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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

प्रकाश पर्व

प्रकाश पर्व

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प्रकाश पर्वपूज्य गुरु नानक देव जी का जन्म, अब से लगभग 553 वर्ष पूर्व, ‘राय भोई दी तलवंडी’ (ननकाना साहिब) में 15 अप्रैल 1469 को हुआ था। उनकी जन्म जयंती हिंदू कैलेंडर अनुसार प्रत्येक वर्ष ‘कार्तिक पूर्णिमा’ अर्थात दीपावली के 15 दिनों बाद मनाई जाती है। देव गुरु नानक जी की जयंती को, गुरु पर्व एवं प्रकाश पर्व भी कहते हैं। इसे प्रकाश पर्व इसलिए भी कहते हैं कि इस दिन सिख अनुयायी अपने घर-प्रतिष्ठानों को दीपावली की भाँति ही दीपकों एवं लाइटिंग की जगमग से सजाया करते हैं। 

सिख धर्म के संस्थापक और सिख गुरुओं में से पहले गुरु पूज्य नानक साहिब की जयंती के दिन, भारत सहित पूरे विश्व में प्रातः कालीन 'नगर कीर्तन' (प्रभात फेरी) निकाली जाती है। पंज प्यारे की अगुवाई में होने वाले नगर कीर्तन में समस्त सिख अनुयायी उल्लास एवं श्रद्धा पूर्वक भाग लेते हैं। यद्यपि दुनिया भर में सिख धर्म अनुयायियों की संख्या अन्य धर्मावलंबियों की तुलना में अत्यंत कम है तब भी नगर कीर्तन एवं गुरु नानक देव जी की शोभा यात्रा में संपूर्ण सिख संप्रदाय उत्साह एवं श्रद्धा से भाग लेता है। पूर्ण अनुशासित ऐसे जुलूसों में भाग लेने वालों की संख्या विशाल होती है। 

सिख धर्म की प्रमुख शिक्षा एवं सिद्धांत को 'गुरमत' कहा जाता है। इसका अर्थ गुरु का मत या गुरु के नाम पर संकल्प है। गुरमत की विस्तृत व्याख्या 'गुरु ग्रंथ साहिब' में की गई है, इसे गुरुवाणी भी कहते हैं। सिख धर्म के अनुयायी गुरमत या गुरुवाणी को अपनी संपूर्ण आस्था से पालन करते (निभाते) हैं। 

पूज्य गुरु नानक देव, सिख धर्म में प्रथम गुरु हैं, उनके सहित 10 सिख धर्म गुरु हुए हैं। इन सभी गुरुओं ने सिख धर्म का प्रचार प्रसार किया उनकी प्रदत्त शिक्षाएं गुरु ग्रंथ साहिब में उल्लेखित हैं। 


सिख धर्म की प्रमुख शिक्षा एवं सिद्धांत - हर सिख पुरुष-स्त्री को दस गुरु साहिबान, गुरुग्रंथ साहिब और दस गुरु की वाणी और शिक्षा में श्रद्धा रखनी चाहिए। 

सिख अमृतवेला (2 बजे से प्रातः 5 बजे तक) में वाहे गुरु नाम का जाप करें और वाणियां पढ़ें। 

गुरुवाणी का प्रभाव सिख संगति में अधिक होता है। इसलिए गुरुद्वारे में संगति में बैठकर गुरुवाणी का लाभ लेना चाहिए। 

गुरुद्वारे में आरती करना और घंटे बजाना वर्जित है। इसके अलावा मूर्ति पूजा भी वर्जित है। 

गुरुद्वारे में जब गुरुग्रंथ साहिब की सवारी आए तो प्रत्येक सिख को सम्मान में खड़े हो जाना चाहिए। 

गुरुद्वारे में किसी भी धर्म के लोगों को जाना वर्जित नहीं है। संगत में साथ बैठे किसी भी व्यक्ति के प्रति ऊंच-नीच, जात-पात और छुआछूत का भेदभाव नहीं रखना चाहिए।संगत में नंगे सिर नहीं बैठना चाहिए। स्त्रियों के लिए पर्दा या घूंघट निकालना गुरु मत के विरुद्ध है। 

गुरु नानक देव ने एक ॐकार का नारा दिया। जिसका अर्थ है कि ईश्वर एक है। यह हमारे बीच के मतभेदों को मिटाकर हमें मिलकर रहना सिखाता है। 

