परसाई के गांव की यात्रा
परसाई के गांव की यात्रा
देश की पहली विशेषीकृत माईक्रो फाईनेंस शाखा भोपाल में पदस्थापना के दौरान हमने संकल्प लिया था कि व्यंग्य पितामह हरिशंकर परसाई जिस धरती पर उतरे थे उस जगह को जरूर देखेंगे। एक बार इटारसी क्षेत्र दौरे में जाना हुआ। जमानी गांव से गुजरते हुए परसाई जी याद आ गए। हरिशंकर परसाई इसी गांव में पैदा हुए थे। हमने गाड़ी रोकी और घुस गए जमानी गांव में...
जमानी गांव में फैले अजीबोगरीब सूनेपन और अल्हड़ सी पगडंडी में हमने किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश की जो परसाई जी का पैतृक घर दिखा सके और परसाई जी के बचपन के वे गर्दिश के दिनों के बारे में बता सके। रास्ते में एक-दो लोगों को पकड़ा, पर उन्होंने हाथ खड़े कर दिए। हारकर हाईस्कूल की तरफ गए।
पहले तो हाईस्कूल वाले गाड़ी देखकर डर गए क्यूंकि कई माससाब स्कूल से गायब थे। जैसे तैसे एक माससाब ने हिम्मत दिखाई, बोले - परसाई जी यहाँ पैदा जरूर हुए थे पर गर्दिश के दिनों में वे यहां रह नहीं पाए। हालांकी नयी पीढ़ी कुछ बता नहीं पाती क्यूंकि पढ़ने की आदत नहीं है। फेसबुकिया माहौल में चेट करते एक लड़के से जब हरिशंकर परसाई जी के पुराने मकान के बारे में पूछा, तो उसने पूछा, “कौन परसाई?”
फिर भी बेचारे स्कूल के उन माससाब ने मदद की। पैदल गांव की तरफ जाते हुए माससाब ने बताया कि, उनका पुराना घर तो पूरी तरह से गिर चुका है। घर के खपरे और ईंटें लोग पहले ही चुरा ले गए। अब टूटे घर के ठीहे में लोग लघुशंका करते रहते है...
हमने माससाब से कहा चलो फिर भी वो जगह देख लेते है और हम चल पड़े उस ओर... कच्ची पगडंडी के बाजू में माससाब ने ईशारा किया... नींव के कुछ पत्थर शेष दिखे, दुर्गंध कचरा के सिवा कुछ न था!!चालीस बाई साठ के एरिया में हमने अंदाज लगाया कि शायद इस जगह पर परसाई सशरीर धरती पर उतरे रहे होंगे। धरती छूकर पता नहीं आम बच्चों की तरह ‘कहाँ कहाँ कहाँ’ की आवाज से अपनी उपस्थिति बतायी या चुपचाप गोबर लिपी धरती पर उतर गए गए होंगे।
आह और वाह के अनमनेपन के बीच उस प्लाट की एक परिक्रमा पूरी हुई। जब तक उस पार खड़े सज्जन की लघुशंका करने की व्यग्रता को देखते हुए हम माससाब के साथ स्कूल तरफ मुड़ गए...