STORYMIRROR

Sangeeta Agarwal

Inspirational Others

3  

Sangeeta Agarwal

Inspirational Others

पुतला

पुतला

5 mins
403

रमेश…रमेश…की आवाज कई बार कानो में पड़ रही थी, कब से माॅं उठा रही थी पर जाड़ों में सुबह रजाई से निकलने का दिल ही नहीं करता, बस सुन के भी वो अनसुनी कर रहा था।


अब उसकी माॅं जसोदा बेन ने बिल्कुल पास आकर, उसकी रजाई खींच दी और बोली, भूल गया आज दुकान का उद्धाटन है, शाम के 4 बजे फीता कटना है, सारी तैयारियां तुझे ही तो देखनी थीं।


तीर की तरह से वो बिस्तर से उठ कर बाथरूम की तरफ भागा ये कहते हुए, अरे बाप रे, मैं तो बिल्कुल भूल ही गया था।


जसोदा हँसी और बुदबुदाई, ये भी बच्चा ही बना रहेगा, बड़े भाई से कुछ नहीं सीखा इसने, इससे अच्छा तो मनोज ही है जो इससे भले ही उम्र में छोटा हो पर काम मेहनत से करता है।


मनोज उनके देवर का लड़का था, जिसके पिता की मौत के बाद, जसोदा के पति शरद ने अपनी ही दुकान में उसे नौकरी पर रख लिया था।


थोड़ी देर में रमेश दुकान पर था, बाकी सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थी, साड़ियों की बड़ी सुंदर दुकान का उद्घाटन होना था आज "रूपा साड़ी कॉर्नर", भव्य सी मनोहारी सजावट, लाइटिंग की सुंदर व्यवस्था थी बस एक पुतला और लगाना रह गया था दुकान के बाहर।


रमेश ने हरिया (नौकर)से पूछा, अभी तक पुतला क्यों नहीं आया।


हरिया ने डरते हुए जवाब दिया, मालिक,वो तो कल ही मैंने बताया था कि वो अभी तैयार नहीं है।


रमेश, ओह,ये तो मेरे दिमाग से ही निकल गया,अब क्या करूँ,घरवाले आज मुझे नहीं छोड़ेंगे।

एक बार फिर से फ़ोन करके पूछता हूँ,इतने में ही मनोज आ गया, वो भी सब काम फटाफट करने लगा और उसने पूछा, रमेश भैया,यहाॅं पुतला कब तक लगेगा।


रमेश, अभी आ रहा है,तैयार होकर,तुम ऐसा करो, तब तक कुछ मिठाई, फल ले आओ जाकर और देखो पंडितजी से भी बात कर लेना।

रमेश चाहता था कि मनोज को बहाने से यहां से हटा दू,कहीं पुतला अभी तक तैयार नहीं है,ये बात किसी को पता न चल जाए।


नैना,एक बहुत खूबसूरत लड़की है और उसकी माँ बड़ी गरीबी में अपने तीन बच्चे पाल रही है,पति शराबी है,जो भी कमाती है,पति शराब में उड़ा देता है,नैना को अपने बापू पर गुस्सा और माॅं पर तरस और प्यार आता है पर अभी कुछ कर नहीं पाती,पढ़ाई जो कर रही थी।कितने ही दिनों से उसकी माँ रात भर खांसती रहती,दवाई कभी ला ही नहीं पाती पैसों की कमी की वजह से।

नैना समझ न पाती कि अपनी माॅ की सहायता कैसे करे,इन्ही विचारों में खोई वो चले जा रही थी कि उसने "रूपा साड़ी कॉर्नर"के आगे इश्तेहार देखा,"पुतला चाहिए"।


उत्सुकतावश वो दुकान में आई,वहां रमेश से मुलाकात हो गई,उसके पूछने पर रमेश ने कहा, कि तुम आज 12 घण्टे के लिए पुतला बन सकती हो? इसके लिए तुम्हें 2500 रुपये मिलेंगे।


रुपये की बात सुनकर,उसकी आंखें चमक गईं,मां की बीमारी की याद आते ही वो तैयार हो गई।


जानती हो न पुतला बनकर तुम्हें क्या करना है,हिल नहीं सकतीं,आॅंख भी नहीं झपकनी है।रमेश ने चेताया।


