प्यादे

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मीडिया, सोशल मीडिया सभी जगह एक ही चर्चा थी। हर एक केवल प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री शेखर चौहान के बारे में ही बात कर रहा था। कितनी तेज़ी से शेखर ने राजनीति की सीढियां चढ़ते हुए यह मुकाम प्राप्त किया था।

जब वह शहर के कॉलेज में पढ़ने आया था तब एक शर्मीला युवक था। ठीक से किसी से बात भी नहीं कर पाता था। उसे लोगों से बात करना सिखाया उसके साथ पढ़ने वाली कविता ने। कविता शहर की रहने वाली थी। अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ी थी। खूबसूरत होने के साथ बहुत स्मार्ट भी थी। उसे शेखर की मासूमियत बहुत अच्छी लगी। शेखर और कविता अच्छे दोस्त बन गए।

शेखर शर्मीला था किंतु बहुत बुद्धिमान था। कविता की मदद से उसने जल्द ही शहरी जीवन के तौर तरीके सीख लिए। कॉलेज के दूसरे साल से ही उसे जानने वाले आश्चर्य में थे कि उसमें इतना बड़ा परिवर्तन इतनी जल्दी कैसे आया।

साधारण परिवार में जन्मे शेखर ने बचपन से ही घर में आर्थिक आभाव देखा था। जब वह सोंचने के लायक हुआ तो उसने खुद से वादा किया कि वह स्वयं को इस लायक बनाएगा कि आने वाले जीवन में उसे पैसों की तंगी ना झेलनी पड़ी। लोग उसका सम्मान करें।

कॉलेज में रहते हुए कुछ छात्र नेताओं से उसका संपर्क हो गया। उसने छात्रों के मामलों में दिलचस्पी लेना आरंभ कर दिया। अपनी जगह बनाने के लिए शेखर छात्रों के काम करवा देता। छात्रों के बीच वह बहुत लोकप्रिय हो गया। इसका लाभ उठाते हुए वह छात्रसंघ के अध्यक्ष पद के लिए खड़ा हुआ और जीत गया।

शेखर और कविता के बीच की दोस्ती अब प्यार में बदल चुकी थी। कविता उसके साथ आने वाले सुखद भविष्य के सपने देखती थी। शेखर की हर सफलता उसे अपनी लगती थी। शेखर भी उसे अपना जीवनसाथी बनाना चाहता था। उसे जीवन की हर खुशी देना चाहता था।

राष्ट्रीय स्तर की एक राजनैतिक पार्टी के एक स्थानीय नेता की दृष्टि शेखर पर पड़ी। उन्होंने शेखर को पार्टी में शामिल कर लिया। यहीं से शेखर के मन में राजनीति के क्षेत्र में सफल होने का सपना पनपने लगा।

शेखर राजनीति के दांव पेंच समझने लगा था। वह जानता था कि यदि ऊपर पहुँचना है तो रसूखदार लोगों के संपर्क में आना होगा। जगदीश प्रसाद सिंह पार्टी के एक कद्दावर नेता थे। वह राज्य की राजनीति में अपना प्रभाव रखते थे। शेखर ने उनसे संपर्क बनाना शुरू कर दिया। अपनी बुद्धिमत्ता तथा राजनीतिक समझ से उसने जगदीश प्रसाद को बहुत प्रभावित किया। वह उन्हें अपना गुरू कहता था। उसके और जगदीश प्रसाद के बीच अच्छे संबंध विकसित हो गए। शेखर अक्सर उनके घर भी जाता था।

जगदीश प्रसाद की बेटी निहारिका, मन ही मन शेखर को पसंद करने लगी थी। जब भी शेखर, जगदीश प्रसाद के घर जाता निहारिका उसके साथ ढेर सारी बातें करती। जगदीश प्रसाद को भी उन लोगों की दोस्ती से कोई ऐतराज नहीं था।

एक बार शेखर जब जगदीश प्रसाद के घर गया तो पता चला कि वह किसी आवश्यक काम से बाहर गए हैं। निहारिका, शेखर को अपने कमरे में ले गई। पहली बार वह पूरी बेफिक्री से शेखर से बात कर रही थी। मौका देख कर उसने अपने मन की बात शेखर को बता दी।

शेखर जब घर लौटा तो बहुत असमंजस में था। उसने तो कविता के साथ अपना जीवन बिताने के बारे में सोंचा था। कविता ही थी जिसने उस शर्मीले युवक में आत्मविश्वास पैदा किया था। कविता उसे दिलोजान से चाहती थी। लेकिन निहारिका से शादी का मतलब था कि एक ही झटके में वह उस जगह पहुँच जाता जहाँ पहुँचने में उसे कई साल लगने वाले थे। रात भर वह इस बारे में सोचता रहा।

