Meeta Joshi

Inspirational

4.6  

Meeta Joshi

Inspirational

परवाह

परवाह

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"लाओ चाबी निकालो प्रिया। "

"वही तो ढूंँढ रही हूँ। "

"जल्दी दो यार गर्मी बहुत है। छोटा सा पर्स है न जाने कहाँ डाल देती हो। जल्दी करो प्रिया। "

"पहले तो ये प्रिया-प्रिया कहना बंद करिए। लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे। ऐसे आवाज़ मारते हैं जैसे अभी ब्याह कर लाये हैं। "

"तो क्या कहूँ "मेरी बुढ़िया"!एक चाबी नहीं निकल पा रही सच में बूढ़ी हो गई हो। हा.. हा.. हा। "

"कुछ तो शर्म करो जी। प्रियंवदा आवाज़ लगाओ। लो चाबी। "

"खटक खटक ...अरे प्रिया...प्रियंवदा जी,यार चाबी तो आगे घूम ही नहीं रही । हाथ में दर्द हो गया। "

प्रियंवदा इंटर लॉक खोलने को आगे बढ़ी और धीरे से बोली "बुड्ढे तो आप हो गए हैं। एक बार में सुनते नहीं हैं। हैं.. हैं करते है। और बुढ़ापे का ताना मुझे देते हैं, लाइए मैं खोलती हूँ। "

"खट्क- खट्क -खट्क ...सुनिए जी,यहाँ सिर्फ बुद्धि लगानी थी। दो बार सीधा घूम तीन बार दूसरी दिशा में घूमेगा फिर खुलेगा। मान गए ना किसकी उम्र हुई है। "

दोनों हँसते हुए कमरे में पहुँचे। गर्मी से हाल-बेहाल था। पंखा चला,थोड़ी देर बैठ प्रिया जी ने खाना बनाया और पतिदेव ने एक छोटी सी नींद ली। खाना खा दोनों फिर सो गए शाम की चाय पर नींद खुली।

"बहुत थकान होने लगी है। अभी थोड़े समय पहले तक बिट्टू साथ था,तब तक सारे दिन ऑफिस में रहने के बाद शाम को भी तुम्हें सब्जियांँ भी ला देता था। इन दिनों कमजोरी कुछ ज्यादा ही महसूस हो रही है और थकान भी। "

"लीजिए चाय पीजिए फिर आपका पानी भरने का और पौधों में पानी डालने का समय हो जाएगा। वक्त बीतते पता नहीं चलता,जिस समय को याद कर रहे हो ना,वो आपके रिटायरमेंट के पहले का है उसको बीते दो साल हो चुके हैं। "

"सच में व्यस्त दिनचर्या में समय कैसे भाग गया पता ही नहीं चला। देखते ही देखते तीनों बच्चे बड़े हो गए अपनी-अपनी गृहस्थी सँभाल रहे हैं। सोचता था जब रिटायर हो जाऊंँगा, शान से डाइनिंग टेबल की फ्रंट सीट पर बैठूँगा बच्चे, पोता-पोती सब साथ बैठ खाना खाएँगे। कौन जानता था बच्चों का भविष्य सुदृढ़ बनाने की ललक एक दिन बच्चों से ही दूर कर देगी....

अरे वो विनय को बुखार था दुबारा फोन किया तुमने । "

"जी किया था। उससे बात नहीं हो पाई, बहू ने कहा पहले से आराम है। देखना शाम तक उसी का फ़ोन आ जाएगा सुबह नहाने गया था तब मैंने कह दिया था आपकी तबियत का! उसे भी तो चिंता हो रही होगी पूछेगा जरूर। "

"हांँ प्रिया। बच्चे अपनी जगह सेटल हैं सोचकर ही अच्छा सा लगता है। बड़े को तो शायद हमारे लिए फुर्सत ही नहीं। कोई नहीं। बस रिपोर्ट सही आ जाए तो मन खुश जो जाए। "

रात तक अशोक जी प्रिया जी से न जाने कितनी बार पूछ चुके थे,"सुनो बिट्टू ,विनय किसी का किसी फ़ोन आया?"

"आ जाएगा जी, ऑफिस से लेट आते है फिर घर गृहस्थी। "

पर अशोक जी का मन तो फ़ोन की घंटी पर अटका था।

बातों ही बातों में न जाने कब नींद आ गई।

"उठो प्रिया सात बजे गए हैं ग्यारह बजे रिपोर्ट लेकर डॉ को दिखानी है। जल्दी करना कुछ हल्का खा-पीकर चलेंगे। "

" प्रिया जी जल्दी उठ लग गईं नाश्ते और पूजा के काम में।

देखा तो दस बज गए हैं। सोच रही थीं एक वक्त था इतनी देर में न जाने कितने काम सलटा देतीं थीं बच्चों की तैयारी पति देव का ऑफिस। सच में उम्र होने लगी है। "