वो हर शर्त पर तैयार थी,उसे सिर्फ रुपये याद थे और याद था मां का रात भर खांसना।


थोड़ी देर में दुकान के कोने पर एक सुंदर पुतला खड़ा था,उसकी सुंदरता देखते ही बन रही थी,आने जाने वालों की निगाह बरबस उस पर रुक जाती और उसकी मोटी काली आॅंखों की खूबसूरती में खो जाते।


लोग कहते, क्या जानदार पुतला लगाया है,लगता है बस अभी बोल पड़ेगी।


थोड़ी देर में मनोज भी आ गया,खुश होते हुए बोला, अरे भैया,पुतला लग गया,कितना सुंदर है ये,वो एकटक उसे देखता रह गया।


रमेश ने कहा, चल,बाकी तैयारी कर जल्दी,सब आने वाले हैं।


कुछ ही देर में वहाॅं अच्छी खासी भीड़ हो गई,सबका ध्यान उस पुतले पर था,जसोदा बेन ने कुछ देर में कहा,इस पुतले को थोड़ा बीच में रखो जिससे लोगो को अच्छे से दिखे।


मनोज आगे बढ़ा,उसे ठीक करने के लिए। उधर नैना,क्षण भर को कांप गई,अब उसकी पोल खुल जाएगी।

मनोज उसके पास आ रहा था और नैना की धड़कने बेकाबू होने लगीं,कैसे बताएगी उसे वो।


मनोज ने हाथ बढ़ाया उसकी तरफ और उसने पलक झपका दिए,हल्के से फुसफुसाई,मैं जीती जागती लड़की हूँ।


मनोज गिरते गिरते बचा,पर सम्भल गया उसकी आँखों की करुणा देखकर,वो जैसे अनुनय कर रही थी प्लीज,मुझे बचा लो।


पीछे से मनोज की ताई जी चिल्लाईं,अरे कितनी देर लगाएगा।


मनोज ने कहा, आप निश्चिन्त रहें,काम हो जाएगा,जब लोग नहीं देख रहे होंगे,मैं इसे सही जगह रख दूंगा।

जसोदा और कामों में लग गईं।


मनोज बिल्कुल उस पुतले को कवर करता रहा और वो खुद ही सरक कर थोड़ी दूर खड़ी हो गई,मनोज को उस पर बहुत तरस आ रहा था,वो नहीं जानता था कि ये सब कैसे और क्या हो रहा है,उसने प्रश्नवाचक निगाहों से रमेश भाई को देखा जिसने उससे प्रार्थना की कि इस बात को राज बना रहने दे।


अब मनोज को रह रह के उस पुतले बनी लड़की पर रहम आता,वो उसकी खूबसूरती से भी प्रभावित था।गोरा रंग,बड़ी बड़ी कजरारी काली आॅंखें और बला की मासूमियत।सुंदर सुनहरी साड़ी में लिपटा उसका सौंदर्य खिल के बाहर आ रहा था।


वो यदाकदा उसके पास,बिल्कुल उसे कवर कर खड़ा हो जाता कि तुम कुछ देर पलकें झपक लो,स्ट्रिप से जूस भी पिला दिया।


नैना आश्चर्य में थी कि ये कौन देवदूत सा बन के उसका ख्याल रख रहा है,वो उसकी अच्छाई और रहम दिली से प्रभावित हुए बिना न रह सकी।


किसी तरह रात के बारह बजे, प्रोग्राम खत्म हुआ और नैना को मुक्ति मिली, 2500 रुपये हाथ में लेकर उसे बहुत खुशी हो रही थी और उसकी दिन भर की थकान छूमंतर हो चली थी।


मनोज अभी तक उसका इंतजार कर रहा था,उसने पूछा, ऐसी क्या मजबूरी थी कि तुम जीता जागता इंसान हो पुतला बनने पर मजबूर हो गईं।


नैना ने उसे कुछ भी बताने में हिचकिचाहट महसूस की,पर उसने सोचा कि इसने उसकी कितनी सहायता की,ये चाहता तो सबसे पहले ही इसे छू सकता था,कोई बदतमीजी करना तो दूर,इसने उसे पानी,जूस भी पिलवाया, पलकें झपकवाई।


फिर नैना ने उसे अपने पुतले बनने की मार्मिक कहानी बताई और दोनों की आंखों से आंसू बह निकले। लेकिन ये आंसू खुशी के भी थे,अब से दोनों दोस्त जो बन गए थे।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational