परवाह
परवाह


"मम्मा.. मैं अच्छी हूँ, आप मेरी बिल्कुल चिंता मत करिएगा" वो बोली।
"ओ..मम्मा.. प्रॉब्लम ही ऐसी हैं न कि न मैं वहाँ आ सकती हूं और न ही आप यहाँ, सब बंद है, बस ,ट्रेन, टैक्सी कुछ भी नही चल रहा, पर मम्मा आप फ़िक्र मत करो, मेरी रूम मैट है न, हम सब मैनेज कर लेते हैं" उसने फिर कहा।
लॉकडाऊन के दौरान सभी अपने अपने घरों में बंद, जैसे मुर्गियां दड़बों मे ..।आजकल शाम के वक्त छतों पर खूब चहल पहल हो जाती, सभी अपनी अपनी छतों पर बच्चों के साथ खेलते, हँसते, बतियाते नज़र आते।
घर के बगल वाली छत पर वे दोनों भी गुमसुम सी खड़ी रहतीं, कभी किसी का फ़ोन आ जाने पर चहक जाती, फ़ोन रखते रखते उदास हो जाती, वे दोनों सूनी निगाह से इधर उधर देखती रहतीं।
घर गृहस्थी में उलझे रहने के कारण कभी पता ही नहीं चला था कि बिल्कुल पास वाले घर में सबसे ऊपर के फ्लोर पर दो स्टूडेंट किराए से रहती हैं, दोनों अलग अलग शहरों से थीं। वे भी अपने कॉलेज लाईफ मे व्यस्त थीं, मौक़ा ही नहीं लगा कि उनकी कोई जानकारी मिल सके।
"बेटा, क्या नाम है आपका" मैंने पूछा।
"आंटी, मेरा नाम श्वेता है और इसका रितु " वो चहकते हुए बोली।
"बेटे, अपने आपको अकेला मत समझना, कोई भी
ज़रूरत हो, निः संकोच हमसे कहना" मैंने कहा।
"जी आंटी, थैंक्यू आंटी, थैंक्यू सो मच, आपने हमसे बात की, हमे बहुत हिम्मत मिली है, "कहते हुए श्वेता की आँखों में आँसू भर आए।
"अच्छा बताओ, आज तुम लोगों ने क्या खाया" मैंने पूछा।
"आंटी, टिफिन सेंटर भी बंद है, इसलिए हम मैगी या पोहा बना लेते हैं" रितु ने कहा।
"आज तुम मेरे हाथ के छोले पूरी खाओ" मैने कहा।
मैंने नीचे से छोले और पूरी लाकर उनके हाथों में दिए।
"आंटी, हमें नहीं पता था कि हमारे पास मे इतनी अच्छी आंटी रहती हैं"
"बेटा, लॉकडाऊन के दौरान बहुत से नये अनुभव हो रहे हैं, जिनसे अपनी व्यस्तताओं के चलते हम अनभिज्ञ थे" मैने कहा।
"बेटा, बार बार हाथ धोते रहना और मास्क लगाकर ही बाहर निकलना" मैं बोली।
"थैंक्यू आंटी, मम्मा भी यही बोल रहीं थीं" श्वेता ने रुंधे गले से कहा और मास्क चढ़ा लिया।
आस पास की महिलाएं भी बोल पड़ी-
"बेटा हम सब तुम्हारे साथ है, लॉकडाऊन का पालन सुरक्षा के लिए हम सभी करेंगे लेकिन अपनेपन का लॉकडाऊन नहीं हुआ है, अपनी सीमाओं में रहकर भी एक दूसरे की परवाह की जा सकती है"
श्वेता और रितु के चेहरे खिल उठे।