"क्या बात है जी,तबियत ठीक है ना कुछ परेशान लग रहे हो। अच्छा खाओ-पीओ,वॉक पर बाहर निकलो अपने आप को व्यस्त रखो। अब कौनसा आम बचाकर गौरव के लिए रखना है। उसके आम के शौक ने आपको कभी भी आम के मजे नहीं लेने दिए। अब खुदके लिए जीयो जी। ..बिजली के बिल की लास्ट डेट है आप ताला लगाओ में ई-मित्र वाले को बिल पकड़ा आऊंँ । "

"हांँ जल्दी करना। "

रास्ते में बिट्टू को फ़ोन कर प्रिया जी ने एक झिड़की दे ही दी," शर्म नहीं आई,पापा की तबियत ठीक नहीं कहा था। एक बार उन्हें पूछना भी जरूरी नहीं समझा। "

"ओह सॉरी मम्मा दिमाग से निकल गया। "

"बड़े से तो हमें कोई उम्मीद नहीं। गौरव को भी कह देना शाम को पापा से बात कर ले। "बात खत्म कर प्रिया जी वापिस घर की ओर मुड़ लीं। ऑटो रोक पतिदेव उनका इंतजार कर रहे थे।

"आह...ऊह, हे भगवान!न जाने क्या -क्या कह,बुरी तरह हाँफ रही थीं। "

"प्रिया अब मान भी लो तुम बूढ़ी हो गई हो । क्या हुआ बिल जमा नहीं किया !"

"दुकान बंद थी जी। वहाँ जा देखा लास्ट डेट भी कल है। और कह मुस्कुरा दी। "वो जिस मकसद से निकलीं थीं वो पूरा हो चुका था।

पतिदेव कहाँ कम थे। पत्नी की मासूम शक्ल की तरफ देख मन ही मन सोचने लगे'बत्तीस साल का साथ है। तुम क्या सोचती हो तुम्हें जानता नहीं। मेरे चेहरे की तकलीफ पढ़ बच्चों को डाँट लगाकर आई होंगी। पर वो आज के बच्चे हैं प्रिया अपने ही जीवन में व्यस्त। '

टेस्ट रिपोर्ट सही नहीं थी। डॉ ने और टेस्ट लिखे हैं अब चार बजे रिपोर्ट देखेंगे। घर वापिस जाकर नहीं आया जा सकता इसलिए हॉस्पिटल-कैंटीन में ही जवानी के दिनों को याद कर समय बिताया गया।

"डायबिटीज के कारण साइलेंट अटैक आया है। इलाज लंबा चलेगा। फेफड़ों की नियमित एक्सरसाइज होनी चाहिए। खाने पीने में नियंत्रण रखें। खूब वॉक करें और जितनी जल्दी हो सके एंजियोग्राफी करवा लें जिससे स्थिति का पता चल सके। "

आज खुद को बड़ा हारा हुआ महसूस कर रहे थे। घर पहुँचे तो छः बज चुके थे। पौधों में पानीं डाल वहीं चाय पीने बैठ गए।

"क्यों निराश होते हो जी,सब ठीक हो जाएगा । जीवन में परेशानियांँ तो आती ही हैं। ध्यान है जब बड़े के टायफायड बिगड़ा था और स्थिति नियंत्रण से बाहर थी कैसे आप रात रात भर जग उसके पीछे लगे रहते। वो तीन महीने कैसे और कब बीते पता ही नहीं चला। याद है ना!आप बहुत हिम्मती हैं सब ठीक हो जाएगा। "

"सच कहा प्रिया,सब याद है मुझे,कितना तड़पता था। पापा-पापा कह सारे दिन अपने पास बिठाए रखता। सोता तो तो हाथ पकड़ लेता। कितना बदल जाते हैं बच्चे। जिनके लिए कभी सब कुछ हम थे आज उनकी ज़िंदगी में हमारी एहमियत एक सीमा में है। वो ठीक हो गया क्योंकि उसके साथ तो मैं था उसका पिता पर मेरे साथ...। "

इतने में गौरव की कॉल देख मन खुश हुआ। फोन उठाते ही अपनी बीमारी का ब्यौरा बेटे को दे डाला जैसे कोई छोटा बच्चा किसी अपने को देख सब कह डालता है।

"कोई ना पापा,आप हिम्मत रखो। समय पर दवाई लो । फल डाइट-प्लान में रखो,सब ठीक हो जाएगा। जिस दिन एंजियोग्राफी की डेट लोगे बता देना मैं आ जाऊँगा। परेशान मत होना। टेक-केयर पापा। "

प्रिया जी चाय ले आईं,"क्या कह रहा था । कह दिया आपने चिंता मत करना। हम संभाल लेंगे । कहीं हड़बड़ी में आ न जाए। साथ चलने को कह रहा होगा जिद्द करे तो बिल्कुल मना कर देना। यहांँ सब जानकर हैं। हारी-बीमारी एक आवाज़ में दस जने खड़े हो जाते हैं। वहाँ तो मैं अकेली हो जाऊँगी। उसे पूरी बात नहीं बताते तो सही था, अब नाहक ही साथ चलने की जिद्द करेगा..। "जब अशोक जी ने कोई जवाब नही दिया तो प्रश्न भरी निगाह उनकी तरफ डाली।

"ये बच्चे है,माँ-बाप नहीं। अपनी ज़िंदगी में बहुत व्यस्त हैं अपना परिवार अपने बच्चे उन्हीं तक सीमित हैं। प्रिया आज हमारा दर्द उनके लिए इतना महत्त्व नहीं रखता। जिस दिन हमारी उम्र में आएंँगे हमारी तकलीफ तब समझ पाएँगे। "

"उसने ऐसा क्या कहा जी?क्या आपकी चिंता नहीं कर रहा था!"

