पूनम का चाँद
पूनम का चाँद
आसमान में पूर्णिमा का चाँद अपनी पूर्ण आभा के साथ दैदीप्यमान था।नन्हे नन्हे अनगिनत तारों की रोशनी एक अकेले चाँद के सामने फीकी थी।चँद्रमा की शीतल किरणें खिड़की से होकर अथर्व के कमरे में आकर ,वहाँ की सुंदरता को बढ़ा रही थी। अथर्व पलंग में लेटे लेटे ही चाँद को निहार रहा था।चाँद कभी बादलों में छुप जाता कभी बाहर आ जाता।मानों तारों के साथ आँख मिचौली खेल रहा हो।अथर्व पलंग से उठकर खिड़की के पास आकर चाँद को बहुत ध्यान से देखने लगा।
दिन कितनी जल्दी बीत जाते हैं बचपन की यादें मन में ऐसे रची बसी हैं कि लगता है वो सब कल की ही बात हो।जब सभी लोग गर्मी के दिनों में आँगन में सोये सोये रोज घटते बढ़ते चाँद को देखा करते। तारों में तरह तरह की आकृति ढूँढते, कुछ तारें तो एकदम जाने पहचाने हो गए थे, जिनका वे लोग नामकरण भी कर लिए थे।कुछ तारें हमेशा चाँद के आसपास ही रहते, और कुछ पूर्व से पश्चिम की ओर चलते रहते थे।चमकीले तारें सभी बच्चों को बहुत अच्छे लगते थे।
नीम की ठंडी ठंडी हवा में दादाजी से कहानी सुनते सुनते जाने कब आँख लग जाती, पता ही नहीं चलता।सुबह धूप पूरे आँगन में बिखर जाती तब ले दे के उठते थे ।
सच बचपन सबसे प्यारा होता है, निश्चिंत मनमौजी जीवन।
आज यही सब सोचते सोचते उसकी आँखें भर आई।दादाजी के स्वर्गवास के बाद घर की आर्थिक स्थिति चरमरा गई थी,दादाजी ही खेती का काम सम्हालते थे, अथर्व के पापा कभी खेत का काम नहीं किये थे इसलिए वे खेती किसानी को सम्हाल नहीं पाए।खेत को दूसरे लोग अधिया रेगघा में बोते थे। अथर्व घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए नौकरी करने के लिए घर से बहुत दूर आ गया था।आज घर की बहुत याद आ रही थी इसीलिए उसे नींद नहीं आ रही थी। उसने मन में सोच लिया कि वह कुछ साल यहाँ रहकर पैसे कमाएगा फिर अपने गाँव जाकर खेती किसानी का काम करेगा। उसका मन कह रहा था कि अपने घर में ही वह खुश रह सकता है।यही सोचते सोचते उसकी
नींद लग गई सूर्य की किरणें चारों तरफ फैल गई थी।नई उम्मीदें
और आशाएँ उसका मनोबल बढ़ा रही थी, वह खुश था कि वह जल्दी ही अपने घर जाएगा।
