Gulshan Khan

Drama

5.0  

Gulshan Khan

Drama

लाल

लाल

3 mins
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जब घर मे बच्चे का जन्म होता है तो हर कोई खुशी से झुम उठता है......और अक्सर ऐसा देखते है कि घर मे सबसे छोटे को ज्यादा दुलार किया जाता है और प्यार से कोई नाम भी रख देते है और अक्सर लोग प्यार से उसी नाम से बुलाते है, मेरा भी एक ऐसा ही नाम है 'लाली' जो प्यार से नही बल्कि मेरी कमी को दर्शाता है और ये माँ ने नही बल्कि पड़ोसियो ने रखा था और हर कोई मुझे इसी नाम से बुलाता है और जानता है. कभी- कभी सोचती हूँ कि शायद ही किसी का नाम लाली होगा क्योकि असली नाम तो मै भूल ही गई हूँ...... जैसे -जैसे मै बड़ी होने लगी , मेरे घरवालो की चिन्ता भी बढ़ती चली गई .धीरे -धीरे मेरे उम्र की हर लड़की के हाथ पीले हो गये.........लोगो ने घरवालो से पुछना शुरू कर दिया कि ' लाली' को कब तक घर मे बिठाए रहोगे ......ये सब देख सुनकर आखिर मैने एक दिन मैने उनसे पूछा ......माँ तुमने मुझे क्या खाकर जन्म दिया था जो मै ऐसी हुई ....इससे बेहतर तो कोई और कमी होती तो भी चल जाता.....तभी माँ ने मुझे टोकते हुए बोली क्या कमी है तुझमे न लगड़ी,न कानी,न काली और चेहरे की बनावट भी बिल्कुल तेरे पापा पर गई है तु ,अच्छे नैन- नक्ष ........मै तभी बीच मे बोल पड़ी और ये लाल रंग किस पर गया माँ न तुम पर और न पापा ......बोलो माँ.....थोड़ी देर सोचते हुए बेटा ये पैदायशि है ,भगवान ने तुझे औरो से अलग बनाया है .....उनको धन्यवाद कर एक अच्छा शरीर और बुद्धि दी है.......माँ लेकिन समाज सिर्फ चेहरा देखता है......माँ मै तीस साल की हो गई हूँ ,लोगो ने अब तो मुझसे तो पूछना भी छोड़ दिया कि कोई रिश्ता आया या नही......मुझे दयाभाव की नज़रो से देखते है ........और मेने तुम्हारी और सुमन चाची की बात भी सुनी जो मेरे लिए राजेन्र्द जी का रिश्ता लाई थी ,पच्पन साल के है ,है न माँ........और उन्होने कहा एक कमी आपकी बेटी मे है तो थोड़ा समझौता करना पड़ेगा ,अब रिश्ते नही मिल रहे.......बेटा चुप कब से क्या बोले जा रही है इतना कुछ मन मे था और मुझे पता भी न चला.......उस दिन बहुत रोई. कुछ ओर समय बीत गया फिर एक रिश्ता आया, मैने माँ से साफ मना कर दिया कि माँ मत बुलाओ उन्हे फिर एक न सुनने का शोख नही.....लेकिन माँ ने कहा तैयार हो जा इस बार तय है सब ....उन्होने हाँ कर दी है...मै तपाक से बोल पड़ी एक बार देख लेगे तो मना कर देंगे माँ....तैैयार हो जा लाली वो कभी भी पहुँचते होगे. मैने मन ही मन खुद को समझा लिया था शादी विवाह मेरे नही है.....कुछ समझ न आ रहा था उन्होने मुझे देखकर भी हाँ कर दिया ....ये सुनकर जरा भी खुशी न हुई ,बड़ी असमन्जस मे थी मै ....तभी माँ आई और मुझे समझाने लगी कि इस दुनिया मे कोई व्यक्ति सम्पूर्ण नही इसलिए एक दुसरे की एक दो कमियो पर ध्यान नही देना चाहिए.....माँ इन लोगो ने हाँ क्यूँ कहा????उस समय जिस तरह माँ ने मुझे बताया कि लड़के का एक पैर खराब है और उन्हे उम्मीद थी कि मेरे लाल चेहरे की वजह से वह मेरा कभी अपमान नही करेगे.....मुझे माँ की बातो पर विश्वास हो गया. आज शादी को चार साल हो गए और मेरी माँ का भरोसा कायम है.


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