प्रश्न चिन्ह
प्रश्न चिन्ह
रमन एक प्राइवेट डिटेक्टिव था। जवानी के दिनों में बहुत से केस सॉल्व किये थे। पर एक बन्द दरवाजा हमेशा एक प्रश्न चिन्ह लगाये हुए उसके सामने खड़ा रहता जिसे देखकर एक अनजाना भय उसके मन-मस्तिष्क में समा जाता।
कुछ तो हुआ था उस दरवाजे के पीछे जिसे वह चौदह वर्ष जेल के मानसिक रुग्णालय में रहने के बाद अपने मन-मस्तिष्क की भूल-भुलैया में खो चुका था।
आज भी रमन उस बन्द दरवाजे के सामने से गुजरा। मन में उभरे उस प्रश्न चिन्ह ने उसे रोक लिया।
रमन समझ नहीं पाया कि वह कमरे के बाहर है या अन्दर। क्योंकि उसने स्वयं को एक सीमारेखा के भीतर घिरा हुआ पाया और भय से उसके रोंगटे खड़े हो गए। उसने वहाँ एक प्रकाश पुंज देखा। जिसमें एक सुंदर लड़की अपने प्रेमी के साथ दिखाई दी। जेब से पिस्तौल निकाल कर उसने कई गोलियाँ दोनों पर दाग दीं। उनका बाल बांका भी न हुआ और वे उस प्रकाश पुंज में लिपटे हुए हुए ऊपर की ओर निकल गये। रमन ने अपने मोबाइल पर उनकी तस्वीर लेने की कोशिश की पर उसमें सिवाय अंधेरे के कुछ न आया।
अब उस काल्पनिक अंधेरे में उसकी प्रेमिका बन कर खड़ा प्रश्न चिन्ह उससे पूछने लगा, 'क्यों मारा मुझे? प्रेम और नफ़रत के बीच का फासला क्या मौत ही तय कर सकती थी, तो अब भय कैसा?'
अब प्रश्न चिन्ह की गुत्थी सुलझ चुकी थी। शक और ईर्ष्या के कारण प्रेमिका तो खो चुका था रमन, पर यह याद आते ही कि 'वह अपने किये अपराध की सजा जेल में काट चुका है', उसे 'प्रश्न चिन्ह' के भय से जीत मिल गई थी।