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Jai Prakash Pandey

Drama

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Jai Prakash Pandey

Drama

पति का बटुआ

पति का बटुआ

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देश और दुनिया की खबरें जानने के लिए लोग टेलीविजन की ओर टकटकी लगाए बैठे रहते हैं। नये जमाने में मोबाइल, लैपटॉप, स्मार्टफोन और टेबलेट का इस्तेमाल भले बढ़ गया है पर टेलीविजन देखने का अलग मजा है। आज के समय में टीवी से बाजार गुलजार है कि टीवी और बीबी बाजार के मालगुजार हैं कुछ समझ नहीं आता, पर ये जरूर है कि घरों के बेडरूम के टीवी महिलाओं को नयी नयी तरह की चीजें खरीदने को उकसाने का काम करते हैं जिससे बाजार में हलचल मचती है। टीवी के विज्ञापनों की सबसे बड़ी ताकत उनकी अनुनयकारी शक्ति या अपील होती है, विज्ञापन कभी तार्किक तो कभी कभी भावनात्मक अपील के जरिए महिलाओं को प्रभावित करते हैं और खास महिलाओं के दिलों को ज्यादा घायल करते हैं,

महिलाओं के नये सपने बनाते हैं, उनकी आकांक्षाओं के प्रेरक बनते हैं, उनकी जरूरतों के अहसास से ये खेलते भी हैं। ऐसे में बीवियां उत्पात मचाकर बाजार का रुख करतीं हैं और पति का बटुआ खाली कर दूसरे दिन की नयी फरमाइश का जुगाड़ सेट करतीं हैं।

रंगदारी के साथ पति के पेंट की जेब में हाथ डालकर बटुआ को निकाल कर मुस्कारातीं हैं, और महिला के अलावा असली पत्नी होने की डींग मारतीं हैं। फिर टीवी देख देख कर आंख मारने की कला से पति को चारों खाने चित्त कर देतीं हैं और पति की नींद आते ही जेब के बटुए पर धावा बोल देतीं हैं। दूसरे दिन की खरीदी के ज्वार का इन्तजाम हो जाता है,

ये फिलासफी ढ़ाढी वाले भैया पहले से जानते थे इसलिए उनने ये पचड़ा नहीं पाला वे बंगले में बेचारी को कभी लाये ही नहीं, एक बार बेचारी ने जेब में हाथ डाला था तो भैया ने देख लिया था तो घरवाली से विरक्ति हो गई थी। अब टीवी में आते हैं तो खूब हाथ मटका मटकाकर झटके मारते हैं और नारीशक्तिकरण के पक्ष में अंट-संट प्रवचन देते रहते हैं। महिला दिवस पर महिलाओं को बधाई देते हैं। 

जब से टेलीविज़न आया और टेलीविजन पर बाजार दिखने लगा तभी से पतियों के बटुओं पर ग्रहण लग गया। सवाल ये भी है कि जरुरत न भी होने पर हम और आप में टेलीविजन देखने की लत क्यों होती है, अरे भाई सीधा सा जबाब है कि बाजार के वैज्ञानिक,

हम और आप के भीतर लत पैदा करने का अभियान चलाते हैं फिर उत्पाद को मांग के आधार पर अधिक कीमतों में बेचा करते हैं और ऐसे में महंगाई की मार खाया हुआ घर का पति फिलासफर बनकर सोचता है कि महिलाओं से बाजार है कि बाजार महिलाओं को खींचता है। उसका सोचना स्वाभाविक है क्योंकि बाजार की हर चाल बाजार का जाल बुनने के लिए है, हर चीज पहले मनोरंजन बनकर दिल दिमाग पर चढ़ती है फिर लत बनकर शिकार करती रहती है। ऐसे में पति में बटुआ रखने की प्रवृत्ति खत्म हो रही है क्योंकि अब मोबाइल पति के बटुए का बाप बनकर जेब से पत्नी को चिढ़ा रहा है।


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