पुनर्जन्म

पुनर्जन्म

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जब आँख खुली तब मैं पसीने में लत-पत आैर चेहरे पर डर था....सपना इतना डरावना था कि मेरी चीख़ निकल गई ...देखा तो सुबह हो गई, बिस्तर से उठने की कोशिश की तो गिर गई. सारा शरीर दर्द से टूट रहा था लेकिन आज डॉक्टर से मिलने जाना था तो तैयार होकर बड़ी मुश्किल से हॉस्पिटल पहुँच गई .....इस बार भी सवाल आैर जवाब वही रहे, आैर निराशा ही हाथ लगी. अब तो मेरी हिम्मत भी टूटने लगी, जीवन को जीने की इच्छा कहीं दबती सी जा रही थी, जीवन  "मृग तृष्णा" सा होता जा रहा था....इतना सोचते -सोचते डॉ. के कमरे से निकली तो माँ -पापा पर नजर पड़ते ही, उनकी आँखों मे खोने का डर देखकर, दोबारा जीने की ललक पैदा हो जाती है और मैं निराशा के अंधेरे से पैर आशा के संसार की ओर चलने लगते है. अब तो चेहरा भी मेरे जीवन की कहानी कह रहा था. आज फिर कुछ महीने बाद जब मै हॉस्पिटल पहुँची तो काफी देर इंतजार करना पड़ा.....लेकिन डॉक्टर को देखते ही वही सवाल ...मिला क्या???लेकिन कुछ देर की चुप्पी को तोड़ती आवाज  .....मिल गया.....इतना सुनते ही मैं पुनर्जन्म की यात्रा पर निकल गई. एक तरफ मेरे अॉप्रेशन की तैयारी शुरू हो गई  और दूसरी तरफ हॉस्पिटल के कमरे मे बूढे़ माँ-बाप के हाथ कांपते हुए, आँखो मे आँसू और दिल में अपने बच्चे की यादों को समेटते हुए, हस्ताक्षर करने की कोशिश कर रहे है, उतने में ही वो बीमार लड़का अपने हाथ पर रखकर, एक बड़ी मुस्कान के साथ बोलता है......रोना मत. अॉपरेशन थियेटर की लाइट बन्द होते ही, मेरा पैर दरवाजे की तरफ बढे़......सभी के चेहरे खुशी से चमक रहे थे, तभी मेरी नजर पीछे खड़े दो अनजान लोगो पर गई.....वो मेरी तरफ ही बढ़ रहे थे.......करीब आकर माथे को चूमते हुए बोलते है तुम हमारे बेटे का 'पुनर्जन्म' हो क्योकि भले ही हमारा बेटा चला गया लेकिन दिल अब भी तुम्हारे अन्दर धड़क रहा है,जुग- जुग जियो बेटी......मैने भगवान और उस परिवार को 'पुनर्जन्म' के लिए  धन्यवाद किया और फिर जीवन जीने की दौड़ मे शामिल हो गई.


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