"कर रहा था बहुत फिक्र कर रहा था। कह रहा था,"डाइट सही लेना,फल समय पर खा लेना। घूमने जाना। "एक बार भी ये नहीं सोचा ये सब लाकर कौन देगा। "

"मैं हूँ ना आप क्यों सोचते हैं किसी भी बात के लिए। अभी इतनी बूढ़ी भी नहीं हुई हूँ । "

"जानता हूँ पर सोच कर अफसोस होता है इतना प्यार से पले बच्चों की सोच इतनी अलग क्यों हो जाती है। कल तक जिनके लिए सब कुछ हम थे आज उनकी ज़िंदगी में हमारा वजूद हमें तलाशना पड़ रहा है। छोड़ो बच्चों और उनकी बातों को। एक समय था तुम शिकायत किया करती थीं,"साथ नहीं बैठते। फल काटकर रख देती हूँ,काम के पीछे सब छोड़ चले जाते हो। "सोचता था बुढ़ापे में और करना ही क्या है तब चैन से तुम्हारे साथ बैठ कर खाऊंँगा क्या पता था। जब समय आएगा तब शरीर साथ नहीं देगा। "

"इतना मत सोचिए जी सब ठीक होगा। "

समय बीत गया,बेटा आया भी और कुछ दिन रह चला भी गया। एक साथ फ्रिज में ढेर सामान भरकर रख गया है जैसे इनसे समय गुजर जाएगा और ये सब रख अपनी जिम्मेदारी पूरी करके जा रहा है।

जब पहुँच माँ को फ़ोन किया तो बोली,"धन्यवाद,अपने कीमती समय में से समय निकाल तुम यहाँ लेकिन एक बात ध्यान रखना यदि तुम तीनों-भाई थोड़ा सा भी दिल रखते और दूर बैठे अपने माता-पिता की खैरियत पूछते रहते तो आज ये दिन देखना ही नहीं पड़ता। उन्हें बीमारी से ज्यादा तुम्हारे व्यवहार से आघात लगा है। ये वही पिता हैं जो आज भी तुम्हारी तकलीफ में तुम्हारे साथ खड़े होते हैं। तुम्हारी बीमारी का सुन इनकी रात को नींद उड़ जाती है। एक दिन में न जाने कितनी बार तुम्हारी खैरियत पूछते हैं और बदले में क्या चाहते हैं!..बस तुम्हारे दिल में अपनी थोड़ी सी परवाह। तुम लोग उन्हें वो भी न दे पाए । जाने-अनजाने जैसा व्यवहार तुम लोग कर रहे हो ना,वो ही आदर्श अपने बच्चों के सामने छोड़ रहे हो। "

माँ के मुँह से आज पहली बार शिकायत के शब्द सुन बेटा विचलित हो उठा। अगले दिन पापा से साथ चलने की जिद्द करने लगा।

"काश ये तुमने अपने मन से कहा होता। तुम कब बड़े होओगे बेटा,आज भी माँ सिखाए और फिर तुम कहो। चिंता मत करो हम यहीं ठीक हैं अपने घर में। तुम्हारी ज़िन्दगी में हमारी एहमियत दर्शाते रहने के बहुत से बहाने तुम्हारे पास हैं बस उनसे जुड़े रहो और हांँ जब तक हम दोनों साथ है हममें से एक भी कमजोर नहीं पड़ सकता । "

प्रिया जी पति की बातें सुन मुस्कुरा दी उनके हाथ में हाथ रख बोलीं,"मतलब आप मान गए हैं मैं बूढ़ी नहीं हुई हूँ। "

"अरे थोड़ी तो शर्म करो प्रियंवदा जी लोग क्या कहेंगे बूढ़े हो गए हैं और छिछोरापन देखो....!"कह दोनों हँसने लगे।

पति-पत्नी का रिश्ता सब रिश्तों मैं अलग,निस्वार्थ प्रेम से भरा हुआ। एक की मौजूदगी ही दूसरे की ताकत है । बच्चों को भी अपनी जिम्मेदारी का एहसास कर समय पर उनके खालीपन को अपने साथ से भरने का प्रयास करना चाहिए। दूर रहकर ही सही अपनी ज़िंदगी में उनकी मौजूदगी दर्शाते रहें। बस और उन्हें कुछ नहीं चाहिए थोड़ी सी फिक्र और प्यार का मलहम।


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