पुष्यमित्र शुंग
पुष्यमित्र शुंग
ब्राह्मण सम्राट पुष्यमित्र शुंग महानायक थे न कि खलनायक।
185 ईसा पूर्व मौर्य वंश के शासक ब्रहदत्त की प्रशासनिक और कमजोर व्यवस्था बुद्धिस्ट निवृत्ति मार्ग के प्रति अतिशय मोह के कारण तथा ग्रीक राजा डेमोट्रीयस के षड्यंत्र को ना रोकने की इच्छा के कारण सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा ब्रहदत्त की सरेआम हत्या की ना कि धोखे से मारा यह तथ्य डॉक्टर एच सी रायचौधरी ने शुंग डायनेस्टी पर स्पष्ट तौर पर विवरण लिखा है। राहुल सांस्कृत्यायन ने कल्पना की कि हो सकता है पुष्यमित्र शुंग ही राम के तुल्य माना जाता हो .
इससे एक विद्वान बामसेफ के अध्यक्ष वामन मेश्राम ने तुरंत अपनी अभिव्यक्ति में पुष्यमित्र शुंग को अयोध्या का राजा बता दिया। और उन्होंने इसे गलत तरीके से जनता के बीच में प्रस्तुत किया। 5 मार्च 2019 को यूट्यूब पर अपलोड वीडियो में यह तथ्य स्पष्ट होता है बिना अध्ययन के वामन मेश्राम जी गलत तथ्य प्रस्तुत कर रहे हैं।
पुष्यमित्र शुंग के विरुद्ध जो भी इतिहास में दर्शाया गया है उस पर पुनर्विचार करना बहुत जरूरी है वरना वर्तमान समय में नव बौद्ध एवं कथित दलित चिंतक भारतीय सामाजिक संरचना को विघटित करने में सर्वोपरि होंगे।
वर्तमान में आपको वामन मेश्राम के कुछ ऐसे वीडियो मिल जाएंगे जिसमें वे यह कहते सुने जाते हैं कि पुष्यमित्र शुंग एक क्रूर शासक था जिसने ब्राह्मण शासन की स्थापना के लिए नीची जाति के मौर्य वंश का समापन किया और पुष्यमित्र शुग ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से अयोध्या स्थानांतरित कर दी और उनकी तुलना मर्यादा पुरुषोत्तम राम से कर दी है। यह पूरी तरह से काल्पनिक और वोल्गा के से गंगा तक के लेखक राहुल सांकृत्यायन की एक परिकल्पना है जो उन्होंने अपनी कृति के प्रभा कथानक में कुछ इस तरह वर्णित किया है . (देखें प्रभा कथाक्रम 11 समय अवधि 50 ईसवी पेपरबैक संस्करण वोल्गा से गंगा तक पृष्ठ क्रमांक 161 पैराग्राफ दो)
“इसमें तो कोई शक नहीं कि अश्वघोष में बाल्मीकि के मधुर काव्य का रसास्वादन किया। कोई ताज्जुब नहीं कि यदि बाल्मीकि शुंग वंश के आश्रित कवि रहे हो, जैसे कालिदास चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के और शुंगवंश की राजधानी की महिमा बढ़ाने के लिए उन्होंने दशरथ की राजधानी वाराणसी से बदलकर साकेत या अयोध्या कर दी और राम के रूप में सम्राट पुष्यमित्र या अग्निमित्र की प्रशंसा की- वैसे ही जैसे कालिदास ने रघुवंश में रघु और कुमारसंभव के कुमार के नाम से पिता पुत्र चंद्रगुप्त विक्रमादित्य और कुमारगुप्त की।
एक जिम्मेदार लेखक जो गली गली भटका हो और जानकारियां एकत्र की है की कलम यह क्या लिख रही है समझ से परे है। वैसे तो यह एक कयास मात्र है लेकिन इस स्टेटमेंट से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि-" भारत के साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन ने ना तो भारतीय इतिहास के साथ ईमानदारी बरती और ना ही साहित्य के प्रति ईमानदार रहे हैं और उन्होंने एक ऐसा वक्तव्य जारी कर दिया जिस का दुरुपयोग वामन मेश्राम जैसे अध्ययन हीन अनाड़ी व्यक्ति ने करना प्रारंभ कर दिया इसकी पुष्टि आप यूट्यूब पर 5 मार्च 2019 को अपलोड किए गए वीडियो पर कर सकते हैं।
