पत्र जो भेज ना सका
पत्र जो भेज ना सका
ज़िन्दगी की शुरुआत वहाँ से हुई जहाँ से तुम मिली, रोज मिलना, बातें करना बड़ा अच्छा लगने लगा, फिर लगा दिल मे कुछ गुफ्तगू चल रही है,
अपने अहसासों को अल्फाजों से सजा रोज पत्र लिखता।
तुम्हें, मन के हर जज्बात उतार दिए पन्नों पर, पड़े हैं आज मेरी दराज में कभी भेज जो न सका तुम्हें।