सभी प्रकार के लोभ को त्यागकार हमें अपने हाथों से मेहनत और न्यायोचित तरीके से धन कमाना चाहिए। किसी का अधिकार नहीं छीनना चाहिए और वंचितों की मदद करना चाहिए। धन को जेब तक ही सीमित रखें, उसे हृदय में स्थान नहीं देना चाहिए। अन्यथा हानि हो सकती है।

स्त्री का आदर करना चाहिए। स्त्री का दर्जा पुरुष के बराबर होता है। 

तनावमुक्त रखते हुए काम करना चाहिए और प्रसन्नता फैलाना चाहिए। 

दुनिया को जीतने से पहले अपने बुराइयों पर जीत हासिल करना चाहिए। 

अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है इसे अपने आप से दूर रखना चाहिए। 

सिख धर्म के अनुसार जो विनम्र रहकर सेवा में अपना जीवन गुजारता है, वह हमेशा आनंद में रहता है। 

लोगों को प्रेम, समानता और भाईचारे के संदेश देना चाहिए।


गुरु नानक साहिब सिख धर्म के संस्थापक हैं। कह सकते हैं कि जब भारत में हिंदू, जैन तथा बौद्ध धर्म के एवं उनके अनुयायियों के बाद, मुगल आक्रांताओं के समय में बाहरी एक समुदाय (मुस्लिम) आ मिला तब उनकी जोर जबरदस्ती में बहुत से भारतीय लोग इस्लाम के मानने को बाध्य हुए थे। उस समय देश में एक बिलकुल अलग संप्रदाय बना था, वह सिख संप्रदाय हुआ। 

अनेक हिंदुओं ने तब मुस्लिम एवं सिख संप्रदाय स्वीकार किए थे मगर इनमें बड़ा अंतर यह हुआ था कि एक ओर जहाँ लोगों ने बाध्यता में इस्लाम स्वीकार किया था, वहीं दूसरी ओर सिख धर्म, स्वेच्छा से स्वीकार किया था। 

पूज्य गुरु नानक देव कृत सिख धर्म, इन बाह्य आक्रांताओं से देश, समाज और परिवार की रक्षा के लिए बनाया गया था। रक्षा का दायित्व समाज के वीर लोगों के द्वारा शिरोधार्य किया जाता है। इसका अर्थ यह भी होता है कि सिख संप्रदाय में लोग वीर एवं अतिवीर, महावीर एवं परमवीर होते हैं। सिख संप्रदाय की बहनें अपने भाइयों को ‘वीर’ ही कहतीं हैं। लोक में जो लोग रक्षा के लिए आगे होते हैं, उन्हें सरदार कहा जाता है इसलिए सिख संप्रदाय के पुरुषों को सरदार भी कहा जाता है। 

सिख सम्प्रदाय के नर-नारी स्वाभिमानी, मेहनती, धर्मनिष्ठ एवं राष्ट्रनिष्ठ होते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर भी कोई सिख किसी के सामने हाथ नहीं फैलाता है। वह भी मेहनत की आय से ही परिवार एवं अपना भरण पोषण करता है। राष्ट्रनिष्ठ होने से सिख व्यक्ति भारतीय सेना एवं खेलकूद में अपने वीरता और श्रेष्ठ कारनामों से भारत का सिर गर्व से ऊँचा रखता है। 

भगतसिंह सिख संप्रदाय का वीर बेटा था, जिसने भारत की स्वतंत्रता के लिए छोटी सी वय में हँसते हँसते प्राण तज दिए थे। फिर भी वह सिख संप्रदाय की कठिन परीक्षा की घड़ी थी जब स्वंतत्र हुए भारत के बँटवारे में, पंजाब प्रदेश के दो भाग कर दिए थे। जिसमें से एक भाग पाकिस्तान के हिस्से में दे दिया गया था। वहाँ रहे सिख व्यक्तियों को अपनी जन्मभूमि एवं धन संपत्ति ही नहीं, कई अपनों को (प्राण तक) खोकर भारत में बच गए पंजाब एवं अन्य स्थानों पर आकर बसना पड़ा। 

इस दुखद बँटवारे में सिख व्यक्तियों को अपने संस्थापक गुरु नानक साहिब की जन्म भूमि तक पराई होते देखने पड़ी। ‘ननकाना साहिब’ एवं ‘करतारपुर साहिब जैसे उनके तीर्थ तक पाकिस्तान के हो गए थे। अनेक सिख व्यक्तियों को अपने इन तीर्थ एवं अपनी जन्म भूमि से इतना प्रेम रहा था कि उन्होंने बँटवारे के बाद भी वहाँ रहने का विकल्प चुना था मगर यह पाकिस्तानियों की दुर्भावना रही कि उन्होंने इन पर अत्याचार का क्रम जारी रखा। वहाँ अनेकों सिख की हत्याएं हुईं, सिख बहन-बेटियों पर बुरी नीयत रखी गई, जिससे बाद के समय में उन्हें पाकिस्तान छोड़ने को बाध्य होना पड़ा।  