हर प्राचीन लिखा हुआ सत्य हो ऐसा कैसे हो सकता। बिना पुष्टि किए हुए जातियों का ध्रुवीकरण करने के उद्देश्य से वामन मेश्राम में एक त्रुटि पूर्ण वक्तव्य दिया है . ऐसा नहीं है कि यह वक्तव्य केवल एक बार दिया गया है उनके कई सारे ऐसे वीडियो हैं जिनमें उन्होंने यह भ्रामक जानकारी प्रसारित की है।ईसा के सौ पचासी वर्ष पूर्व यवन भारत पर आक्रमण करने के लिए आमादा थे जिसका प्रमुख कारण था मौर्य डायनेस्टी का कमजोर पड़ जाना।
बृहदत्त एक ऐसा अकर्मण्य शासक था जो सीमाओं की रक्षा करने में असफल रहा है। सेनापति पुष्यमित्र शुंग को तब एक जानकारी प्राप्त हुई थी कि-" बौद्ध मठों में यवन सैनिक भिक्खुओं के वेश में आकर निवास कर रहे हैं। और उनका उद्देश्य केवल और केवल भारत में ग्रीक शासन की स्थापना करना है। जब राजा से इस संदर्भ में पुष्यमित्र ने चर्चा की तब राजा का यह कथन था कि-" हम वक्त आने पर देखेंगे..!"
फिर भी पुष्यमित्र ने बौद्ध मठों की जांच परख शुरू कराई। उन्हें लगभग 300 यवन सैनिक हथियार सहित मठों में मौजूद मिले। बौद्ध साधु ने यह स्वीकारा कि जब उन्होंने उन्हें बुद्धिस्ट बन जाने का आश्वासन दिया था। इस बात से क्रुद्ध होकर पुष्यमित्र शुंग ने समूचे 300 यवन सैनिकों के सर कलम कर दिए और बुद्ध साधुओं को गिरफ्तार करके कह कर दिया।
इस बात पर भी राजा बृहदत्त जिसे व्रहद्रथ भी कहा जाता है ने पुष्यमित्र को क्रोध में आकर राज भवन से बाहर जाने के लिए कह दिया। पुष्यमित्र को यह अपमान राष्ट्र की रक्षा के लिए सहना पड़ा ।
एक दिन सेनापति पुष्यमित्र और राजा के बीच में राजभवन से बाहर कहीं मुलाकात हुई और इस मुलाकात में कहासुनी भी हुई। इतिहासकार कहते हैं कि राजा को सबके सामने पुष्यमित्र ने तलवार से चीर दिया। स्वयं को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करते हुए पुष्यमित्र ने सत्ता पर अपना अधिकार उद्घोषक किया। इतिहासकार कहते हैं कि- ग्रीक योद्धा डोमेट्रियन अपनी बड़ी सेना लेकर भारत पर आक्रमण करना चाहता था । पुष्यमित्र शुंग ने डोमेट्रियन और उसकी सेना को जो अब ज्यादा उत्साह से सिंधु नदी के तट तैयार थी पर हमला बोलकर वापस भगा दिया गया।
फिर पुष्यमित्र ने अपनी राजधानी वर्तमान मध्यप्रदेश के विदिशा में स्थापित कर दी जिसे एक तत्सम कालीन भेलसा नगरी के रूप में जाना जाता है।
पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया ये यज्ञ पाणिनी के शिष्य महर्षि पतंजलि ने संपादित कराए। और यज्ञ के दौरान एक युद्ध में पंजाब में राज्य करने वाले इंडो ग्रीक राजा मिलैण्डर या मिलान्दर का भी अंत हुआ।
भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए पुष्यमित्र ने तत्सम कालीन भ्रमित बौद्ध साधुओं को जेल में रखा। और उन मठों को नेस्तनाबूद किया जहां यवन सैनिकों का नियमित आना-जाना रहा है तथा राष्ट्रद्रोह की योजना को मूर्त स्वरूप दिए जाने की कोशिश होती रही है।
