प्रतिभा भाषा की मोहताज नहीं
प्रतिभा भाषा की मोहताज नहीं


सुरभि सीधी, सरल लड़की है। हिंदी भाषा में पढ़ाई की, संस्कृत प्रिय विषय रहा क्योंकि शिक्षक लय में पढ़ाते थे और उनके शब्दों का उच्चारण स्पष्ट था, प्यार से पढ़ाने के कारण सुरभि को मजा आता। समय की मांग के कारण अंग्रेजी भाषा भी सीखा फर्राटे अंग्रेजी बोलना नहीं आता पर काम चलाऊ आता है।
एक बार सुरभि की मां अस्पताल के आईसीयू में भर्ती थी। आईसीयू के सामने बेंच पर कुछ लोगों के साथ सुरभि बैठी थी। तभी उसने देखा कि उसकी मां को नर्स ले जा रही है और मां बहुत घबरायी हुई है। उसने रोका तब नर्स ने कहा कि "डाक्टर ने बुलाया है, आप उनसे बात करो।" कहते ही लिफ्ट से नीचे उतर गई। सुरभि तुरंत ही डाक्टर से सम्पर्क की, तब पता चला कि नर्स ग़लती से दूसरे मरीज की जगह उसकी मां को शल्य चिकित्सा के लिए ले आई है। उसने तुरंत गलती सुधारी। जब इस बात की जानकारी परिवार में हुआ तब सभी सकते में आ गए। "बाल बाल बचे" कहकर राहत की सांस लिए। सुरभि की तारीफ कर रहे थे तभी वहां पर उपस्थित एक रिश्तेदार ने कहा कि "अच्छा हुआ वे लोग अंग्रेजी में नहीं बोले नहीं त
ो सुरभि समझ नहीं पाती।" कहकर ठहाका लगाया। सुरभि ने कुछ नहीं कहा पर उनकी बातों ने मन को बहुत चोट पहुंचाया। कुछ दिन के बाद उसी रिश्तेदार ने अपने भतीजे के विषय में कहा कि "राघव को हिंदी पढ़ने लिखने में परेशानी होती है, मैंने तो कह दिया कि हिंदी कोई मतलब का नहीं है, अंग्रेजी तुम्हारी अच्छी है। आज के समय में आगे बढ़ने में अंग्रेजी ही काम आता है। "
सुरभि ने अपने आप से कहा कि "इन्होंने मेरी ही हंसी नहीं उड़ाया, अपनी भाषा की भी हंसी उड़ाये है। "
कुछ दिन के बाद सुरभि को हिंदी साहित्य में योगदान देने के लिए प्रशंसा पत्र मिला। सभी ने बधाई दी। उस रिश्तेदार ने भी बधाई दी । तब सुरभि ने कहा कि " प्रतिभा किसी भाषा की मोहताज नहीं है। जिसे ज्ञान लेना है, वो किसी भी भाषा में ले लेगा। फिर हिंदी हमारी मातृभाषा है। सबसे पहला शब्द हमने मां कहा। भगवान के पूजा में मंत्र संस्कृत में है। जिसका सकारात्मक असर, हम सिर्फ अनुभव करते सकते हैं शब्द नहीं सकते हैं।"
इतना कहने के बाद सुरभि ने शांति महसूस की।