"परिवार"
"परिवार"
कोरोना काल चल रहा था। हर व्यक्ति सहमा हुआ था। सो हम दूसरी डोज लगवाने गये। छुट्टियां मनाकर बच्चे अपने घरों को लौट चुके थे। जैसे ही दूसरी डोज लगवाकर घर आये, शाम होते-होते मेरे पतिदेव बुखार से कराह रहे थे। जैसे ही मैं सो कर उठी, इन्होंने कहा तुम अपना बुखार भी चैक कर लो, मुझे 102° बुखार है। मुझे बुखार नहीं था परन्तु इनका बुखार दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा था। अब हमें शक होने लगा कहीं कोरोना तो नहीं और हमारा शक सही निकला। ये कोरोना पीड़ित हो गये थे, सो इलाज शुरू हुआ लेकिन दिन ब दिन इनकी आक्सीजन का स्तर नीचे गिरता जा रहा था। इन्हें बेचैनी होने लगी और हमें चिन्ता ने भी घेर लिया। यह वह समय था जब कोरोना ने ताण्डव रूप धारण कर रखा था |
हास्पिटल में कहीं भी जगह नहीं थी, लोग मारे-मारे फिर रहे थे हमें भी आक्सीजन के साथ कमरे की आवश्यकता थी परन्तु कहीं भी कमरा नहीं मिल रहा था | हमारे बच्चे और हमारे यार दोस्त सब कमरा खोजने में व्यस्त थे | ले देकर एक कमरे का बड़ी मुश्किल से इन्तजाम हुआ। अनहोनी की आशंका से हम सभी डरे-सहमें थे। बेटे ने कहा - "मम्मी आप अपने आपको असहाय मत समझना मैं फ्लाईट लेकर अभी आ जाता हूँ।" बेटी-दामाद ने कहा हम पास बनवा लेते हैं क्योंकि राजस्थान बार्डर सील किया हुआ था। हमें आपसे बढ़कर कोई नहीं है। जहां लोग बच रहे थे वहाँ मेरा परिवार और हमारे चाहने वाले हमारे साथ कंधे से कंद्या मिला कर खड़े थे। मैंने जी जान लगाकर इन्हें किसी भी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी। किसी अनहोनी आशंका ने इन्हें भी नेगेटिव बना दिया था, परन्तु परिवार के सम्बल और आपसी प्यार ने नैया पार लगवा दी। जिन परिवारो में अपनापन होता है वह किसी भी चुनौती का सामना बेखूबी कर लेते हैं।