यह सत्य है कि अपने 36 वर्षीय शासनकाल में पुष्यमित्र के पास इतनी शक्ति थी कि वह भारत भूमि से बुद्धिस्ट का समापन कर देता परंतु सांची के स्तूप इस बात की गवाही देते हैं कि उन स्तूपों में सुरक्षा की दृष्टि से स्तूप के इर्द-गर्द चट्टानों की बाउंड्री बनाई गई और यह बाउंड्री शुंग वंश के काल में ही बनी है।
शुंग-वंश के कार्यकाल की सामाजिक व्यवस्था :- शुंग वंश के काल में कर्म वाद के सिद्धांत को बढ़ावा मिला। निवृत्ति और निर्वाण के सिद्धांत के स्थान पर सनातनी पुरुषार्थ की अवधारणा प्रबल हुई। मनु स्मृति का लिपिबद्ध करण इसी युग में करने की स्थिति का वर्णन ग्रंथों एवं लब्ध जानकारियों में मिलता है।
आप सब जानते हैं के पुष्यमित्र शुंग के पुत्र क्रमष: अग्निमित्र, एवं देवभूति के उपरांत शुंग वंश का अंत हुआ। शुंग वंश ने केवल उन्हीं राजाओं को अपने अधीन किया या उन्हें सत्ता से अलग कर दिया जो ऐसे बुद्धिस्ट राजा थे जिन्हें जनता और विकास की बातें ना तो समझ में आती थी और ना ही वे बुद्ध धर्म के अत्यधिक प्रभाव में आकर प्रशासनिक कल्याणकारी कार्यों को निष्पादित नहीं कर पा रहे थे।
पुष्यमित्र शुंग द्वारा वृहद्रथ या बृहदत्त की हत्या करना तथा पाटिलीपुत्र पर अपना राज्य स्थापित कर देना किसी तरह की जातिगत समीकरण का आधार नहीं है।
वह ब्राह्मण था लेकिन वह सेनापति होने के नाते क्षत्रिय था। वामन मेश्राम विषवमन करते हुए भोली भाली जनता को यह समझाते हैं कि-“पुष्यमित्र ब्राह्मण था और उसे मौर्य वंश पसंद नहीं था इसलिए उसने एक बौद्ध भिक्षु का सिर लाओ 100 स्वर्ण मुद्राएं पाओ जैसे आदेश जारी किए थे। अब वर्तमान परिस्थिति में आप ही निर्णय लेने की राष्ट्रद्रोह की सजा क्या होनी चाहिए..?” यहाँ हम फिर से बताना चाहेंगे कि ब्रहादृथ के कार्यकाल में यवनों की घुसपैठ को रोकने उसके सेनापति पुष्यमित्र नें कड़े क़दम उठाए थे. किन्तु चुगलखोर दरबारियों एवं शुंग के विरोधियों ने राजा को सेनापति-शुंग के विरुद्ध भड़काया . और राजा ने शुंग को देश निकाला दे दिया.
वामन मेश्राम जैसे वक्ताओं को विचार अभिव्यक्ति करने के पूर्व 370 ईस्वी से 515 तक के इतिहास का अध्ययन कर लेना चाहिए, ताकि वे समझ सकें कि-“हूणों का चर्चित राजाधिराज तोरमाण (जिसने वैष्णव सम्प्रदाय को अपनाया) के पुत्र क्रूर पुत्र राजा मिहिरकुल की जानकारी हासिल हो सके जिसने खुले तौर पर बौद्धों का अंत करने का संकल्प लिया था. इस तथ्य की पुष्टि कल्हण रचित “राज-तरंगिणी” से भी किया जा सकता है, जो एक प्रकार से काश्मीर के इतिहास ही है.
यद्यपि इतिहास को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत करने वालों की कलई अब हम जैसे इतिहास के अकिंचन पाठक भी करने लगें हैं. इस आलेख का आलेखन आम भारतीयों को “भारत को भारतीय नज़रिए से देखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है न कि रोमिला थापर, इरफान हबीव जैसे इतिहासकारों के ऐनक से ...!”