शेखर और निहारिका की शादी कई दिनों तक सुर्खियों में रही। जगदीश प्रसाद का कहना था कि शेखर की प्रतिभा देख कर उन्होंने अपने शिष्य को दामाद बना लिया।

शेखर ने कंस्ट्रक्शन बिज़नेस में कदम रखा। जगदीश प्रसाद के नाम व रसूख का शेखर ने भरपूर लाभ उठाया। देखते ही देखते उसका व्यापार चमक उठा। अब उसके पास अपना नाम, पैसा, रुतबा सब कुछ था।

अब उसने राजनीति में अपने कदम बढ़ाने शुरू किए। अभी तक वह अपने ससुर की पार्टी में था। विधानसभा चुनावों में पार्टी ने उसकी जगह जगदीश प्रसाद को ही तरजीह दी। इससे नाराज़ होकर शेखर विपक्षी दल में चला गया। उस दल ने उसे जगदीश प्रसाद के विरुद्ध ही टिकट देने का फैसला किया। जगदीश प्रसाद ने शेखर को समझाया कि वह धैर्य रखे। वह पार्टी में उसके लिए कोई उचित पद दिलवा देंगे। लेकिन शेखर नहीं माना। चुनाव में जगदीश प्रसाद हार गए।

शेखर धीरे धीरे आत्मकेंद्रित होता जा रहा था। निहारिका से शादी उसने अपने लाभ के लिए की थी। पर कभी भी उसने उसे पत्नी का सम्मान व प्रेम नहीं दिया।

राजनीति में सफलता के साथ उसके इर्द गिर्द कई लोग जमा होने लगे थे। एक पार्टी में उसकी मुलाकात निशा से हुई। निशा बहुत ही आकर्षक थी। दोनों एक दूसरे के नज़दीक आ गए। दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए। शेखर के लिए निशा केवल उसकी शारीरिक ज़रूरतें पूरी करने का ज़रिया मात्र थी। लेकिन निशा उसे सचमुच प्यार करती थी। पर समय के साथ साथ वह निशा से ऊब गया। अब वह उससे पीछा छुड़ाना चाहता था।

अचानक समय ने उसके पक्ष में पल्टा खाया। राज्य के मुख्यमंत्री कमलेश की अचानक मृत्यु हो गई। पार्टी ने उनकी जगह मुख्यमंत्री पद के लिए जो नाम चुने उनमें उसका नाम दूसरे नंबर पर था। पहला नाम अजय कुमार का था जिनके चुने जाने की अधिक संभावना थी।

लेकिन इसी बीच निशा ने उससे यह कह कर शादी के लिए ज़ोर डाला कि वह गर्भवती है। शेखर किसी भी कीमत पर उससे शादी नहीं करना चाहता था। निशा बार बार उसे अपने प्यार का वास्ता दे रही थी। पर शेखर मान नहीं रहा था।

शेखर ने निशा को धमकाया कि वह उससे ना उलझे। नहीं तो ठीक नहीं होगा।

निशा जानती थी कि वह कुछ भी कर सकता है। अतः उसने शेखर से कहा कि यदि शादी नहीं कर सकते तो उसे कुछ पैसे ही दे दे जिससे वह अपनी ज़िंदगी काट सके। 

शेखर ने निशा से कहा कि यदि वह अपनी इस हालत का ज़िम्मेदार अजय कुमार को ठहरा दे तो वह उसे बहुत सा पैसा व किसी मंत्रालय के प्रशासनिक विभाग में नौकरी दिला देगा। यदि वह नहीं मानेगी तो उसके हाथ कुछ नहीं आएगा।

मजबूर निशा ने अजय कुमार पर खुद के साथ जबरदस्ती करने का इल्ज़ाम लगा दिया। पार्टी ने अजय कुमार का नाम वापस लेकर शेखर को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी।

मुख्यमंत्री आवास के शयन कक्ष में लेटे हुए शेखर अपने इस सफर के बारे में सोच रहा था।

एक एक बार चेहरे उसकी आँखों के सामने आने लगे। पहले कविता का चेहरा सामने आया। उसे लगा जैसे वह पूछ रही हो कि मेरे प्यार को धोखा देते शर्म नहीं आई। उसके बाद जगदीश प्रसाद, निहारिका, निशा सभी उससे पूछ रहे थे कि क्या हम सब उस सीढ़ी के पायदान थे जिन पर पांव रख कर वह यहाँ तक आ गया।

सफलता का मद उतर गया था। एक अजीब सा सूनापन उसके दिल में घर करने लगा।

सफलता के लिए उसने अपनों को ही प्यादों की तरह इस्तेमाल किया।


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