यह हम भारतीयों का सिख संप्रदाय से संवेदना होनी चाहिए थी। हम उनकी राष्ट्र निष्ठा एवं वीरता एवं बलिदान के कृतज्ञ होने चाहिए थे मगर दुर्भाग्य ऐसा नहीं हुआ। 1984 में अनेक भारतीयों की यह कुबुद्धि एवं काले कारनामे थे, जिसमें एक की गलती की कीमत कई सिखों को प्राण गँवाकर चुकानी पड़ी थी। दुर्भाग्य तत्कालीन भारत की सरकार एवं भारतीय तंत्र, इस नरसंहार को नियंत्रित करने में विफल हुए थे। 

यह अब की हमारी नीति एवं सीएए प्रावधानों का सुखद परिणाम है कि अब जो सिख (एवं अन्य हिंदू भी) पाकिस्तानियों या अफगानिस्तानियों तरह के अत्याचारी लोगों से पीड़ित होकर भारत आए हैं उन्हें भारत की नागरिकता प्रदान की गई है। 

बीते 75 वर्षों में दो बार खून खराबों एवं लूटपाट के शिकार हुए, इस संप्रदाय की यह राष्ट्र निष्ठा एवं अपने धर्म की उत्कृष्ट शिक्षाओं का परिणाम है कि आज सिख पूरे भारत में, हर स्थान पर स्वाभिमान से जीवन यापन कर रहा है। सिख संप्रदाय हर विपदा पूर्ण परस्थितियों में पीड़ितों के भोजन की व्यवस्था के लिए उन हादसों वाले स्थानों पर उपस्थित हो जाता है। विपरीत से विपरीत स्थिति में भी लंगर एवं भोजन पैकेट्स के माध्यम से लोगों की भूख मिटाने की सेवा अर्पित करता है। 

हमें इस भारत निष्ठ सिख संप्रदाय को यथोचित सम्मान एवं प्रेम से निभाना चाहिए, जिन्होंने अपने धर्म से मिली उत्कृष्ट शिक्षा के होने से, बहुत कुछ खोकर भी उसे उदार हृदय से भुला दिया है। वे अपने अपने कर्मों एवं प्रदाय की जा रही सेवा से बार बार सच्चे भारतीय होने का परिचय दिया है और दे रहे हैं। 

यह पंजाब नहीं है, दक्षिण का एक प्रान्त है मगर देखिए सिख संप्रदाय के बड़े, युवा एवं बच्चे हमारी सोसाइटी में ही 100 से अधिक रहते हैं। गुरु पर्व के अवसर पर आज प्रातः निकाले गए नगर कीर्तन में यहाँ के प्रत्येक सिख व्यक्ति ने हिस्सा लिया। सोसाइटी में प्रभात फेरी के दौरान ढोलक के साथ कीर्तन करते हुए भ्रमण किया। नगर कीर्तन का समापन क्लॉक टॉवर पर पहुँच कर किया गया। वहाँ सोल्लास गुरुवाणी का पाठ किया गया। अंत में सभी ने स्नेह भोज के अंतर्गत हल्का नाश्ता एवं पेय पदार्थ को ग्रहण करते हुए एक दूसरे को शुभकामानाओं का आदान प्रदान किया।    

आज 8 नवंबर 2022 गुरु परब, प्रकाश पर्व एवं पूज्य गुरु नानक साहिब की 559 वीं जयंती का शुभ दिन है, सभी को गुरु परब की बधाई एवं हार्दिक शुभ कामनाएं।  


(नोट - लेखक (मैं) बँटवारे के समय जन्मा नहीं था। वह 1984 में हुए नरसंहार के समय में 24 वर्ष की वय में दूरस्थ स्थान मंडला (म. प्र.) में अपने विभागीय दायित्वों पर तैनात था। फिर भी सिख व्यक्तियों के विरुद्ध हुए अत्याचारों को सुन कर आज तक ग्लानि अनुभव करता है। इसलिए गुरु नानक साहिब पर लिखे इस आलेख में भी लेखक की लेखनी से पश्चातापपूर्ण शब्द अनायास ही क्षमा भाव से लिखे गए हैं।) 


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