डरपोक आदत
डरपोक आदत
बहुत दिनों से सोच रहा हूं कि घबराहट की बुरी और डरपोक आदत छोड़नी है। अज्ञात भय से उठने वाली घबराहट बहुत बुरी होती है। हर काम हर सोच पर बुरा असर डालती है इसलिए इसे छोड़ना अच्छा। छोटी छोटी बातों में भय पैदा होने से घबराहट होने लगती है जैसे रेलगाड़ी से कहीं जाना है तो मन में कभी रेलगाड़ी छूट जाने की धुकधुकी उठती है कभी कुली न मिलने की तो कभी टिकट गुमने की.. इस तरह की चिंताओं से सब अस्त व्यस्त हो जाता है।
मैं जानता हूं कि जीवन के हर क्षेत्र में घबराहट हानिकारक और घातक है और घबराना भी एक प्रकार की मानसिक कमजोरी है इसलिए घबराहट की आदत छोड़ना चाहता हूं। भय का गुप्त घातक प्रभाव शरीर पर पड़ता है जिससे हानिकारक परिवर्तन होने लगते हैं खतरनाक कुकल्पनाएं उठती हैं और घबराहट बढ़ाती हैं।
कई बार तंग आकर सोचता हूं कि ये घबराहट की बुरी और डरपोंक आदत कहां से पड़ी, क्या बचपन में किसी ने ज्यादा मात्रा में भय दिखाया, किस किस ने तंग किया, डराया, धमकाया परेशान किया।
कई बार सोचा कि किसी मनोविश्लेषक को बताएं पर फिर भय और घबराहट घेर लेती है इसलिए धीरे धीरे खुद ही मन का विश्लेषण कर घबराहट का वास्तविक कारण ढूंढने का प्रयास करूं।
बार बार पुरानी स्मृतियों का स्मरण कर अपनी घबराहट का कारण मालूम कर विवेक बुद्धि से उसे दूर करने का प्रयास चालू करूं।
