Jisha Rajesh

Inspirational

1.9  

Jisha Rajesh

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पथप्रदर्शक

पथप्रदर्शक

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"प्रिय छात्रों, आज के हमारे विशिष्ट अथिति से हम भली - भाँति परिचित हैं क्योंकि आए दिन समाचार पत्रों एवं टी वी पर उनकी उपलब्धियों की खबरें हम पढ़ते व देखते हैं।"

- शर्मा सर के शब्दों का स्वागत ज़ोरदार तालियों से हुआ।

ज्ञानज्योति विद्यालय का हाॅल काॅमर्स के छात्रों से भरा हुआ था। बारहवीं कक्षा की परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण छात्रों को पुरस्कार देने के लिए विश्वविख्यात उद्योगपति श्री प्रकाश मेहरा आए हुए थे। रोहित सबसे पीछे की सीट पर बैठा हुआ था। उसका ध्यान बगल के हाॅल में चल रही चित्र रचना प्रतियोगिता की ओर था।

"बच्चों, आपको यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता होगी कि मेहरा जी इस समारोह के उपरान्त आप में से किसी एक छात्र के साथ वार्तालाप कर भविष्य की ओर उसका पथ - प्रदर्शन भी करने के इच्छुक हैं। उस भाग्यशाली छात्र का चयन वे स्वयं करेंगे।"

- शर्मा सर की आँखें गर्व से भरी हुई थी किन्तु रोहित की आँखें तो चित्रों से हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। समारोह कब समाप्त हो गया उसे पता भी न चला। अपने मित्रों को उठकर जाते देख वह भी उनके साथ हो गया।

"मेहरा जी"

- शर्मा सर बड़ी विनम्रता से बोले,

"आप किस छात्र के साथ वार्तालाप करना चाहेंगे ?"

"वह लड़का जो पीछे की सीट पर बैठकर दूसरे हाॅल की ओर देख रहा था।"

"कौन ? रोहित...! बड़ा ही नालायक लड़का है। उसकी आँखें तो हमेशा कक्षा से बाहर ही ताकती रहती हैं।"

"आपने केवल वो देखा जिसे उसकी आँखें देख रहीं थी पर मैंने तो वो देखा जो उसका मन देख रहा था। उसे ही इस समय पथ - प्रदर्शन की आवश्यकता सबसे अधिक है। कृपया उसे बुला दीजिए।"

"तुम्हे काॅमर्स पसन्द नहीं है न।"

- रोहित को देखते ही मेहरा ने मुस्कुराते हुए कहा।

रोहित सिर झुकाकर चुपचाप खड़ा रहा।

"पेंटर बनना चाहते हो?"

- सुनकर रोहित आश्चर्यचकित हो गया।

"फ़िर काॅमर्स क्यों पढ़ रहे हो ?"

"पापा चाहते हैं कि मैं भी उनकी तरह एक सीए बन कर सफलता के शिखर को प्राप्त करूँ।"

"क्या सीए ही जीवन में सफल हो सकते हैं, पेंटर नहीं ?"

"वे कहते हैं कि कितने कम पेंटर हैं जो ख्याति प्राप्त कर सके हैं। जबकि हर एक सीए की अच्छी - खासी आमदनी है।"

यह सुनकर मेहरा खिलखिलाकर हँस पड़े और बोले,

"मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ। कुछ वर्ष पूर्व एक लड़का अपने पिता की इच्छानुसार इन्जीनियरिंग काॅलेज में भर्ती तो हो गया किन्तु उसका ध्यान सदैव वाणिज्य जगत पर केन्द्रित रहता था। वह दिन रात उद्योगपति बनने के सपने देखता रहता था। उसके परिजनों ने उसे समझाया कि व्यापार में तो लाखों का नुकसान भी हो सकता है किन्तु इन्जीनियरिंग में ऐसा कोई खतरा नहीं है। अर्थात शत - प्रतिशत सफलता की गारन्टी है। पर वह कभी भी एक सफल इन्जीनियर न बन सका। सफलता तो तब मिलती है जब मन और बुद्धि को एकाग्र कर अथक परिश्रम किया जाए। पर उसका मन तो कुछ और ही चाहता था।"

मेहरा रोहित के कन्धे पर हाथ रखकर बोले,

"पर क्या तुम जानते हो कि असफलता के भी बहुत सारे फ़ायदे हैं ? असफलतायें हमारा अपनी आत्मा के साथ साक्षात्कार करवाती हैं। हमारी अन्तरात्मा की वो आवाज़ हमें सुनाती है जिसे हम सफलता प्राप्त करने की अन्धाधुन्ध दौड़ में नज़रअन्दाज़ कर देते हैं। वही आवाज़ हमारा मार्गदर्शन कर सकती है, हमारी त्रुटियों से हमें अवगत कराती है एवं हमें प्रगति - पथ की ओर अग्रसर करती है। असफलता ही हमें वो दिव्य बल प्रदान करती है जो बार - बार गिरने के बावजूद भी पूरे उत्साह के साथ एक बार फ़िर प्रयत्न करने का साहस देता है। सफलता की प्रेरक एवं पथ - प्रदर्शक शक्ति असफलता ही है।"

"लेकिन ये बात आप कैसे कह सकते हैं ? आपने तो कभी असफलता का रस चखा ही न होगा।"

- रोहित ने हैरान होकर पूछा।

"इस सफ़ल उद्योगपति का पथ - प्रदर्शक वो असफ़ल इन्जीनियर ही था।"

"क्या...!"

"हाँ रोहित, ये मेरे जीवन की ही कथा थी ...।।"


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