Girish Billore

Comedy

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पीठ पर लदे बेताल

पीठ पर लदे बेताल

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विक्रम की पीठ पे लदा बेताल टाइम पास करने की गरज़ से बोला :- विक्रम,साहब का आने और वापस जाने के बीच से एक बरसाती नदी की तरह सियासती नदी उन्मुक्त रूप से बहा करती है.

एक सरकारी दफ्तर में बड़ा ऐलान हुआ- सुनो कल दिल्ली वाले सा’ब आएंगे ? 

अच्छा कल ! काहे से आएंगे ..

फ्लाइट से । 

साहब है तो फ्लाइट से आएगा ही। दिल्ली से आ रहा है तो कोई 17 घंटे खर्च करके ट्रेन से आएगा क्या ? 

ऑफिस का गुप्ता बाबू बोला- चलो अच्छा हुआ यह कम से कम वर्किंग डे में आ रहा है। वो पुराना वाला था न ससुरा हर छुट्टी में आ धमकता था.. उसका ससुराल जो था ना ! 

इनमें एक बात तो है कि ये .. छुट्टी खराब नहीं करते थे ज़्यादा परेशान भी नहीं करते. अरे राम राम........मत पूछो गुप्ता बाबू.. वह तो कच्छा-बनियान भी नहीं लाता था . 

 इस "अरे राम राम........मत पूछो गुप्ता बाबू.." में जितना कुछ छिपा है उसे आसानी से कोई भी समझ सकता है. 

 पुराना साहब अक्सर बुरा होता है और उपेक्षा भाव से भरे "ससुरा" शब्द से कमोबेश हर डिपार्टमेंट में अलंकृत हुआ करता है. 

जितने भी साहब टाइप के पाठक इस आलेख को बांच रहे हैं बाक़ायदा अपनी स्थिति को खुद माप सकते है.यानी आज़ से उम्दा और कल से बदतर न कुछ था न होगा ऐसा हर सरकारी विभाग में देखा जा सकता है. 

कल ही की बात है एक विभाग का अधिकारी अपने आकस्मिक आन पड़े कार्यों के चलते दिल्ली मुख्यालय से रीजनल आफ़िस आए स्थानीय अधिकारी निर्देश के परिपालन में कोताही न हो इसके मद्देनज़र एक अनुभवी इंतज़ाम-अली को ज़िम्मेदारी कार्यालयीन परंपरानुसार सौंप दी. आला-अफ़सर विज़िट में ऐसी बात का खास खयाल रखा जाता है कि कोई ऐसा तत्व विज़िटार्थी अफ़सर के सामने न आ जाए जिसमें विज़िटार्थी को प्रभावित करने सामर्थ्य हो अथवा तत्व विघ्न-संतोषी हो. हां एक बात और चुगलखोर और आदतन शिकायतकर्ता अधिकारी को तो क़तई पास न फ़टकने दिया जाता है. यथा सम्भव ऐसे तत्वों को सूचना से मरहूम रखने के भरसक प्रयास एवम बंदोबस्त कर लिये जाते हैं. पर साक्षर प्यून एवम हमेशा दफ़्तर की हर खबर से खुद को बाखबर रखने वाला "निषेधित-तत्व" सब कुछ जान ही लेता है. 

 तो दिल्ली से साहब आए सरकारी काम-कारज़ की आड़ में ढेरों निजी काम निपटा गए . जैसे अकेली साली से मुलाक़ात , आदि आदि ...!

तो पाठको कैग की नज़र में तो सरकारी काम होता पर अन्ना-कसम ये अ-सरकारी काम था..!

जनता जनार्दन का राजकोष को दिया कर का एक हिस्सा ऐसे काम पर भी खर्च होता है..जो होता असरकारी पर दिखता सरकारी है । 

क्या ये सही है...?

क्या यह सही है विक्रम बोल ज़ल्दी बोल वरना....... 

विक्रम ने कहा :-बैताल, आला अफ़सर को नहीं दोष गुसाईं..इस बात की पुष्टि तुम स्वर्गीय श्री श्रीराम ठाकुर के सटायर "अफ़सर को नहिं दोष गुसाईं" से कर सकते हो.. विक्रम बोला और बेताल फ़ुर्र से पेड़ पर जा बैठा...! 


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