प्याजी सूट

प्याजी सूट

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पूरे घर में शादी की तैयारियाँ चल रही थी। ताई कितनी खुश थी उनके छोटे भाई की शादी जो थी। पूरे घर भर को बुलावा आया था। ताई तो हफ्ता भर पहले ही चली गयी थी और जाते जाते सौ सौ बार ताकीद देकर गई कि समय से शादी पर पहुँच जाना। खूब बढ़िया इंतजाम किया है पिताजी जी ने। आर्केस्ट्रा पार्टी भी बुक की है। खूब शानो-शौकत से शादी होगी।

ताई के मायके जाते ही चुप्पी सी छा गई घर भर में, सारी रौनक़ शादी की वह साथ ही ले गई। उनके मायके के स्टैंडर्ड और हमारे स्टैंडर्ड में जमीन आसमान का फर्क था पर जाना तो था ही शादी पर, रस्म अदायगी के तौर पर भी और सामजिक रिश्तों के तौर पर भी।

उर्मिल और बाकी भाई-बहन भी बहुत उत्सुक थे जाने को। पिताजी ने भी हामी भर दी थी जाने की पर एक शर्त पर, पहले स्कूल फिर शादी ! पिताजी स्कूल की छुट्टी के पक्ष में बिलकुल नहीं थे। अनुशासन और पढ़ाई को लेकर वह हमेशा सजग रहते। हमेशा एक ही बात समझाया करते- "आज पढ़ लिख जाओगे तो जिंदगी बन जाएगी, नहीं तो दूसरों के सहारे घुट घुट कर जीवन काटना पड़ेगा।"

दोपहर को स्कूल से घर लौटी, ट्रंक खोला तो वहाँ वह इकलौता सूट तो था ही नहीं जो हर शादी ब्याह में पहन कर जाया करती। आज माँ होती तो सारी तैयारियाँ करके रखती ! आँखो से टप टप आँसू छलक पड़े। अब तो क्या शादी पर जाना न हो पाएगा ! पहली बार मौका मिलता आर्केस्ट्रा देखने का ! शादी की पूरी धूमधाम पनीली आँखों के आगे तैर गई।

अचानक पिताजी ने पुकारा। झट से आँसू पोंछे और सिर झुकाए उनके आगे जाकर खड़ी हो गई।

"तैयार नहीं हुई अभी तक। दूर जाना है आने जाने में भी समय लगेगा और फिर कल स्कूल भी तो है।"

"जी पिताजी !" जैसे तैसे मरियल सी आवाज में बुदबुदाई !

पिताजी ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा- "इसके लिये परेशान हो रही है ना ! ये मैं नाप के लिये ले गया था, पर आज तू हमेशा वाला सूट नहीं ये वाला सूट पहन।"

इतना कहकर उन्होंने प्याजी रंग का प्रिंटेड सूट हाथ पर धर दिया। अब पनीली आँखें पिता के गले लग अनवरत बह चली।


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