परिवार की ताकत
परिवार की ताकत
अंकुर एक बहुत ही मेधावी छात्र था। बचपन से ही पढ़ाई में बहुत होशियार था। उसका कमरा ट्राफी और सर्टिफिकेट्स से भरा हुआ था। स्कूल की हर शिक्षिका को उसपर गर्व था। ना केवल पढ़ाई अपितु खेलकूद और वादविवाद प्रतियोगिताओं में भी अंकुर हमेशा अव्वल आता था।
परिवार के हर सदस्य को यकीन था कि अंकुर डॉक्टर बनकर रहेगा। अंकुर भी ज़ोर-शोर से बारहवीं की पढ़ाई में लगा हुआ था। वह पूरी मेहनत कर रहा था कि वह ना केवल अपने स्कूल में अपितु पूरे देश में अव्वल आकर दिखाए।
बारहवीं की परीक्षाएं सिर पर थीं। अंकुर अपनी कोचिंग क्लास से लौट रहा था कि अचानक उसके पेट में तीव्र दर्द उठा और वह सड़क पर बेहोश हो गिर गया।जब उसको होश आया तो वह अस्पताल में था। उसका पूरा परिवार उसके आसपास मौजूद था। सबके चेहरे पर चिंता के भाव स्पष्ट छलक रहे थे। डॉक्टर ने बताया कि अंकुर की दोनों किडनी फेल हो गयी थीं और उन्हें जल्द से जल्द बदलना आवश्यक था।
"माँ, मतलब मैं इस साल परिक्षाएं नहीं दे पाऊंगा?" अंकुर ने रोते हुए कहा।
"बेटा परीक्षा तो तू अगले साल भी दे सकता है। जान है तो जहान है। बस तू ठीक हो जा।" अंकुर की माँ रोते हुए बोली।
"पर…मेरी मेहनत?" अंकुर रोने लगा।
"बेटा, मेहनत कभी खराब नहीं होती। यह मेहनत तुझे अगले साल काम आएगी।" उसके पिता बोले।
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परिवार को चिंता में थी कि अंकुर को ठीक कैसे किया जाए। किडनी मिलना बहुत मुश्किल काम होता है। आसानी से किसी की किडनी नहीं मिल सकती। तब सब लोगों ने फैसला लिया कि परिवार के सभी सदस्य अपना चैक अप करवाएंगे। जिसकी किडनी डॉक्टर के अनुसार अंकुर के लिए सही होगी वह सदस्य अंकुर को अपनी एक किडनी देगा।
जब डॉक्टर को ये जानकारी मिली तो उन्होंने सम्पूर्ण परिवार की बहुत सराहना की। पर उन्होंने परिवार के सदस्यों की लिस्ट से बुजुर्गों और मधुमेह रोगियों को निकाल दिया।
"लेकिन डॉक्टर, अंकुर के चाचा तो अभी जवान हैं। वो क्यों नहीं दे सकते किडनी?" अंकुर की ताई बोलीं।
"उनको मधुमेह की बिमारी है। ये बात शायद आज तक किसी को भी नहीं पता थी। उन्हें तो खुद इलाज की ज़रूरत है।" डॉक्टर ने उन्हें समझाते हुए कहा।
आखिरकार सारी रिपोर्ट और खोजबीन के बाद ये पाया गया कि अंकुर की बूआ की किडनी, ब्लड सैंपल, सब कुछ अंकुर से मेल खाता है। इसलिए वह सबसे उपयुक्त डोनर थीं।
"पर….माँ शिवानी की तो शादी तय हो गई है। ऐसे में…नहीं…नहीं उसकी ज़िन्दगी का सवाल है।" अंकुर के पिता ने अपनी बहन की फ़िक्र करते हुए कहा।
"और कोई नहीं है बेटा परिवार में जो अंकुर की जान बचा सके।" अंकुर की दादी रोते हुए बोलीं।
समस्त परिवार बहुत बड़े धर्म संकट में फंस गया। अंकुर की जान भी बचानी थी पर उसकी बहुत बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ रही थी।
"सबसे बड़ी बात, शिवानी मानेगी?" अंकुर की चाची ने कहा।
तभी पीछे से शिवानी की आवाज़ आई, "भाभी, अंकुर मेरा भांजा नहीं मेरा बेटा है। जबसे वो पैदा हुआ था तब से लेकर आज तक मैंने उसे अपने बच्चे, छोटे भाई की तरह पाला है। आज मेरा बच्चा जीवन - मृत्यु के बीच झूल रहा है और मैं अपने बारे में सोचूं। मेरे लिए उसका जीवन सर्वोपरि है।"
"पर शिवानी, बेटा यदि दामाद जी ने एतराज़ किया तो? शादी तोड़ दी तो?" शिवानी की माँ बोलीं।
"माँ, यदि उन्होंने ऐसा कोई कदम उठाया तो मैं समझ लूंगी कि मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ कि मुझे शादी से पहले ही पता चल गया कि वो कैसे इंसान हैं।"
सबके लाख समझाने के बाद भी शिवानी अपने निर्णय पर अटल थी। आखिरकार, शिवानी की एक किडनी से अंकुर की जान बच गई।
आज एक साल बाद अंकुर ने पुनः मेहनत कर पूरे देश में बारहवीं में प्रथम आकर दिखाया। रिज़ल्ट आते ही वह अपनी बूआ से लिपट कर रोने लगा। शिवानी जो दुल्हन के जोड़े में खड़ी थी, ने उसका माथा चूमा और कहा, "तू मेरी ताकत है। और हमेशा रहेगा। बस अब एक सफल डॉक्टर बनकर दिखा।"
"बूआ, ये जीवन आपकी देन है। बचपन में भी आपने ही मुझे चलना सिखाया था और आज भी आप ही मेरा सहारा बने। मैं एक सफल डॉक्टर बन आपका सपना ज़रूर पूरा करूंगा।"
परिवार तभी परिवार कहलाता है जब वह एकजुट होकर हर समस्या का समाधान निकाले।
