प्रेरणास्पद व्यक्तित्व
प्रेरणास्पद व्यक्तित्व
जब आपने किसी से प्रेरणा ली
मैंने कहीं पढ़ा था कि अति हर चीज़ की बुरी होती है,
अति का भला ना बोलना, अति की भली ना चुप,
अति का भला ना बरसना, अति की भली ना धूप।
मैने अपने मित्र से इसी बाबत चर्चा की, क्यों ?क्योंकि उसके लिए रात दिन काम, काम, बस काम। पैसा, पैसा, पैसा। पैसा न हुआ ख़ुदा हो गया !
वह बोला,चलो,"तुम्हारी बात मान लेता हूं कि अति की धन, दौलत या अति की गरीबी, दोनों बुरी हैं, तो भाई मेरे, मैं तो अमीर मरना चाहूँगा,गरीबी में क्यों मरूं ?"
मैं खिन्न होकर वहां से उठा। घर न जाकर पार्क की ओर चला। वहां कोने में एक खाली बेंच थी, बैठ गया। सोचने लगा, मेरा मित्र है, उसे इस तरह तो अपने स्वास्थ्य और परिवार के प्रति लापरवाह नहीं छोड़ सकता, मगर करूँ तो क्या ? जब भी उसे सही दिशा दिखाने की कोशिश करता हूं, वह अपने अकाट्य तर्कों से चुप करा देता है। तभी देखता हूं की सामने से एक दिव्यांग चले आ रहे हैं।आँखों पर काला चश्मा है, एक हाथ में छड़ी है और दूसरे में अख़बार !अख़बार देख कर मैं चौक गया! नेत्रहीन और अख़बार ! खैर ,
वे आए, बेंच पर बैठने से पूर्व अख़बार बिछाया और उस पर बैठ गए।
मेरी ओर मुड़कर कहा ,"यहां कितना कुछ सुंदर है। चारों ओर प्रकृति की छटा बिखरी हुई है। यह तरह-तरह के खूबसूरत फूल, यह मखमली घास !"मैने घूम कर उनकी ओर देखा। क्या कह रहे हैं ?देख पाते नहीं..फिर..?
झिझकते हुए मैने पूछ ही तो लिया,"आप देख नहीं सकते ,फिर कैसे...?"
हँसे, मृदुल हँसी,"देख नहीं सकता तो क्या महसूस तो कर सकता हूं।
हां, और आप क्या अख़बार पढ़ना चाहेंगे, क्योंकि मुझे तो अनंत समय लगेगा पढ़ने में, इस बार वे हँस पड़े।"
आश्चर्य से मैंने पूछा," इतनी विषम परिस्थिति में आप खुश कैसे रह सकते हैं ?"
अद्भुत था उनका जवाब,"देखो भाई साहब, विषम परिस्थिति का सामना दो तरह से किया जा सकता है, पहला रोकर दूसरा हँस कर, तो मैंने दूसरा रास्ता चुना है। इस तरह विषम परिस्थिति मुझ पर हावी नहीं होती। वैसे आपकी शर्ट का रंग आप पर खूब फब रहा है।"
उन्होंने इस बार ठहाका लगाया। उठ खड़े हुए , मुझसे हाथ मिलाया और लम्बे-लम्बे डग भरते हुए चल दिए।
हल कर दी मेरी शंका, इस प्रेरणा स्त्रोत ने !