वह रोशनी के तालाब में नहा रहा हो। उसे लगता कि मौसम बदलने लगा है। बसंत ऋतु आने लगी है। चारों ओर सर-सर, फर-फर हवाएँ बहने लगी हैं। वह खुश्बुओं की हवेली में आराम फरमा रहा है। उसे लगता कि आसमान कितना करीब है। उसे लगता कि समुंदर की गहराई कुछ भी तो नहीं। वह कभी बादलों के जहाज पर बैठकर सैर करने लगता, कभी चांद-तारों के साथ गप्पें मारने लगता, तो कभी समुंदर में मछलियों के साथ लूडो खेलने लगता। उसे लगता सब कुछ कितना खूबसूरत है। बिल्कुल स्वर्ग की तरह।


उसके दोस्त उसे चिड़ाते- "देख, देख पागल ! तेरा प्यार आ गया है।" वह शरमाकर पीछे मुड़ जाता और मुस्कुरा देता। वह मन-ही-मन खुद से कहता- "उदय बेटा ! बड़ा भाग्यशाली है तू !"


उदय के लिए उस लड़की का होना ठीक उसी तरह था, जिस तरह मोबाइल के लिए सिम कार्ड का होना। दिन हो या रात वह हमेशा उसके खयालों में रहती। वह किताब खोलता तो उसका चेहरा नजर आता, वह बाजार जाता तो उसके कदमों की आहट उसे सुनाई देती, वह नींद में होता तो उसके ही सपने देखता। सच कहूँ तो उदय उस लड़की की लिए दीवाना हो चुका था।


वह घंटों उससे फोन पर बात करता। यहाँ तक कि हर महीने उसका फोन रिचार्ज कर देता। वह कभी महंगे होटल में नहीं बैठा था, लेकिन उस लड़की के आग्रह पर वह हर महीने एक दिन जरूर शहर के महंगे रेस्तरां में लंच करने जाता। उसने अपने लिए बाजार से कपड़े खरीदना बंद कर दिया था। उस लड़की के लिए वह माल से महीने में एक बार कपड़ा जरूर खरीदता। कभी जींस, कभी टाप, कभी कुछ, कभी कुछ।


उसके दोस्तों ने उसे कई बार समझाया कि इतनी दीवानगी अच्छी नहीं। वह नहीं माना। कहते हैं ना कि प्यार अंधा होता है। यकीनन उदय भी उस लड़की की मुहब्बत में अंधा हो चुका था। उसकी आंखों के आगे काला पर्दा जम चुका था। और वह पर्दा उस दिन हटा, जिस दिन उसने उस लड़की को उस रात किसी और के साथ गलबहियाँ डाले शहर की एक कालोनी से गुजरते हुए देखा।


वह दौड़ता हुआ अपने कमरे में आया। उसने अपना फोन स्विच आफ कर दिया था और बिस्तर पर उल्टा लेट गया। उस रात वह इतना रोया इतना रोया कि उसकी आंखें सूज गईं। वह तीन दिन तक कालेज नहीं गया। चौथे दिन उसने साहस जुटाया।


उस दिन भी दोस्तों ने उसे चिढ़ाया- "देख, देख पागल ! तेरा प्यार आ गया है।" उस दिन वह पीछे मुड़कर शरमाया नहीं, बल्कि आग-बबूला होकर बोला- "प्यार की ऐसी की तैसी।"


तब से जब भी वह लड़की उसे दीखती है उसे लगता है उसके चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा फैलता जा रहा है। उसे महसूस होता है कि जैसे वह किसी अंधेरी गुहा में धंसता जा रहा है। उसे लगता है कि मौसम बदल रहा है। पतझड़ की ऋतु आ गई है। सूखे पत्ते गिरकर चारों ओर बिखर रहे हैं। उसे लगता है कि आसमान बहुत दूर है। उसे लगता है कि समुंदर की गहराई तक वह कभी पहुँच नहीं सकता। बादल उसे चिढ़ाते हैं। चांद-तारे उसे काट खाने को दौड़ते हैं। मछलियों का नाम सुनकर वह भागने लगता है। उसे लगता है सब कुछ कितना बदसूरत है। बिल्कुल नर्क की तरह।



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