पत्र जो लिखा मगर भेजा नहीं
पत्र जो लिखा मगर भेजा नहीं
हिंदी साहित्य-संगोष्ठी आयोजन में शामिल होने का प्रथम बार अवसर मिला तो मेरा साहित्य-प्रेम वहां जाने से मुझे न रोक पाया।
विख्यात लेखिका "अमृता प्रीतम" जी की लेखनी ने ऐसे समय में स्पष्टवादिता और साहसिकता दिखाई, जब महिलाओं के लिए समाज में हर क्षेत्र में खुलापन वर्जित था, इस गोष्ठी ने गहरी छाप छोड़ी और " मैंने लिख डाला पत्र उसी महान लेखिका को मगर भेजा नहीं" आज उसी का परिणाम है कि नौकरी छूटने पर भी साहस के साथ साहित्य-लेखन की कोशिश कर रही हूं।
ननिहाल का जिक्र करते ही प्रेरक पुस्तकालय आज भी आँखों के सामने घूम जाता है, मानो नानाजी पुकार रहे हो, बेटी पुस्तकें सदैव ज्ञानरूपी-संगिनी हैं।