" प्रकाश पुंज"

" प्रकाश पुंज"

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आज गरिमा को फिर से ऑफिस से निकलने में देर हो गई। बाहर चारों तरफ रोशनी के बावजूद भी सन्नाटा छाया हुआ था।अपने आप को संभालते हुए किसी अनजान भय से आशंकित तेज कदमों से घर जल्दी पहुंच जाना चाहती थी।

नई नई नौकरी लगी थी। नौकरी छूट ना जाए इस डर से बॉस से कुछ कह भी नहीं पाती थी। महीनों के मशक्कत के पश्चात ये नौकरी मिली थी। फिर मजबूरी भी थी। घर में बूढ़ी माँ और दिव्यांग भाई की सेवा के लिए पैसे कहां से जुटाती ? माँ के फैमिली पेंशन से घर का खर्चा भी पूरा नहीं हो पा रहा था।

इन्हीं खयालों में खोई वह तेज क़दमों से चली जा रही थी कि तभी उसे महसूस हुआ जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो। उसने हल्का गर्दन घुमा कर देखा तो उसे एक काले साये का एहसास हुआ। उसने अपने कदमों की रफ्तार और बढ़ा दी। पर वो जितना कदम बढ़ाती,उस काले साये को और अपने नज़दीक पाती। गरिमा डर से कांपने लगी। फिर उसने हिम्मत कर एक बार और पीछे मुड़ कर देखने कि कोशिश की तो देखा वो काला साया गायब था।

उसका मन थोड़ा स्थिर हुआ और उसकी जान में जान आई। जैसे ही आगे बढ़ने को हुई कि अचानक उसने अपने सामने एक लंबे चौड़े अनजान व्यक्ति को खड़ा देख डर से ठिठक गई।

‌"अरे बहनजी ! कहां आप इतनी जल्दी जल्दी भागी चली जा रही हैं.? मैं तो आपकी मदद करना चाह रहा था ,पर आप रुक ही नहीं रही थी। इसलिए मुझे इस तरह अचानक आपके सामने आना पड़ा..!" आगंतुक ने सरलता पूर्वक कहा। 

भला इस सुनसान जगह में कोई अनजान मेरी मदद क्यों करना चाहेगा ? गरिमा अभी मन ही मन सोच रही थी कि तभी आगंतुक ने कहा ,"आपने शायद ध्यान नहीं दिया ! किसी वजनी वस्तु की वजह से आपका पल्लू बार बार गिर रहा है। इसलिए संभल नहीं रहा।"

 "..क्या..?" गरिमा ने अचंभित हो कर पूछा। 

"जी बिल्कुल ,आपने ठीक सुना।"  

गरिमा ने भय से कांपती हुई हाथों से अपना पल्लू आगे की तरफ समेटते हुए देखा तो वैसा कुछ भी नहीं था।उसने कांपती आवाज़ में कहा "ऐसा तो कुछ भी नहीं है।" 

"जी ध्यान से देखिए कोई वजनी वस्तु बंधी हुई है।" गरिमा ने फिर से एक बार बहुत ध्यान से निरीक्षण किया पर कहीं कुछ नहीं दिखा।

"ऐसा तो कुछ भी नहीं है भाई साहब। आपको वहम हो रहा है।"

 "आप ध्यान से देखिए ....भय बंधा हुआ है।" "..भय..? गरिमा ने चकित होकर पूछा, " भला ये कैसी बात हुई..?"

आगंतुक ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा ," इस अंधेरी रात में किसी अनजान खौफ की आशंका से परेशान होकर बार बार आप अपने आप को व्यवस्थित करने की कोशिश कर रही है, पर वो भय की वजह से संभल नहीं रहा है।" 

गरिमा को आगंतुक की आवाज में थोड़ा अपनापन महसूस हुआ और बहुत गौर से उसकी बात सुनने लगी। 

"देखिए आज कल के दौर में महिलाएं भी स्वतंत्र रूप से हर क्षेत्र में कार्यरत है और काम के सिलसिले में रात को भी कहीं आना जाना पड़ता है। समय की नजाकत को देखते हुए अपनी रक्षा हेतु उन्हें सजग रहना चाहिए।" 

" जी भाईसाहब ! मैं आपकी बात समझ रही हूं पर ये मेरी मजबूरी है कि कई बार मुझे ऑफिस से देर से छुट्टी मिलती है।" 

"आपकी मजबूरी जो भी हो पर मुसीबत मजबूरी देख कर नहीं रुक जाती । कभी भी आती है।" 

" फिर मैं अकेली औरत किसी अनहोनी का कैसे मुकाबला कर पाऊंगी..? इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए ? " गरिमा ने विम्रता पूर्वक पूछा।

"इस भय से बचने का उपाय है। आप अपने आप को थोड़ा सक्षम बनाएं। कहीं से जूडो कराटे का प्रशिक्षण ले लीजिए ताकि आप अपनी रक्षा स्वयं कर सकें । हिम्मत और आत्मविश्वास के बल पर कोई भी जंग जीती जा सकती है। झांसी की रानी एक कुशल योद्धा थी। हिम्मत और आत्मविश्वास के बल पर उन्होंने फिरंगियों को मार भगाया और वो झांसी वाली रानी के नाम से प्रसिद्ध हुई।"

 उस आगंतुक ने गरिमा के भीतर बैठे भय को निर्मूल कर अभय बना दिया। गरिमा आगंतुक के प्रति अपनी कृतज्ञता ज़ाहिर कर, अंधेरे को चीरती हुई प्रकाश पुंज की ओर अग्रसर हुई....।



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